ट्रैपिस्ट-1 तारे का है पृथ्वी की तरह सात ग्रहों का सौरमंडल

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ट्रैपिस्ट-1 तारे का है पृथ्वी की तरह सात ग्रहों का सौरमंडल

 

वैज्ञानिकों ने हमारे जैसे सात ग्रहों वाले सौरमंडल को लेकर सुनाई खबर उत्साहवर्धन करती है। इन सात ग्रहों में से कोई एक रहनेयोग्य हो सकता हैं। इन ग्रहों के तारे का नाम ट्रैपिस्ट-1 है और सभी ग्रह बेहद करीब से इसकी परिक्रमा करते हैं।

वैज्ञानिक अभी तक 5 हजार से अधिक एक्सोप्लैनेट खोज चुके हैं। जिनमें से कुछ ही हैं, जिनमें जीवन यानी रहने योग्य होने की संभावना जताई जाती रही है। जिन पर वैज्ञानिक निरंतर अध्ययन करते आ रहे हैं। अब ट्रैपिस्ट-1 तारे के ग्रहों पर अध्ययन के बाद यह परिणाम सामने आया है कि इनमें से कोई एक ग्रह रहने योग्य हो सकता है। इस सौर मंडल के ग्रहों पर जीवन की संभावनाओं पर वैज्ञानिको के बीच लंबे समय से बहस छिड़ी हुई थी। माना जाता था कि इस तारकीय पिंड यानी ग्रहों के आसपास के क्षेत्र में तरल पानी मौजूद हो सकता है । क्योंकि इन ग्रहों का तापमान हमारे सौर मंडल के ग्रहों की तरह ही है। अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि इन ग्रहों की दुनिया पहले बेहद कठोर थी। अतीत में ट्रैपिस्ट-1 के एक्सोप्लैनेट बहुत अधिक कठोर परिस्थितियों के अधीन थे और उनका सितारा बहुत अधिक गर्म हुआ करता था। वैज्ञानिको ने कम्यूटर मॉडलिंग तकनीक पर आधारित इन ग्रहों के वायुमंडल के विकास का अध्ययन किया। जिससे यह परिणाम निकलकर सामने आया कि इस सौर मंडल के कुछ ग्रहों पर तरल पानी बचा रह सकता है। ट्रैपिस्ट-1 तारा हमारे सौर मंडल के सूर्य से छोटा और ठंडा है, लेकिन इसके सभी सात ग्रह हमारे सौर मंडल के सबसे भीतरी ग्रह बुध के बीच की दूरी से बहुत कम दूरी पर परिक्रमा करते हैं। फ्रांस के बोर्डो विश्वविद्यालय के खगोलशास्त्री फ्रैंक सेल्सिस और उनके सहयोगियों ने यह शोध किया है। यह बाहरी सौर मंडल हमसे 40 प्रकाश वर्ष दूर है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि यह शोध वैज्ञानिकों को जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप के निष्कर्षों की बेहतर व्याख्या करने में मदद करेगा। जेम्स वेब प्रारंभिक ब्रह्मांड की खोज के अलावा, आकाशगंगा में एक्सोप्लैनेट पर पानी के निशान की खोज में जुटा हुआ है। वैज्ञानिको का मानना है कि ब्रह्मांड में जीवन मौजूद होने की संभावना से इंकार नही किया जा सकता है। जहां किसी न किसी रूप में जीवन अवश्य मौजूद हो सकता है।

श्रोत : अर्थ स्काई। संपादित किया गया है।
फोटो: बोर्डो विश्वविद्यालय।


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