ऐसे हुई थी आदित्य एल 1की शुरुआत
आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज नैनीताल , भारतीय तारा भौतिकी संस्थान बंगलुरु
व उदयपुर सोलर वेद्यशाला के वैज्ञानिकों की दूर व ऊंची सोच के चलते यह मिशन भारत को स्पेस प्रोग्राम में नई ऊंचाई दे सका।
भारतीय तारा भौतिकी संस्थान बंगलुरु (आईआईए ) के प्रो जगदेव सिंह का सपना था यह प्रोजेक्ट।
भारतीय सोलर आदित्य मिशन एल1 वैज्ञानिको के 21 वर्ष कड़े परिश्रम का नतीजा है। इस मिशन की शुरुआत 2002 में देश की तीन स्पेस एजेंसियों के संयुक्त प्रयास से इंडियन स्पेस सोलर मिशन के नाम से हुई और आदित्य एल 1 के नाम पर जाकर ठहरी।
पहले यह मिशन पृथ्वी की निचली कक्षा लोवर ऑर्बिट के लिए बनाया जा रहा था। जिसे बनाने में आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज के तत्कालीन सौर वैज्ञानिक डा वहाबउद्दीन, भारतीय तारा भौतिकी संस्थान बंगलुरु आई आई ए के प्रो जगदेव सिंह व उदयपुर सोलर वेद्यशाला के प्रो वेंकट कृषणन शामिल थे। जिसके डिजाइन समेत कागजी कार्रवाई करने में करीब चार साल का समय लगा। मगर इसके बाद इस मिशन का दायरा बढ़ाने की जरूरत महसूस हुई और नए सिरे से इसकी तैयारी शुरू हो गई। इस बीच भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो के अधिकारियों द्वारा मिशन के दिशा निर्देश दिए जाते रहे । नई योजना में पुरानी चीजों को यथावत रखा गया और इसमें कुछ नए उपकरण ईजाद किये जाने की जद्दोजहद शुरू हो गई। यह मिशन पृथ्वी से 600 किमी ऊंचाई तक तैयार किया जा रहा था। जिसमें आदित्य 90 मिनट में पृथ्वी का चक्कर पूरा कर सकता था, लेकिन कमी यह थी कि 90 मिनट के दौरान आधा समय उस हिस्से से गुजरना था, जहां सूरज का प्रकाश नही होता था। मगर तत्कालीन तकनीक उतनी उन्नत नही थी, लेकिन फिर भी इसे सूरज के अध्ययन के माकूल बनाने के लिए आवश्यक उपकरण इजाद किये जाने की जरूरत पर जोर दिया गया। इस कार्य में कुछ समय और अधिक बीत गया। इसके बाद अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा व यूरोपीय स्पेस एजेंसी ईसा के सोहो की तर्ज पर बनाये जाने के साथ, उससे भी अधिक उन्नत उपकरण बनाये जाने की मुहिम शुरू हुई। यह मुहीम इतनी कारगर थी कि देश को विश्व में अलग पहचान देने वाली थी। तब तक इस मिशन में वैज्ञानिकों का बड़ा समूह शामिल हो गया और इसे बनाने का जिम्मा भारतीय अंतरीक्ष अनुसन्धान संगठन इसरो को सौंप दिया गया। जिसमें इसरो के साथ देश की कई स्पेस एजेंसियां जुड़ चुकी थी । साथ ही एल 1 पॉइंट पृथ्वी से 15 लाख किमी की दूरी तक पहुचाने की जमीनी तैयारी कर 2012 में प्रस्ताव बनाकर भारत सरकार को भेज दिया और 2013 में भारत सरकार ने इसे हरी झंडी दिखा दी । तब तक इस मिशन को अपने हाथ ले चुका था और सभी तैयारियों के बाद 2 सितंबर 2023 को लॉन्च कर दिया गया।
बहुआयामी है यह मिशन
आदित्य एल 1 का महत्वपूर्ण हिस्सा रहे आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज के पूर्व निदेशक व सौर वैज्ञानिकी डॉ वहाब उद्दीन कहते हैं कि उनकी मेहनत अब रंग लाने जा रही है। यह मिशन इतना बड़ा है कि शुरुआत में तब हम इसकी कल्पना तो कर सकते थे , लेकिन आर्थिक आधार पर यह सम्भव नही था। मगर जितनी भी देर हुई, उसके सही नतीजे सामने आए। आज इस मिशन की महत्ता इसलिए अधिक बढ़ गई है कि नासा व ईसा का मिशन सोहो का कार्यकाल समाप्ति की ओर है और हमारा मिशन अंजाम तक पहुचने को तैयार है।
श्रोत :एरीज
फोटो:इसरो
लेखक: बबलू चंद्रा
Journalist Space science.
Working with India’s leading news paper.
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