फिर जगी उम्मीद दुनिया की सबसे बड़ी दूरबीन टीएमटी की

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दुनिया की सबसे बड़ी दूरबीन होगी टीएमटी 

गहरे आसमान के अनंत सागर में झांक पाना खगोल वैज्ञानिक की सबसे बड़ी कल्पना रही है, लेकिन तमाम प्रयास के बाद भी यह सपना आज तक साकार नहीं हो पाया है और यह सपना आज भी सपना ही बना हुआ है। इस सपने को साकार करने के लिए पांच देशों ने एक बड़ी योजना तैयार की थी, लेकिन कई साल बीतने के बाद भी उसे मूर्त नही दिया जा सका है। यह योजना थर्टी मीटर टेलीस्कोप (टीएमटी) की है। जिसे हवाई में मौना केआ पर बनाए जाने की योजना है। यह ऑप्टिकल टेलीस्कोप है, जो डार्क मैटर व ब्रह्माण्ड में कहीं जीवन की खोज में बड़ी भूमिका निभा सकती है। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय और अन्य देशों में भागीदारों के साथ कैलिफोर्निया प्रौद्योगिकी संस्थान के साथ इस परियोजना का उद्देश्य उत्तरी गोलार्ध में अब तक की सबसे बड़ी दूरबीन का निर्माण करना है। मगर विरोध के चलते इस दूरबीन का निर्माण कार्य शुरू नही हो सका है। इस दूरबीन में भारत की भी भागीदारी है।

टीएमटी को लेकर जगी उम्मीद की किरण

अच्छी बात यह है कि 30 मीटर व्यास की ऑप्टिकल दूरबीन के निर्माण की आशा की किरण जगने लगी हैं। अमेरिकन एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी (एएएस) की पिछले सप्ताह हुई बैठक में टीएमटी के अनिश्चित भविष्य पर फिर से विचार विमर्श शुरू हो गए हैं। इस योजना को केंद्र ने ले लिया। खास बात यह है कि मौना के भविष्य के उपयोग की देखरेख के लिए डिज़ाइन किए गए एक नए हवाई निकाय के तीन सदस्यों ने खगोल विज्ञान और अन्य गतिविधियों के लिए टाउन हॉल चर्चा की गई। इस पैनल के बन जाने से वैज्ञानिकों का विश्वास फिर से जागा है और खुशी व्यक्त की है।

परियोजना को लेकर गठित 11 सदस्यीय टीम

जुलाई 2022 में गठित, 11-सदस्यीय मौना के स्टीवर्डशिप एंड ओवरसाइट अथॉरिटी (MKSOA) में वेधशाला के प्रतिनिधि, मूल हवाईयन सांस्कृतिक चिकित्सक, स्थानीय व्यवसाय और शिक्षा अधिकारी और भूमि प्रबंधन के विशेषज्ञ शामिल हैं। यह दल दूरबीन को लेकर गंभीरता से कार्य कर रहा है।

भारत  दस फीसद का हिस्सेदार है इस परियोजना में

यह दुनिया की अभी तक की सबसे बड़ी दूरबीन होगी। इस योजना को अमली जामा पहनाने के लिए कई देशों ने अपने हिस्से के कार्य शुरू कर दिए है। जिनमें भारत ने भी अपने कार्य कुछ वर्ष पहले शुरू कर दिए थे। भारत की इस योजना में दस प्रतिशत की हिस्सेदारी है। भारत में सरकारी समेत कई गैर सरकारी संस्थाएं इसमें कार्य कर रही हैं।

 ये देश शामिल हैं इस परियोजना में

अमेरिका, चीन, जापान, भारत और कनाडा इस परियोजना में शामिल हैं। इन सभी देशों के सरकारों से पर्याप्त वित्तीय सहायता दी है, लेकिन यह अभी भी पूरी तरह से वित्त पोषित नहीं है । इस परियोजना को 2014 में हरी झंडी मिल गई थी, और हवाई में दूरबीन लगाई जानी थी, लेकिन स्थानीय लोगों ने इस परियोजना का विरोध शुरू कर दिया। जिस कारण अति महत्वाकांक्षी इस योजना को शुरू ही नही किया जा सका। मगर अब कुछ उम्मीद फिर से नजर आने लगी हैं। बहरहाल यदि सारी बढ़ाएं दूर हो भी जाती हैं तो फिर भी इस दूरबीन को स्थापित करने के दशकभर का समय तो लग ही जाएगा।

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श्रोत: कैलिफोर्निया प्रौद्योगिकी संस्थान।

फोटो: एरीज।


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