आया दो पूंछ वाला धूमकेतु आसमान की छटा बिखेरने

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आया दो पूंछ वाला हरा नया रोमांचकारी धूमकेतु
धूमकेतुओं का संसार भी बड़ा निराला है। यह सौर मंडल के आँखिरी छोर से आते हैं और सूर्य की परिक्रमा कर वापस लौट जाते हैं। अपना अनोखा रंग बिखेरते हैं और हमारी आंखों का तारा बन जाते हैं। कभी हरे तो कभी चमकीले रंग में नजर आते हैं। मगर इस बार जो धूमकेतु आ रहा है, वह और भी निराला है। यह दो पूंछ वाला है। एक पूंछ गहरे हरे रंग की है तो दूसरी सफेद रंग में रंगी है।  इन दिनों वह दुनियाभर के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। इसके आकर्षण ने इसे क्रिसमस धूमकेतु का नाम दे डाला है।
*सौर परिवार के ही सदस्य हैं लंबे बाल वाले कॉमेट*
यदा-कदा आसमान मे प्रकट होने वाले धूमकेतुओं ने आदमी को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। पुराने जमाने मे लड़ाइयां युद्ध बीच मे रुक गए, राजाओं ने इन्हें देख कर गद्दी छोड़ी, राजाज्ञाएं जारी हुई, इन्हें देख कर जनता-जनार्दन भयभीत हुई चूंकि सदियों से इन्हें भय का संदेश वाहक समझा जाता रहा है। पर आज हम जानते हैं कि ये हमारे सौर परिवार के दूर के रिश्तेदार है जो सूर्य की परिक्रमा करते हैं।
धूम का अर्थ है धुँवा ओर केतु का पताका इसलिए आकाश मे धुंवे की पताका जैसा दिखने के कारण इन्हें धूमकेतू नाम दिया गया। इन्हें पुच्छल तारा भी कहा जाता है। जबकि खगोल शब्दावली मे इन्हें यूनानी भाषा के कोमेतेस्स शब्द से लिया गया और कॉमेंट कहा गयाजिसका अर्थ है लबे बालों वाला।
बहुत जल्द वह पृथ्वी के करीब पहुंचने जा रहा है।
 इस धूमकेतु का वास्तविक नाम धूमकेतु जेडटीएफ सी/2022 एफ3 है, जबकि पश्चिमी देशों ने इसका नाम क्रिसमस कॉमेंट दे डाला है। बहरहाल यह धूमकेतु नजर आना शुरू हो गया है।  इन दिनों दूरबीन इसे फोरबीन से बखूबी निहारा जा सकता  है।  इस धूमकेतु की दो पूंछ निकल आई हैं। जिस कारण इसकी झलक पाने को खगोल प्रेमी बेहद उत्साहित हैं तो धूमकेतुओं की दुनिया की निगरानी करने वाले वैज्ञानिक इसके नजदीक आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।
एक धूल की तो दूसरी गैस की पूंछ है
 इस धूमकेतु का व्यवहार भी अजीबोगरीब है। जिस कारण इसकी दो पूंछ निकल आई हैं। इसकी एक पूंछ धूल व कंक्कड़ो से बनी हुई है, जो हरे रंग की है और  दूसरी पूंछ आयन की बनी हुई है। आयन यानी  पूंछ गैस से बनी हुई है, जो सोलर विंड से बनी हुई है। इसका रंग सफेद के साथ चमकीला है। धूल से भरी पूंछ घुमावदार है। वैज्ञानिकों का कहना है धूल के कारण ही इस धूमकेतु की कक्षा का पता लग पाता है। इसके आकर्षण का मुख्य कारण हरा रंग है, जो इसके वातावरण को हसीन बना रहे हैं।
ज्विक्की ट्रैंजिएंट फैकल्टी (जे टी एफ) की खोज है यह धूमकेतु
ज्विक्की ट्रैंजिएंट फैकल्टी JFT ने इसी वर्ष मार्च में इस धूमकेतु को खोज निकाला था। जैसे जैसे वह आगे बढ़ता गया, इसका रूप रंग भी निखरता चला गया। खोज के बाद से ही इस धूमकेतु पर वैज्ञानिकों की नजर बनी हुई है। दूरबीनों से इसकी निगरानी की जा रही है और इसके हर पल की जानकारी जुटाई जा रही है।
12 जनवरी को पहुंचेगा सूर्य के करीब
 यह धूमकेतु 12 जनवरी सूर्य के करीब पहुंचेगा। तब सूर्य से इसकी दूरी को 1.11 एयू रह जाएगी। इसके बाद वह पृथ्वी के करीब आना शुरू करेगा और आगे बढ़ता हुआ  एक फरवरी को पृथ्वी के सार्वाधिक नजदीक पहुंच जाएगा। तब पृथ्वी और इस धूमकेतु के बीच की  दूरी  0.28 एस्ट्रोनोमिकल यूनिट (एयू ) रह जाएगी। इस धूमकेतु का आकर्षण  5 व 6 फरवरी की रात देखने को मिलेगा। तब इसे नग्न आंखों से देखा जा सकेगा।
क्या कहते हैं वैज्ञानिक
खगोल वैज्ञानिक डा शशिभूषण पांडेय के अनुसार हमारे सौर मंडल में धूमकेतुओं की महत्ता को कम करके नहीं आंका जा सकता है। इसकी वजह धूमकेतुओं में अकूत जल है, जो बर्फ के रूप में मौजूद रहता है और माना जाता है कि इन्ही के कारण पृथ्वी समेत अन्य ग्रहों में पानी पहुंचा है।  धूमकेतु हमारे सौर मंडल के दूर के ठंडी जगहों के पिंड हैं, जो सूर्य की परिक्रमा करते हैं और वापस अपनी कक्षा में लौट जाते हैं। कभी कभी सूर्य के इतने करीब पहुंच जाते हैं कि सूर्य से टकराकर समाप्त हो जाते हैं।
धूमकेतुओं से होती है ऊल्काई वर्षा
आसमान का सबसे बड़ा आसमानी आतिशबाजी है, जो धूमकेतुओं द्वारा छोड़े गए मलवे से होती है। जब भी कोई धूमकेतु पृथ्वी के मार्ग से गुजरता है तो धूल कंक्कड़ का ढेर छोड़ जाता है। और जब पृथ्वी उस मलवे से होकर गुजरती है तो वह धूल के कण पृथ्वी के वातावरण में रगड़ खाकर जल उठते है और तब आतिशी नजारा देखने को मिलता है।
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सहयोग: बबलू चंद्रा
श्रोत: एलन सी. टफ द्वारा मेयहिल, न्यू मैक्सिको में टेलीस्कोप का उपयोग करना; रॉबिन्सन, टेक्सास के जॉनी बार्टन।
फोटो: माइकल जैगर ने मार्टिंसबर्ग ऑस्ट्रिया में  वेधशाला से।

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