सच बताने पर, वैज्ञानिक को जला दिया था जिंदा।

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 एलियंस खोज विशेष चैप्टर – 1 (युवा लेखक बबलू चंद्रा )

– जब अन्य आबाद ग्रहों, दूसरे सूर्य तारों के साथ परग्रहियों का सच बताने पर इटली के वैज्ञानिक को चौराहे में खूंटे से बांधकर जिंदा जला दिया गया था।

 

 अनादि अनंत विशाल ब्रह्मांड मे करोड़ो मंदाकिनियां, अरबों-खरबों तारे, लाखों सूर्य , पृथ्वी जैसे पिंड। उन लाखों तारों मे हमारे  जैसे सूर्य जैसा द्रव और सिर्फ पृथ्वी मे ही जीव-जगत का उदभव व विकास क्यों हुआ? हम सभी के मन मे केवल एक सवाल हिचकोले मारता है,  क्या जीवन का अस्तित्व सिर्फ हमारी पृथ्वी में ही सम्भव है??? विशाल विश्व ब्रह्माण्ड के अन्य लाखों-करोड़ों पिंडो मे जीव जगत संभव नहीं?
असीम ब्रह्मांड धरती में किसान के एक खेत जैसा है, खेत मे सिर्फ एक पौंधा नहीं उगता, ठीक वैसे ही अंतरिक्ष के खेत मे भी लाखों-करोड़ों प्रकाश वर्ष दूर धरती जैसे पिंड भी हो सकते है, जिनमें किसी भी रूप में जीवन हो।
प्राचीन काल से ही हम इनके बारे में सोचते आये हैं, भारतीय आख्यानों मे घुलोक, अन्तरिक्ष लोक, गन्धर्व लोक का उल्लेख बारम्बार आया है। हमारा चिंतन इसी बात पर आधारित है कि कालचक्र निरंतर घूमता है, ब्राह्मांड अनादि अन्नत है और इसमें अनेकानेक लोकों का अस्तित्व है।

 

महान गणितज्ञ – खगोलविद आर्यभट्ट ने  कहा है-

 कालोयमनाघन्तः। काल अनादि अन्नत है। अफलातून और अरस्तू जैसे विचारको ने भी विश्व में जीवन की विविधता को स्वीकार किया था।
सबसे पहले कौपर्निक्स (1473-1543) ने जब ये सिद्ध किया कि हमारी पृथ्वी सौर मंडल का केंद्रीय पिंड नहीं है। उसके बाद खगोल के प्रति दिलचस्पी और भी अधिक बढ़ गई।  चूंकि उसके पहले हमारे पूर्वज पृथ्वी को ही ब्रह्माण्ड का केंद्र मानते आए थे। वही जब इटली के ‘खगोलविद ” ज्यादानों ब्रूनो (1547-1600ई) ने यूरोपवासियो को बताया कि ब्रह्मांड मे हमारे जैसे अनगिनत सूर्य व पृथ्वी हैं और उनमें आबाद ग्रह व जीव-जगत भी हो सकता है, तो इस जानकारी की कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।  प्राचीनमतो को मान्यता देने वाली जनता ने उन्हें रोम नगर के एक चौराहे मे खूंटे से बांधकर जिंदा जला दिया। 

 

कौपर्निकस के सूर्यकेन्द्रवादी सिद्धान्त और दूरबीन की खोज से जनता और पौराणिक मतों को तब झटका लगा 

 

ब्रह्माण्ड के अनेकानेक पिंडो पर जीवन के अस्तित्व की संभावना को तब काफी बल मिला, जब गैलीलियो की दूरबीन 1609 से चांद एक निर्जीव पिंड सिद्ध हुआ। जहॉ दूरबीनों के आविष्कार से पहले के दूसरे परग्रहियों की दुनिया बताई जाती थी, तो वही आज 2022 मे हमने जेम्स जैसी शक्तिशाली दूरबीनों से अनन्त ब्रह्मांड में झाँकने की काबिलियत हासिल करने के साथ वहॉ की खोजबीन शुरू कर दी है।

 

हम मंगल पर तलाश करते रहे जीवन 

हम मंगल पर जीवन तलाशते रहे ।  
अनेक वैज्ञानिक मानते रहे हैं कि मंगल और पृथ्वी एक समान है और मंगल में भी जीवन का अस्तित्व जरूर होना चाहिए। महान वैज्ञानिक कार्ल फेडरिक गौस ने 1835 में मंगल पर बुद्धिमान प्राणियों के साथ संपर्क करने के लिए एक योजना बनाई और सोचा यदि मंगल मे इंसान है तो वे पाइथागोरस प्रमेय जरूर जानते होंगे। उन्होंने साइबेरिया के जंगल मे पाइथागोरस प्रमेय की एक विशाल आकृति खोदनी को कहा।
और उसी साल 1835 मे मंगल का अनुसंधान इतिहास मे दर्ज हुआ।  मंगल के चाँद फोबोस व देईमौस खोजे गए। उसी साल जिओवान्नी ने दूरबीन से मंगल की सतह पर सीधी लकीरो का जाल देखा और इन्हें पानी की संकरी नाली ‘कनाली नाम दे दिया। अब आम नागरिक की उत्सुकता बढ़ चुकी थी कि वहा हम जैसे प्राणियों का अस्तित्व जरूर होगा भी या नहीं। उसके बाद अमेरिकी खगोलविद प्रसिवल लोवेल ने अरिजोना फ्लैग स्टाफ अमेरिका में एक वेधशाला स्थापित की और कई सालों तक मंगल पर अध्ययन करने के बाद सन 1908 मे “‘ मंगल: जीवन का धारक'” नामक ग्रन्थ लिखा, उन्होंने मंगल पर इंसानों के होने का पुरजोर दावा किया। मंगल पर मानवों के निवास की मान्यता को उपन्यासकारों व लेखकों ने प्रचारित किया।  महान वैज्ञानिक कथानक ब्रिटिश उपनयासकार एच बी वेल्स ने 1898 मे अपने उपन्यास war of the world ग्रहों के युद्ध मे मंगलवासियो का काल्पनिक लेख विस्तृत रूप से किताब छाप कर कहा कि मंगलवासी पानी के लिए पृथ्वी पर आक्रमण करते रहे हैं।

1938 में कहा कि न्यू जर्सी में उतरने वाले हैं एलियन

 ओरसेन वेलेस ने 1938 मे वेल्स के इसी उपन्यास की बातों को रेडियो में प्रसारित कर कहा कि एलियन्स यान न्यू जर्सी मे उतरने वाले हैं। तब भय और रोमांच का माहौल बन गया।  और कहा गया कि पानी के लिए मंगवासी आ रहे हैं। 1957 मे अंतरिक्षयानो व शक्तिशाली दूरबीनो के दौर की शुरआत से मंगल के नये रूप से लेकर अब तक हम मंगल की नई जानकारियों से अवगत होते आ रहे हैं। कभी वहाँ एलियन की झोपड़ी के चित्र व कभी गुफाओं में आजतक शोध जारी है।

1957 से अंतरिक्ष अनुसंधान के युग का पदार्पण

वास्तव में 1957 से अंतरिक्ष अनुसंधान के युग का पदार्पण होने के बाद ,  ब्रह्माण्ड में जीवन की खोजबीन, जीवजगत जैसे ग्रहों की तलाश के विषय में वैज्ञानिकों समेत सभी की खगोल के प्रति दिलचस्पी बढ़ी है और अंतरिक्ष में जीवन की तलाश में प्रकृति के अध्यनन का महत्वपूर्ण विषय बन गया है।
वैज्ञानिकों ने अब करोड़ो मंदाकिनियों की खोज की है, हमारी आकाशगंगा की पड़ोसी  देवयानी मंदाकिनी  हमसे 20 प्रकाश वर्ष दूर है। इतने बड़े ब्रह्मांड मे जिसमें करोड़ो अरबों मंदाकिनियों का अस्तित्व है।  हमारी मंदाकिनी में सूर्य महज एक सामान्य तारा है ।  पृथ्वी में जीवन है तो  दुसरी  मंदाकिनियों मे अरबों तारो के अनगिनत ग्रह है।  spaceandtime के पिछले सूर्य पर लिखी  पोस्टों मे बता चुके हैं)  अनंत ब्रह्मांड में सौर मंडल व पृथ्वी जैसे भौतिक घटक अन्य पिंडो में भी पाए जाते हैं तो फिर उनमें क्यों नहीं है।  जीवन का सृजन और विकास सिर्फ हमारी धरती मे हुआ है ऐसा संभव कैसे हो सकता है, जबकि ब्रह्मांड मे जीवन के अस्तित्व के लिए बेशुमार संभावनाएं विद्यमान है।

 

जीवन की उत्पत्ति के घटक के कहाँ से आये
जीवन की उत्पत्ति के घटक  कहाँ से आये ? आज भी यह सवाल (पौराणिक, धार्मिक मान्यताओं को दरकिनार कर) वैज्ञानिक दृष्टि से जीवन की उत्पत्ति और विकास कैसे हुआ ये आज भी सोचनीय है।( जिसका संबंध अन्य ग्रहों व परग्रहियों से है) चार्ल्स डारविन व अल्पफ्रेड वालेस ने प्राकृतिक आधार पर विकासक्रम का एक सिद्धान्त दिया है। डारविन का विश्वाश रहा है कि धरती के आरंभिक इतिहास मे अजैव द्रव से, रासायनिक विकास के अंतर्गत, प्राथमिक जैव रूपों का प्रादुर्भाव हुआ था। जीवन की उत्पत्ति कुछ विशेष अनुकूल परिस्थितियों मे, अजैविक द्रव के विकास से हुई है। पर यहाँ भी यही सवाल कि वो जीव के उदभव के लिए ये जैव घटक कहाँ से आये या प्राप्त हुए ? इस सवाल को सुलझाने के लिए रूसी वैज्ञानिक इवानोचिन ओपरिन ने 1924 मे जीवन की उत्पत्ति नामक एक सिद्धान्त दिया।  कहा – जीव-जगत की उत्पत्ति एक संयोग नहीं बल्कि द्रव का विकास है। जीवन की उत्पत्ति से पहले जैव पदार्थों का संश्लेषण की क्रिया तीव्र रही उसके बाद स्वयं जीवधारियों धरती में जैव पदार्थो का सृजन करने मे जुट गए।उन्होंने सभी चरणों को स्पष्ट किया।  अन्ततः जीवधारियों का उदभव हुआ। मोटे तौर पर ये चरण- (1) एमिनो एसिडों जैसे छोटे अणुओं का संश्लेषण, (2) इन अणुओं से प्रोटीनों और न्यूक्लेइक एसिडों जैसे बड़े जीवाणुओं का संयोजन (3) इन बड़े जीवाणुओं  से अधिकाधिक जटिल  संगठन और(4) जीवन का उद्भव।

 शुरुआत में अन्य वैज्ञानिकों ने जे.बी. एस हाल्डेन व बर्नाल ने इस मत को परिष्कृत किया उसके बाद इस सिद्धांत का प्रयोगशाला मे परीक्षण किया गया। तरुण वैज्ञानिक स्टेनली मिल्लेर ने 1953 ई मे इसका महत्वपूर्ण परीक्षण व अध्ययन किया और कार्बन के स्रोत- मीथेन, नाइट्रोजन के स्रोत-ऐमोनिया, हाइड्रोजन और पानी के मिश्रण में विद्युत धाराएं छोड़ी। इस प्रयोग से उन्होंने एमिनो एसिड प्राप्त किया। उसके बाद अन्य विज्ञानिको ने ऊर्जा के स्रोत के लिए पराबैगनी किरणे, ऊष्मा-लैंप का उपयोग कर परिणाम प्राप्त किये। फिर वैज्ञानिक सिडनी फॉक्स ने परखनली मे तैयार एमीनो एसिड से लघु प्रोटीन घटक प्राप्त किये। 

 

पृथ्वी की उत्पत्ति 4.6 अरब साल पहले हुई

 

आपको बता दे कि पृथ्वी की उत्पत्ति 4.6 अरब साल पहले हुई। धरती पर जीवन का प्रादुर्भाव 3.5 अरब साल पहले यानि जीवन का उद्भव होने मे 1.1 अरब साल लगे।) वैज्ञानिकों का ये भी मत है कि आरंभ में पृथ्वी के वायुमंडल में ऑक्सीजन नहीं थी। इसकी उत्पत्ति बाद मे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के तहत हुई। इससे पहले मीथेन, ऐमोनिया, हाइड्रोजन व जलवाष्प की ही प्रधानता थी। मिल्लेर व फॉक्स के बाद कई वैज्ञानिकों ने प्रयोग किये और अन्य जटिल जैव घटक प्राप्त किए।
वर्तमान में अंतरिक्ष के पिंडों पर शोध बताते हैं कि जैव घटकों का रासायनिक संयोजन बाह्य ब्रह्मांड में भी हो सकता है।

फोटो –  Credit: Getty Images

श्रोत – वेब साइट्स

 

 


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