क्यों नासा की नजर शनिग्रह के चांद पर है

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क्यों नासा की नजर शनिग्रह के चांद पर है

शनि का उपग्रह टाइटन पर खागोलविद बेहद गंभीर हैं। शनि के इस चांद पर जीवन की संभावनाएं नजर आती है। इसकी वजह चट्टानी सतह है और उसके ऊपर तरल रूप में जल है। धरती वासियों के लिए यह ऐसी खबर है, जो इस चांद पर पहुंचने के लिए ललचाती है। जिसे लेकर एक अत्याधुनिक अंतरिक्ष यान इस ग्रह पर भेजने की तैयारी कर चुका है। सबकुछ ठीक रहा तो पांच साल में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा इस यान को छोड़ेगा। इसके लिए नासा डिजाइन भी तैयार कर चुका है और टाइटन की निरंतर जांच पड़ताल में लगा हुआ है। हाल के शोध में कई नई जानकारियां निकलकर सामने आई हैं।

ड्रैगनफ्लाई यान उतरेगा टाइटन पर

इस मिशन को फतेह करने के लिए नासा ड्रैगनफ्लाई ड्रोन के सााथ को  टाइटन पर भेजने जा रहा है। इस यान को 2027 में शनि के चंद्रमा टाइटन के लॉन्च किया जाएगा। इस यात्रा में यान को लंबी यात्रा तय करनी होगी, जो करोड़ो किलोमीटर की होगी और सात साल के लंबे सागर के बाद 2034 में टाइटन पर पहुंच पाएगा। इस यान का मुख्य काम टाइटन की धरती पर जीवन की संभावना तलाश करना होगा। टाइटल के अतीत को खोजना होगा । ड्रैगनफ्लाई की कार्बनिक अणुओं के खोज का महत्वपूर्ण कार्य होगा। वहां कभी किसी भी रूप में जीवन रहा होगा, तो उसकी जानकारी जुटाएगा। साथ टाइटन की प्राचीन झील की मालूमात करेगा।

कई मायनों में पृथ्वी के समान यह उपग्रह

टाइटन को लेकर वैज्ञानिक मानते हैं कि शनि का यह बड़ा चंद्रमा टाइटन कुछ अरब साल पहले कई मायनों में पृथ्वी के समान था। तब शायद इसमें जीवन रहा हो । इस उपग्रह पर एक खास जगह है, जो हमें आकर्षित करती है। इस जगह पर सेल्क क्रेटर हैं। यह उन जगहों में से एक है जहां नासा का आगामी ड्रैगनफ्लाई मिशन के तहत रोबोटिक रोटरक्राफ्ट भेजा जाएगा। हाल ही में इस पर हुए शोध से पता चलता है कि इस क्रेटर में तरल पानी मौजूद हो सकता है। कैम्ब्रिज, मैसाचुसेट्स में एमआईटी के वैज्ञानिकों ने यह शोध किया। शोधकर्ताओं के नए अध्ययन से पता चलता है कि सेल्क क्रेटर में तरल पानी पहले की तुलना में लंबे समय तक मौजूद हो सकता है, जो शायद दसियों हज़ार साल तक मौजूद रहा हो। संभवतः जीवन के कुछ सबूत भी वहां मौजूद हों।

80 किमी के दायरे में फैला है सेल्फ क्रेटर

टाइटन पर सेल्क क्रेटर लगभग 80 किमी के दायरे में फैला हुआ है, जो टाइटन के भूमध्य रेखा के ठीक उत्तर में मौजूद है। ड्रैगनफ्लाई मिशन इसके प्रमुख हिस्सों में क्रेटर बारीकियों को परखेगा। दरसल टाइटन की सतह में बर्फीली पपड़ी है। जिसे लेकर माना जाता है कि किसी बर्फीले धूमकेतु के कारण यह बर्फ हो सकती है। धूमकेतु की टक्कर के बाद इसमें गड्ढा बना होगा और गड्डे मे पानी गड्ढा भर गया होगा।

टाइटन की झीलों का रहस्य अभी बरकरार

खास बात यह है कि टाइटन के कई अन्य स्थानों पर धूमकेतु के प्रभाव से तरल पानी की झीलें हो सकती हैं। शोधकर्ता कहते हैं कि वहां कितना समय तक पानी बहता रहा होगा। टाइटन की सतह पर बर्फ मीथेन की तरह हाइड्रोकार्बन है। क्या यह केवल पानी की बर्फ है, या यह पानी की बर्फ और हाइड्रोकार्बन का संयोजन है? वैज्ञानिक अभी तक नहीं जानते हैं कि यह निश्चित रूप से वास्तव में क्या है। बहरहाल टाइटन के बारे में सवाल अनेक हैं, जिनका जवाब ड्रैगनफ्लाई 2034 के बाद देना शुरू करेगा।

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स्रोत: टाइटन पर सेल्क इम्पैक्ट क्रेटर के निर्माण की मॉडलिंग।

फोटो: नासा ।


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