ये है अभी तक का सबसे बढ़ा जी आर बी महा विस्फोट, पृथ्वी तक पहुंची आंच

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ये है अभी तक का सबसे बढ़ा जी आर बी विस्फोट, पृथ्वी तक पहुंची आंच

अंतरीक्ष में छोटे मोटे विस्फोट आम बात है, लेकिन महाविस्फोट कभी कभार ही होते हैं अब जो विस्फोट देखा गया है वह अभी तक का सबसे बढ़ा विस्फोट बताया जा रहा है। यह गामा-रे बर्स्ट (जी आर बी) विस्फोट है। यह विस्फोट इतना भयानक था कि इसकी आंच पृथ्वी के आयन आयनमंडल तक पहुंच गई। पृथ्वी के वातावरण में हलचल पैदा करने वाले विस्फोट कतई मामूली नही हो सकता। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह विस्फोट ब्लैक होल बनने के कारण हुआ है।

पृथ्वी भी अछूती नहीं रही इस भयानक विस्फोट से

अनंत सागर में फैले ब्रह्माण्ड के रहस्यों की थाह पाना आसान नही है। नित नए शोध व अत्याधुनिक तकनीक आ जाने से जानकारियां मिलना कुछ तो आसान हो ही गया है, जो खगोलविदों के पिछले चार सौ के निरंतर प्रयास के बाद संभव हो पाया है। अब जो नई जानकारी सामने आई है, वह चौंकाने वाली है। इस खोज में अभी तक के सबसे चमकीले गामा रे ब्रस्ट को देखा गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ब्रह्माण्ड में यह इतना बढ़ा सुपरनोवा विस्फोट था कि इसकी हलचल पृथ्वी भी अछूती नहीं रही।

ब्लैकहोल से उत्पन्न हुआ जीआरबी 221009ए विस्फोट
खोजकर्ता वैज्ञानिकों के अनुसार इस चमकीले गामा-रे बर्स्ट जीआरबी 221009ए में अरबों प्रकाश-वर्ष दूर आकाशगंगा में एक तारे के ब्लैक होल बनने से उत्पन्न हुआ है। विस्फोट से विकिरण के रूप में हमारी मिल्की वे आकाशगंगा से होते हुए पहुंची। इस विकिरण को मिल्की वे के धूल के बादलों का सामना करना पड़ा। मिल्की वे का धूल का सामना करने पर विकिरण को बिखेर दिया। जिस कारण गैस के बादलों को जबरदस्त रोशनी उत्पन्न हुई।

2.4 बिलियन प्रकाश-वर्ष दूर हुआ था विस्फोट

इस विस्फोट में निकली रोशनी छल्ले के रूप में दिखाई दी। यह विस्फोट अब तक के सबसे अधिक चमकीला माना जा रहा है। खास बात यह है कि एक तारे के ब्लैक होल बनने के दौरान यह विस्फोट हुआ है, जो पृथ्वी से 2.4 बिलियन प्रकाश-वर्ष दूर हुआ और इसने पृथ्वी के आयनमंडल को विचलित कर दिया। इसी वजह से एक्स-रे विकिरण ने हमारी मिल्की वे आकाशगंगा में फैली धूल को रोशन कर दिया।

पिछले सप्ताह खुलासा हुआ इस रहस्य का

खगोलविदों ने पिछले सप्ताह वैकोलोआ, हवाई में अमेरिकन एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी की हाई एनर्जी एस्ट्रोफिजिक्स की बैठक इस खोज का खुलासा किया। इस खोज में इटली स्कुओला यूनिवर्सिटीरिया सुपरियोर, वलोडिमिर सवचेंको, जिनेवा विश्वविद्यालय व स्विट्जरलैंड के वैज्ञानिक शामिल रहे।

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श्रोत : अर्थ स्काई।
फोटो: नासा।


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