दुनिया को तबाह करने
वाले पिंडों का अंतराष्ट्रीय दिवस है आज
दुनिया में भयानक तबाही मचाने वाले एस्टीरॉइड यानी लघु ग्रह (क्षुद्र ग्रह ) दिवस है आज। इन्होने डायनासोरों का अस्तित्व धरती से मिटा दिया। चेल्याबिंस्क जैसी विनाशकारी घटना 100 वर्ष में एक बार इन्ही से होती है और तुंगुस्का जैसी घटना शायद 300 वर्ष में एक बार होती है। इनके प्रति जागरूकता को लेकर हर वर्ष आज के दिन अंतराष्ट्रीय लघु ग्रह दिवस मनाया जाता है।
भारतीय तारा भौतिकी संस्थान बंगलुरु के रिटायर्ड विज्ञानी प्रो आर सी कपूर के जीवन का बढ़ा हिस्सा अंतरिक्ष के प्रति समर्पित रहा है। वह कहते हैं कि लघुग्रह का पृथ्वी से टकराना भयानक आपदा है। इनके प्रति जागरूकता को लेकर 2015 से 30 जून से अंतराष्ट्रीय लघु ग्रह दिवस के रूप में मनाया जाने लगा । इसका मुख्य उद्देश्य मानवता की रक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करना है। साथ ही ऐसी किसी आपदा से निबटने की तैयारी करना व सभी देशों को सम्मिलित हो कर विचार करना है। रूस के चेल्याबिंस्क में 15 फरवरी 2013 को घटी घटना ने विश्व के वैज्ञानिकों समेत स्थानीय लोगों को स्तब्ध कर दिया था। इस घटना से आसमान में एक बढ़ा बम फटा था। यह वास्तव में एक छोटा लघु ग्रह था जो अंतरिक्ष में विचरते हुए पृथ्वी के गुरुत्व बल के आकर्षण से हमारी ओर खिंचा चला आया । यह 19 मीटर आकार वाला 10 हजार टन का चट्टानी पिंड था। 65 हजार किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार से पृथ्वी के वातावरण से 20 किमी की ऊंचाई पर टकराया था। इतनी ऊंचाई पर फटने के बावजूद संकड़ों मकान क्षतिग्रस्त हो गए और 12 सौ लोग बुरी तरह ज़ख़्मी हो गए। अध्य्यन के अनुसार 500 किलोटन ऊर्जा विसरित हुई ,जो 1945 में हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम से तीस गुना अधिक थी। इससे एक शताब्दी पूर्व साइबेरिया में 30 जून 1908 की सुबह तुंगुस्का नदी के ऊपर एक भयंकर विस्फोट हुआ। इसकी शक्तिशाली प्रघाती तरंग से आसपास के 21सौ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 80 लाख पेड़ खाक कर दिए। तब स्थानीय लोगों को यह दैवी आपदा लगी थी, जबकि वैज्ञानिकों के अनुसार यह कोई 40 मीटर आकार का लघु ग्रह रहा होगा, जो अंतरिक्ष में विचरते हुए पृथ्वी के बेहद नज़दीक आ पहुंचा और गर्म होकर लगभग 85 सौ मीटर की ऊँचाई पर फट गया. इस घटना में 2.8 मेगाटन ऊर्जा विसरित हुई। यह क्षेत्र लगभग जनशून्य है। जिस कारण जान का खतरा नहीं हुआ।
पृथ्वी के निकट से रोजाना गुजरते है लघु ग्रह
आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज के वरिष्ठ खगोल विज्ञानी डा शशिभूषण पांडेय के अनुसार पृथ्वी के निकट से रोज़ाना हज़ारों-लाखों उल्काएं और अनेक लघु ग्रह गुज़रते हैं। उनमें अधिकांश उल्काएं पृथ्वी के वातावरण में 80-90 किलोमीटर की ऊँचाई पर जल कर नष्ट हो जाते हैं। इन्हें हम टूटते तारे के रूप में देखते हैं। इनमें बड़े आकार के पिंडों पर नज़र रखने की ज़रुरत होती है।
निबटा जा सकता है लघु ग्रहों से
डा शशिभूषण पांडेय के अनुसार पृथ्वी से टकराने वाले ग्रहों से निबटा जा सकता है। इन्हे आसमान में ही ध्वस्त किया जा सकता है। मगर यह तरीका थोड़ा खतरनाक हो सकता है। इनके अपने पथ से थोड़ा विचलित कर दूसरी कक्षा में स्थापित किया जा सकता है। पिछले वर्ष नासा के डार्ट मिशन ने दो लघु ग्रहों की कक्षा में बदलाव किया था। यह सुरक्षित तरीका है।
बहुमूल्य धातुओं से संपन्न भविष्य में होगा खनन
प्रो आर सी कपूर के अनुसार लघु ग्रह बहुमूल्य धातुओं से संपन्न होते हैं, जो हमारे लिए लाभदायक हो सकते हैं। भविष्य में इनमें खनन कर धातुओं को उपयोग लाने की योजना विज्ञानी बना रहे हैं। लोहे, निकिल , सोना, प्लैटिनम, इरीडियम, रहेनियम, पैलेडियम आदि दुर्लभ तत्व मौजूद होते हैं। इन पर खनन को लेकर 25 वर्षों से योजना बनाई जा रही है।
एपोफिस लघु ग्रह से है बढ़ा खतरा
एपोफ़िस नामक लघु ग्रह का आकार 340 मीटर है । यह 323.74 दिन में सूर्य का चक्कर लगता है. इसकी कक्षा दीर्घवृत्ताकार है ,जो पृथ्वी की कक्षा को पार करती है। इस पिंड से भविष्य में पृथ्वी का सामना हो सकता है। पूर्व में इस लघु ग्रह के पृथ्वी से टकराने की सम्भावना जताई गई थी। वर्त्तमान गणनाओं के अनुसार 2029 में 37400 किमी की दूरी से होकर निकल जाएगा।
श्रोत : वैज्ञानिक प्रो आर सी कपूर व डा शशिभूषण पांडेय।
फोटो: नासा:
Journalist Space science.
Working with India’s leading news paper.
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