अद्भुत आश्चर्य व अजूबे से कम नहीं क्रैब निहारिका
क्रैब नेबुला ब्रह्माण्ड का वह रहस्य है, जो अपनी खोज से अभी तक रोमांच बना हुआ है। अथाह गहराइयों में छिपी यह निहारिका किसी अजूबे से कम नहीं है। इसका आकार केकड़े जैसा है। जिस कारण इसका नाम केकड़ा ही रखा गया है। इस नेबुला को किसी तारे के सुपरनोवा का अवशेष माना जाता है। इसे सबसे पहले चीनी खगोलविदों ने 4 जुलाई, 1054 ईसवी में तब देखा, जब दिन का समय था। दिन होने के बावजूद वह किसी तारे के समान चमक रहा था। यह आश्चर्यजनक घटना थी। यह नेबुला रातों को भी आसमान में इतनी चमक के साथ दिखाई देता था कि जिसे देखकर खगोलविद हैरान हो जाते थे। यह नेबुला रंग बिरंगे गैसों का विशाल बादल है, जो आज भी तेज गति से फैल रहा है। इसे आसमान में आसानी से देखा जा सकता है। दुनिया की कोई भी ऐसी वेधशाला नही है, जिसने इस अजूबे नेबुला की खाक नही छानी हो। नासा की अंतरीक्ष में स्थापित दूरबीन हवल भी कई एंगल से इसकी तस्वीरें लेकर हम तक पहुंचा चुका है। आइए कुछ विस्तार से इस नेबुला के बारे में जानते हैं। हमसे यह नेबुला 6,500 प्रकाश-वर्ष दूर है।
23 दिन तक दिन के उजाले में दिखाता रहा यह नेबुला
चीनी खगोलविदों ने 4 जुलाई, 1054 ईसवी को दिन के समय आकाश में एक चमकते तारे को पहली बार देखा। तब यह इतना चमक रहलहा था कि इसने असमान में चमकते सबसे चमकीले ग्रह शुक्र को पीछे छोड़ दिया, और अस्थायी रूप से सूर्य और चंद्रमा के बाद आकाश में तीसरी सबसे चमकीली वस्तु बन गई थी। तब वैज्ञानिकों ने कहा कि यह अतिथि सितारा है। खास बात यह थी कि वह लगभग 23 दिनों तक दिन तक दिन के उजाले में दिखाई देता रहा। रात में यह तियांगुआन के पास चमकता था। तारा जिसे अब हम ज़ेटा तौरी कहते हैं, वृषभ राशि के तारामंडल में यह लगभग दो वर्षों तक देखा गया। इसके बाद वह दृष्टि से ओझल हो गया।
1758 से इसे M1 के नाम से पहचान मिली
वर्ष1731 तक आकाश में इस नेबुला का कोई विवरण नही है। साथ ही इस स्थान में कुछ भी असामान्य होने की कोई रिपोर्ट नहीं है। इसके बाद अंग्रेजी शौकिया खगोलशास्त्री जॉन बेविस ने एक मूर्छित अस्पष्ट छाया का अवलोकन दर्ज किया। 1758 में फ्रांसीसी धूमकेतु शिकारी के नाम से विख्यात चार्ल्स मेसियर ने धुंधला पैच देखा और उनकी सूची में यह नेबुला पहली प्रविष्टि बन गई जो धुंधली तो थी लेकिन धूमकेतु नहीं थी। जिसे अब मेसियर कैटलॉग के रूप में जाना जाता है। इस प्रकार क्रैब नेबुला का नाम M1 पड़ गया। इसके बाद 1844 में खगोलशास्त्री विलियम पार्सन्स , तीसरे अर्ल ऑफ़ रॉसे ने आयरलैंड में अपने बड़े टेलीस्कोप के माध्यम से M1 का अवलोकन किया। क्योंकि उन्होंने इसे एक केकड़े जैसी दिखने वाली आकृति के रूप में वर्णित किया और यहीं से इस नेबुला का उपनाम क्रैब यानी केकड़ा पड़ गया।।
क्रैब के दिल में है न्यूट्रॉन तारा
क्रैब नेबुला एक अंडाकार गैसीय नेबुला है जिसमें ठीक फिलामेंटरी (धागे जैसी) संरचनाएं देखने को मिलती हैं, जो लगभग 930 मील यानी 1,500 किमी प्रति सेकंड की तेज गति से फैलती हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नेबुला के हृदय में सूर्य के द्रव्यमान के बराबर एक न्यूट्रॉन तारा है। जिसका व्यास केवल 12 मील (19 किमी) है। इतना ही नहीं यह न्यूट्रॉन तारा एक पल्सर भी है जो प्रति सेकंड लगभग 30 बार घूमता है। साथ ही, न्यूट्रॉन स्टार का शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र तारे द्वारा उत्सर्जित विकिरण को दो बीमों के रूप में केंद्रित करता है। जिस कारण वह समय-समय पर चमकते हुए दिखाई देते हैं।
हबल ने खोले क्रैब के कई रहस्य
हबल स्पेस टेलीस्कॉप ने 2016 में क्रैब नेबुला के केंद्र की तस्वीर ली थी। विशेष रूप से, नेबुला के केंद्र में एक तेजी से घूमने वाला न्यूट्रॉन स्टार को फोकस किया था। इसे पल्सर के रूप में जाना जाता है। यह छवि के केंद्र के पास दो सितारों में सबसे दाहिनी ओर है। वास्तव में, वैज्ञानिकों को लगता है कि न्यूट्रॉन स्टार से निकलने वाली उच्च गति वाली हवाओं से अत्यधिक ऊर्जावान कणों को ढेर करने वाले शॉकवेव के कारण गोलाकार विशेषताएं पल्सर से बाहर निकलती हैं।
8.4 मैग्निट्यूट है इसकी चमक
यह सुंदर नीहारिका 8.4 मैग्निट्यूट के साथ चमकती है। यह कई चमकीले सितारों के पास स्थित होने के कारण इसे आसानी से दूरबीन से देखा जा सकता है। साथ ही यह कई पहचानने योग्य नक्षत्रों के पास है। यूं तो इसे पूरे वर्ष रात के किसी समय देख सकते हैं, लेकिन मई से जुलाई तक के बीच सूरज के बहुत करीब होने के कारण थोड़ा मुस्कुल होता है, तो इसे देख पाने सबसे अच्छा समय बसंत के शुरुआती वसंत में होता है।
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श्रोत: अर्थ स्काई
फोटो: हबल ।
Journalist Space science.
Working with India’s leading news paper.
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