सूर्य का सच बताने मे वैज्ञानिको को झेलनी पड़ी थी प्रताड़ना

Share It!

     सूर्य के अतीत पर खास 
               ………………….
-पुराणों की दूरदृष्टि की शक्ति
-आधुनिक दौर मे दूरबीनो की शक्ति 
– सौर मंडल के केंद्र मे प्रमुख तारा
-जब सूर्य का सच बताने मे वैज्ञानिको को झेलनी पड़ी थी प्रताड़ना। 
   
सूर्य- हमारे सौर मंडल का सबसे प्रमुख हिस्सा तो है ही पुराणों मे गर्न्थो का भी मुख्य किस्सा रहा है। इसके तेज को पुराने जमाने मे ही जान लिया गया था । बस इसके महत्व को  समझने की कोशिश नहीं कि गई, जो  वर्तमान तकनीकी विकास के दौर मे निरंतर जारी है। हम चांद-अन्य तारों व ग्रहों को विशेष महत्व देते आए हैं। चांद मे जाने के प्रयास, उनकी कहानियां व चन्द्र की ही कविताएं सुनते आए है अन्य ग्रहों मे जीवन को तलाशते आये हैं, जबकि सूर्य जिसे प्राचीन काल मे केंद्र मे रखा गया, उसे ही पौराणिक गर्न्थो के श्लोक के रूप मे सर्वप्रथम पूजते आये हैं, सच्चाई भी यही है सूर्य ही हमारे सौर मंडल की धरती का पालनहार है और इसीके कारण हमारा अस्तित्व है । करीब पांच अरब साल पहले सूर्यताप और अनुकूल भौतिक परिस्थितियों मे ही अणु-परमाणुओं के मेल से प्राथमिक जीवों का प्रादुर्भाव हुआ,  ये भी माना जाता है। पृथ्वी को कुछ कम ताप या अधिक सूर्यताप मिलता तो पृथ्वी पर जीवन का विकास संभव नहीं हो पाता। सूर्य ने जीव जगत का निर्माण ही नहीं किया बल्कि इसका पोषण भी करता आया है । सारी ऊर्जा हमें सूर्य से मिलती है। ऋग्वेद के प्रसिद्ध गायत्री मंत्र-
“ॐ भू भुरवः स्वहः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमही धियो यो नः प्रचोदयात।।”
हम इस मंत्र को अपने हर धर्मिक कर्मों पूजा-पाठो मे जपते रटते आये हैं कभी इसके महत्व समझने की हम कोशिश नहीं करते,  जबकि उक्त मंत्र में इसके जैसे श्रेष्ठ तेज यानी ऊर्जा की ही याचना की गई है।
 वही दूसरी ओर तैत्तिरीय-संहिता मे एक जगह लिखा है चन्द्रमा सूर्य से भी दूर है, और वही दूसरा मत ये श्लोक भी लिखा है- “सूर्यरश्मीशचंद्रमा गंधरवः” यानी चन्द्रमा  सूर्य से ही चमकता है फिर भी उस जमाने मे कोई महात्माओं दार्शनिकों के पास जाते तो वो सूर्य से अधिक महत्व चाँद का बताते थे, (जैसे सूर्य दिन के उजाले मे चमकता है चांद तब चमकता है जब अंधरा होता है। इसलिए चन्द्र का अधिक महत्व है)। युनानिक दार्शनिक 300 ई पूर्व ने कहा था सूर्य उतना ही बड़ा है जितना बड़ा हमे  दिखाई पड़ता है, यूनानी वैज्ञानिक अनेक्सागोरस ने जब ईसवी से पांचवी सदी में पहली बार हिम्मत कर बताया कि सूर्य एक जलती हुई चट्टान है और इसकी लंबाई चौड़ाई 100 किमी है तो दूसरे यूनानी विद्वानों ने उनका जबरदस्त विरोध किया, विरोध और प्रताड़ना के कारण अनेक्सागोरस को अथेंस नगर छोड़ कर भागना पड़ा।
सूर्य की सही जानकारी हमें पिछले 100 डेढ़ सौ वर्षों से मिलती आ रही है
 सूर्य की दूरी और प्रकाश के वेग के बारे मे पहली बार सही आंकड़े फ्रांसीसी वैज्ञानिकों ने  17वी सदी के आठवें दशक में हमे दी। फिर (1642 व 1727)  आइजेक न्यूटन ने प्रकाश किरणों अध्ययन शुरू किया।
सूर्य के प्रताप की  गहराई को जानने व  पाठकों तक पहुंचाने वाले  युवा लेखक हैं बबलू चंद्रा।
Photo credit to Babalu.
श्रोत :गुणाकर मुले .

Share It!