कहां से आया पृथ्वी पर पानी
जल के बिना जीवन संभव नहीं। हमारे शरीर में भी सबसे बढ़ी मात्रा जल की है। पृथ्वी की उत्पत्ति के समय यह आग का धधकता हुआ गोला ही था। जिसमें पानी की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। मगर फिर कुछ ऐसा हुआ कि पृथ्वी जलमग्न हो गई। मगर पृथ्वी में अकूत पानी कहां और कैसे आया, यह रहस्य अभी तक बना हुआ है, लेकिन जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप ने एक ऐसे धूमकेतु की खोज की है, जो पृथ्वी पर जल पहुंचने के श्रोत का राज खोल सकता है। इस धूमकेतु का नाम 238पी/रीड है।
जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप की खोज
धूमकेतु 238पी/रीड के चारों ओर पानी मौजूद है, जो मुख्य क्षुद्रग्रह बेल्ट में दुबका हुआ है। अंतरिक्ष में स्थापित नासा की जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप ने इसे परत दर परत देखा है। दरअसल वैज्ञानिक पृथ्वी पर पानी की उत्पत्ति की जानकारी जुटाने के लिए बेहद आतुर हैं। इस संदर्भ में कई दशकों से अध्ययनरत हैं।
धूमकेतु ही लाए होंगे पृथ्वी पर पानी
वैज्ञानिक अभी तक यही अंदेशा जताते आ रहे हैं कि किसी धूमकेतु द्वारा ही पृथ्वी पर जल पहुंचा होगा, लेकिन इसके ठोस सबूत कभी जुटा नही पाए। मगर अब जिस धूमकेतु को देखा गया है, उससे लगता है कि हमारी धरती पर पानी पहुंचने के श्रोत का पता चल जाएगा। खोजकर्ता वैज्ञानिक यह भी कहते हैं कि जल वाष्प वाले इस धूमकेतु की खोज से इस सिद्धांत को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ावा मिल सकता है कि पानी जीवन के लिए एक महत्वपूर्ण घटक धूमकेतुओं द्वारा अंतरिक्ष से हमारे ग्रह पर पहुंचाया गया होगा।
पानी से भरा दुर्कभी है यह धूमकेतु
बहरहाल यह धूमकेतु बृहस्पति और मंगल के बीच मुख्य क्षुद्रग्रह बेल्ट में है। साथ ही यह धूमकेतु जल वाष्प का होने के कारण दुर्लभ माना जा रहा है। मैरीलैंड विश्वविद्यालय व यूनिवर्सिटी फॉर रिसर्च इन एस्ट्रोनॉमी के वैज्ञानिकों ने यह खोज की है।
अब ज्यादा होंगी धूमकेतुओं की खोज खबर
खोजकर्ता वैज्ञानिक खगोलशास्त्री हेइडी हम्मेल का कहना है कि क्षुद्रग्रह बेल्ट में धूमकेतु बेहद छोटे व देखने में धुंधले नजर आते हैं। मगर जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप से इनके भीतर तक देख सकते हैं। अब इस धूमकेतु के आगे के अध्ययन शुरू हो जाएंगे और जो नतीजे सामने आयेंगे, वह कई रोचक परिणाम सामने लाएंगे। साथ ही धूमकेतुओं में शोध भी बढ़ जाएंगे।
सौर परिवार के महत्वपूर्ण अंग हैं धूमकेतु
धूमकेतु हमारे सौर परिवार के महत्वपूर्ण सदस्य हैं, मंगल व बृहस्पति ग्रह के अलावा सौर मंडल के अंतिम छोर में रहते हैं और ग्रहों की तरह सूर्य की परिक्रमा करते हैं। इनमें काफी मात्रा में बर्फ जमा होती है। कभी कभी यह धधकते सूर्य में गिरकर खुद की आहुति दे देते हैं।
स्रोत: अर्थ स्काई
फोटो; JWST।
Journalist Space science.
Working with India’s leading news paper.
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