– *अदभुत जूपिटर के अनोखे चाँद*
*किसी मे बर्फ ही बर्फ तो किसी मे सैकड़ो सक्रिय ज्वालामुखी व लावा*
– *लाल धब्बा अभी भी खगोलविदों के लिए अबूझ पहेली*
*सदाबहार ख़ुबसूरत अरोरा के तापमान के हालिया शोध ने हैरत मे डाला*
बृहस्पति यानि जूपिटर जिसके पौराणिक व वैज्ञानिक पहलुओं को हम इससे पहले अध्याय मे बता चुके हैं। गैलीलियो ने जब पहली मर्तबा अपनी दूरबीन से इसके चार चांदो को देखा तो अन्य खगोल विद्वानों व पुराने मतों मे कायम रहने वाले लोगों ने इस बात मानने से साफ इंकार कर दिया था कि ब्रह्मांड मे हमारे चाँद के अलावा अन्य चाँद भी हो सकते हैं और उन चांदो को जिन्हें गैलीलियो ने सबसे पहले देखा व खोजा था उन चार चांदो को आज *गैलीलियो के चाँद* भी कहा जाता है। खगोलविद अब तक 80 चाँद को खोज कर चुके है जो बृहस्पति की परिक्रमा करते है। ओर विशाल जूपिटर के साथ ही इसके चार चांद भी विशालता के लिए प्रमुखता से जाने जाते हैं। ये चार चांद है- ग्यानीमेड, आईओ, यूरोपा व काललिस्टो।
*बर्फ से ढके व सक्रिय ज्वालामुखी वाले है जूपिटर के चाँद*
बृहस्पति चार चांद मुख्य है जिनमे तीन चाँद हमारे (पृथ्वी) के चाँद से भी बड़े हैं। ग्यानीमेड जो व्यास मे बुद्ध ग्रह(4850 किमी) से भी बड़ा है। गैलीलियो चाँद मे पहला *आईओ* जिसका व्यास 3600 किमी है, ये जूपिटर के सबसे करीब है। ये लगभग 43 घण्टो मे जुपिटर की परिक्रमा पूरी कर लेता है। इस चाँद की खास बात गए है कि इसमें अत्यंत सक्रिय सैकड़ो ज्वालामुखी देखे जा चुके हैं। ये ज्वालामुखी निरंतर एक तरल गंधक उगलते रहते हैं जिसका कारण अभी तक स्पष्ट नहीं है, वैज्ञानिक इसमें शोधरत है। दूसरा चाँद *यूरोपा* है जो गैलीलियो के चाँदो मे सबसे छोटा है। इसका व्यास 3100 किमी है, और ये बर्फ के कवच से ढका हुआ है। वैज्ञानिकों का मत है कि यहाँ बर्फ के नीचे पानी का एक गहरा व विशाल महासागर हो सकता है जिसमे सूक्ष्म जीव जगत का अस्तित्व भी हो सकता है। इसके राज जानने व जीवन की संभावना को तलाशने के लिए 30 सितम्बर 2022 को नासा का अंतरिक्ष यान *जूनो* यूरोपा के करीब पहुँचा था और इसकी करीबी तस्वीरें धरती को भेजी है जिनके शोध के बाद राज सामने आने बाकी हैं।
तीसरा चाँद *ग्यानीमेड* है जो सौर मंडल का सबसे बड़ा चाँद है इसका व्यास 5260 किमी है। जो बर्फ व चट्टानों का एक बड़ा पिंड है। चौथा गैलीलियो चाँद *काललिस्टो* है इसका व्यास 4800 किमी है। ये भी बर्फ व चट्टान का गोला है। जूपिटर के अन्य चाँद छोटे हैं। हमारा यानि पृथ्वी का चाँद लगभग चार लाख किमी (400000) की दूरी से पृथ्वी की परिक्रमा करता है जबकि बृहस्पति के अंतिम कुछ चाँद करीब ढाई करोड़ किमी दूर से बृहस्पति का चक्कर लगाते हैं। और दूर के अंतिम चांदो की एक खास बात ये भी है कि ये उलटी दिशा मे जूपिटर की परिक्रमा करते हैं। इसके चांदो की अन्य बातें भी अदभुत है जिनका इनके नजदीक पहुँचकर ही अध्ययन किया जा सकता है खगोलविद इसके लिए प्रयासरत हैं। फिलहाल जूनो के बाद नासा का क्लिपर मिशन 2024 मे यूरोपा की सैर करेगा और अन्य जानकारी धरती तक भेजेगा।
*जूपिटर का लाल धब्बा अभी भी अबूझ पहेली*
सूर्य से अधिक दूर होने के कारण जूपिटर मे सूर्य का ताप बहुत कम पहुँचता है, इसलिए इसके वायुमण्डल का तापमान शून्य से नीचे 150 डिग्री सेंटीग्रेट रहता है। इसका वायुमंडल बहुत घना है। दूरबीन से जूपिटर को देखने मे हमें इसके लाल भूरे व गुलाबी कई पट्टे ही दिखाई हैं जो इसके सघन वायुमंडल के तूफान है जो वर्षों से बिना थमे बिना रुके यात्रा पथ मे बढ़ते ही जा रहे हैं। साथ ही जूपिटर के दक्षिणी गोलार्द्ध मे एक *लाल-गुलाबी रंग का विशाल धब्बा* है, जो इसकी एक अनोखी पहचान बन गया है। इसे 1665 मे खोजा गया था और 1830 मे पहली बार इसे देखा गया। यह धब्बा 40000 किमी लंबा (चालीस हजार) व चौदह हजार किमी 14000 किमी चौड़ा है पर ये घटता-बढ़ता रहता है साथ ही अपनी जगह से इधर-उधर खिसकता भी रहता है। जूपिटर मे मात्र ये धब्बा ही इतना विशाल है कि इसमें हमारी जैसी तीन पृथ्वीयां आसानी से समा सकती हैं। वैज्ञानिक इस धब्बे की पहेली सुलझाने मे अभी तक प्रयासरत हैं। ये भी माना जा रहा है कि ये डब्बा बृहस्पति मे उठे एक बड़े चक्रवात का तूफान है। इस विशाल दाग के नजदीक ही एक और छोटा लाल धब्बा भी है जो पहले पीले-सफ़ेद रंग मे नजर आता था पर 2006 के शोध के दौरान ये तेजी से लाल रंग मे बदलता जा रहा है।
*सदाबहार ख़ुबसूरत अरोरा जूपिटर की पहचान*
हमारी धरती के धुर्वीय क्षेत्रों मे खूबसरत अरोरा के ख़ुबसूरत मनमोहक नजारे कभी-कभार (सूर्य तेजोग्नि के दौरान) ही नजर आते है जबकि बृहस्पति मे ये अरोरा हमेशा सदाबहार रहते हैं हालिया दिनों मे हुई एक नई खोज ने वैज्ञानिकों को एक नई हैरत मे डाल दिया जो है बृहस्पति के अरोरा बनने वाले धुर्वीय क्षेत्रों का तापमान। हाल के दिनों मे किये गए शोध मे ये बात सामने आईं है कि *इसके धुर्वीय क्षेत्रों का तापमान 700 डिग्री सेल्सियस है* जबकि धुर्वीय क्षेत्रों मे तापमान माईनस होना चाहिए। साथ पृथ्वी की अपेक्षा सूर्य से बहुत दूर होने के कारण वहॉ सूर्य ताप बहुत कम पहुँचता है। जिसके कारण इसके *वायुमंडल का तापमान शून्य से नीचे लगभग 150 डिग्री सेल्सियस* रहता है। इसके घने वायुमंडल के कारण हम सिर्फ इसके बाहरी वायुमंडल को ही देख सकते हैं। फिर भी वैज्ञानिक इसके नजदीक से अध्य्यन के लिए प्रयासरत है ओर नित नए प्रयत्नों को अंजाम दे रहे हैं।
*जूपिटर की करीबी खोजबीन ओर इसके चाँद मे उतरने के प्रयत्न*
सौर मंडल के इस पांचवे विशाल ग्रह मे अंतरिक्षयानों से खोजबीन शुरू हो चुकि है। धरती से दिसम्बर 1973 मे भेजा गया पायोनियर-10 यान बृहस्पति के करीब से गुजरकर आगे बढ़ गया। अगले वर्ष पायोनियर-11 भेजा गया। 1979 मे दो वाइजर यान बृहस्पति के नजदीक से गुजरकर आगे बढ़ गए इन यानो ने ही बृहस्पति ओर इसके चांदो के बारे मे ढेरों सूचनाएं एकत्र कर धरती को भेजी। मुख्य रूप से जूपिटर के अध्ययन के लिए भेजे गए *गैलीलियो यान को 1993* मे इस ग्रह की ओर भेजा गया। जो 1995 मे इसके करीब पहुँचा ओर सूचनायें धरती तक पहुँचायी। बृहस्पति के एक खास बात ये भी है कि यहॉ भी शनि ग्रह की तरह ख़ुबसूरत वलय इस ग्रह मे भी है। जिसकी खोज वाइजर-1 द्वारा धरती को भेजी एक तस्वीर मे हुआ। फिर वाइजर-2 ने बृहस्पति के इर्दगिर्द वलय होने की पुष्टि की। 2011 मे भेजा गया जूनो यान अभी हाल मे 29 सितम्बर 2022 को इसके चाँद के करीब पहुँच कर इसकी जानकारी धरती को भेज दी है 2024 मे नासा का क्लिपर यान यूरोपा की सैर करेगा और नए राज उगलेगा। इस तरह जुपिटर की टोह लेने का सिलसिला शुरू हो गया है मानव निकट भविष्य मे यहाँ पहुँचना चाहे तो अभी सिर्फ इसके चाँद यूरोपा मे ही उतर सकता है। देर सवेरे इसके इस या अन्य चाँद मे आदमी उतर ही जायेगा और सौर मंडल के सबसे बड़े ग्रह के वातावरण मे उतरने की कोशिश भी तभी करेगा जब इसके नजदीक के राज खुलेंगे ओर अनुकूल परिस्थितिया मिलेंगी।
*ऐसा अदभुत है जूपिटर, अनोखे है इसके चाँद, सदाबहार अरोरा है इसकी पहचान जहॉ तापमान 700डिग्री सेल्सियस पार वहीं वातारण मे माइनस 150 के करीब। चांदो मे है बर्फ पानी का सागर व चट्टान तो वहीं सैकड़ो सक्रिय जवालामुखी व उनका लावा*
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लेख-बबलू चन्द्रा
फोटो -विपीडिया
स्रोत-ब्रह्मांड परिचय
Journalist Space science.
Working with India’s leading news paper.
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