आज इतिहास रचने जा रहा नासा, अंतरिक्ष में होंगी दो घटनाएं

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आज इतिहास रचने जा रहा है नासा

 

26 सितंबर को आसमान में बेहद रोमांचक दो घटनाएं एक साथ होने जा रही हैं। जिसमें एक कुदरती होगी, जबकि दूसरी मानवजनित होने जा रही है। पहली घटना में 70 साल बाद बृहस्पति हमारे बेहद करीब पहुंचने जा रहा है, तो दूसरी ऐतिहासिक घटना में इंसान पहली बार किसी क्षुद्रग्रह से टकराने जा रहा है। बृहस्पति के करीब आने पर वह आसमान की छटा में अनोखी चमक बिखेरता नजर आयेगा। यह दुर्लभ खगोलीय घटना होगी। जिसमें बृहस्पति को पूरी रात देखा जा सकेगा। दूसरी घटना तो इतनी खास है कि आम आदमी इस तरह की कल्पना भी नही कर सकता। यह घटना अपने दुश्मन को ठिकाने लगाने की उपाय की होगी। जी हां एस्टीरॉयड हमारी धरती के सबसे बड़े दुश्मन हैं, जो अतीत में कई बार पृथ्वी को क्षतिग्रस्त कर चुके हैं। जिसके घाव आज भी धरती के कई हिस्सों में मौजूद हैं, जो अभी तक मिट नहीं सके हैं। इनसे बचने के लिए नासा ने पिछले साल डार्ट DART नामक अंतरिक्ष यान भेजा था, जो अब उस जुड़वा
क्षुद्रग्रह के करीब पहुंच पाया है। सोमवार को वह इस जोड़े ग्रह के छोटे पिंड से टकरा जाएगा और उनका मार्ग बदल देगा। धरती से टकराने वाले पिंडों से बचाव के लिए यह प्रयोग बेहद जरूरी है। लिहाजा नासा यह प्रयोग करने जा रहा है। यह प्रशिक्षण सफल रहा तो भविष्य में पृथ्वी को जख्मी करने वाले इन ग्रहों से हम आसानी से निबट सकेंगे। बहरहाल सोमवार को होने जा रही इन दोनों घटनाओं का विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है।

चौंकाने वाला है नासा का DART मिशन

इस मिशन का नाम डार्ट DART है। इस मिशन में क्षुद्रग्रह डिडिमोस व डिडिमोस बी का मार्ग बदलना है। 24 नवंबर को 2021 में लॉन्च किया था । नासा ने इस एस्टीरॉयड को भेदने की तैयारी कई साल पहले शुरू कर दी थी और 24 नवंबर 2021 को कैलिफोर्निया के वैंडेनबर्ग स्पेस फोर्स बेस से अंतरिक्ष यान को स्पेसएक्स फाल्कन 9 रॉकेट के जरिए सफलतापूर्वक लॉन्च किया था। लंबी यात्रा तय करने के बाद यान डिडिमोस के करीब पहुंच चुका है। नासा का यह पहला ग्रह रक्षा परीक्षण मिशन है। जिस पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं। डार्ट का लक्ष्य क्षुद्रग्रह डिडिमोस की दिशा बदलना है। जिसमें एक का आकार 2,500 फीट (780 मीटर) व्यास का है। इसका साथी डिडिमोस बी 525 फीट (160 मीटर) व्यास है।

1996 में हुई डिडिमोस और डिडिमोस बी की खोज

क्षुद्रग्रह डिडिमोस और उसके साथी डिडिमोस बी 1996 का पता चला था। एरिज़ोना में किट पीक नेशनल ऑब्ज़र्वेटरी में स्पेसवॉच सर्वेक्षण ने इन दोनों क्षुद्रग्रह को खोजा था। डिडिमोस बी करीब 1 किलोमीटर से अधिक की दूरी पर अपने से बड़े डिडिमोस की परिक्रमा करता है। जिसे एक चक्कर पूरा करने में लगभग 12 घंटे का समय लगता है। खास बात यह है कि क्षुद्रग्रह का हमारे चंद्रमा की तरह ही एक हिस्सा सामने रहता है और सूर्य की रोशनी में चमकते रहता है।

खतरनाक श्रेणी में रखा है इन दोनो क्षुद्रग्रह को

वैज्ञानिकों ने डिडिमोस और उसके चंद्रमा डिडिमोस बी को संभावित रूप से खतरनाक क्षुद्रग्रह की श्रेणी में रखा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि खतरनाक श्रेणी के आने के बावजूद वह पृथ्वी के साथ टकराव के रास्ते पर आगे बड़ रहे हैं। फिलहाल ऐसा कुछ नहीं है। 2003 में यह दोनो पृथ्वी के काफी करीब आ गए थे। तभी इन दोनो को संभावित रूप से खतरनाक क्षुद्रग्रहों में वर्गीकृत किया गया था।

यह मात्र परीक्षण होने जा रहा है

नासा का यह केवल एक परीक्षण मिशन है। इस मिशन की सफलता पर दुनिया के खगोल वैज्ञानिकों की नजर है। अंततः यह मानव ही नहीं बल्कि समस्त प्राणियों की सुरक्षा का मिशन है। नासा इस मिशन को गतिज प्रभावक मिशन कहता है। इस मिशन में नासा का यान डिडिमोस बी को अपनी नियमित कक्षा से दूर धकेलेगा और बड़े क्षुद्रग्रह डिडिमोस का मार्ग बदल जाएगा। वह एक नए रास्ते में चल पड़ेगा। वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि इस टक्कर में डिडीमोस बी की गति में एक प्रतिशत बदलाव आ जाएगा, जबकि बड़े क्षुद्रग्रह की कक्षीय अवधि में कई मिनट का बदलाव आ जाएगा। इस बदलाव पर नजर रखने के लिए यान में सभी जरूरी उपकरण लगाए गए हैं साथ ही पृथ्वी की दूरबीनों से भी इस ऐतिहासिक मिशन को देखा जा सकेगा। बहरहाल इस घटना का सीधा प्रसारण देख सकेंगे।

 

 

70 साल बाद हमारे बेहद करीब होगा गुरु

सूर्य के विपरीत दिशा में बृहस्पति 70 साल बाद इतने करीब पहुंच रहा है। 591 मिलियन किमी की दूरी रह जाएगी धरती व गुरु की दूरी 3.953 खगोलीय इकाइ (एयू) रह जाएगी। यानी पृथ्वी से 367 मिलियन मील और किमी के हिसाब से 591 मिलियन किमी दूरी पर होगा। औसत दूरी के लिहाज से यह दूरी बहुत कम होगी। गुरु सौर मंडल का 5वां ग्रह है, जबकि पृथ्वी सूर्य से तीसरा स्थान का ग्रह है।सामान्य दिन में सूर्य से 460,718,000 मील (लगभग 741453748.99 किमी) दूर होता है।
आकार में बृहस्पति पृथ्वी से 11 गुना बड़ा है।

 

इधर सूर्य अस्त और उधर बृहस्पति हो रहा होगा उदय

सोमवार की शाम पश्चिम के आसमान में सूर्य अस्त हो रहा होगा तो ठीक इसके विपरित पूरब दिशा में बृहस्पति उदय हो रहा होगा । यह नजारा बेहद दर्शनीय होगा। आसमान की इस सुंदरता का गवाह बनने के लिए खगोल प्रेमी पूरी दुनिया में तैनात होंगे। नजदीक होने के कारण इसकी चमक काफी बड़ी हुई नजर आयेगी। लिहाजा इसे पहचान पाना बेहद आसान होगा। सभी तारों की तुलना में काफी बड़ा नजर आयेगा। इसकी चमक देखने लायक होगी।

 

 

अरोरा मनमोहक बनाते हैं गुरु के ध्रुवों को
बृहस्पति के उत्तरी और दक्षिणी दोनों ध्रुवों के ऊपर रंग बिरंगे औरोरा को भी देखा जा सकता है। यह एक दर्शनीय दृश्य है। जिसे दूरबीन के जरिए ही देख पाना संभव हो सकता है। मगर इसे देखने के लिए विशेषज्ञ की जानकारी जरूरी है। हाल ही में जेम्स वेब स्पेस टेकेस्कोप ने गुरु की कई तस्वीरें ली हैं। जी अद्भुत हैं और बेहद खूबसूरत हैं। गुरू के बारे में जितनी चर्चा की जाय बहुत कम है। इस बारे में जुपिटर अपोजीसन से पहले जिक्र करेंगे।

हर 13 महीने में करीब आता है गुरु

बृहस्पति ग्रह प्रत्येक लगभग 13 महीने में पृथ्वी के करीब पहुंचता है। इस घटना को ओपोजिशन कहते हैं। यानी सूर्य के ठीक विपरीत दिशा में बृहस्पति उदय हो रहा होता है और पश्चिम में सूर्य अस्त हो रहा होता है। इस वर्ष 26 सितंबर के बाद अगले वर्ष 2023 में 2 नवंबर विपरीत यानी हमारे करीब होगा। 2024 में 7 दिसंबर को और 2026 में 10 जनवरी गुरु सूर्य ओपोजीसन में होगा।

12 वर्ष लगते हैं बृहस्पति को सूर्य का एक चक्कर पूरा करने में

यह आप जानते ही होंगे कि यह विशाल ग्रह गैसीय है और तारा बनते बनते रह गया और आज हम इसे ग्रह के रूप में देखते हैं। यह भी कह सकते हैं कि स्वाभाविक रूप से, बृहस्पति एक तारा नहीं है। इसे सूर्य का एक चक्कर पूरा करने में लगभग 11 साल लग जाते हैं। इसका मतलब हुआ कि गुरु का एक वर्ष पृथ्वी के 11 साल के बराबर होता है। यह भी जान लीजिए कि बृहस्पति का एक दिन 9.93 घंटे का होता है और पृथ्वी पर 24 घंटे का दिन होता है।

श्रोत: EarthSky.org
And Aries scientist, India

 

 

 

 

EarthSky.org
Image via Arecibo/ NASA


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