भारत मे शाम 4.29 बजे से दिखना शुरू होगा सूर्यग्रहण* 25 अक्टूबर को लगने जा रहे ग्रहण पर खास

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*सूर्यग्रहण – छादयति शशी सूर्य शशिनं महति च भूच्छाया- आर्यभट्ट*

– *आर्यभट्ट की सही व सच बात को ज्योतिषियों ने भी नहीं माना**

भारत मे शाम 4.29 बजे से दिखना शुरू होगा सूर्यग्रहण*

– *साल का अंतिम व दूसरा सूर्यग्रहण यूरोपीय, उत्तरी अफ्रीका, मिडलिस्ट व मध्य एशिया के पश्चिमी हिस्सो से दिखेगा*

हमारे देश मे ब्रहाण्ड के ग्रहों-उपग्रहों तारो- नक्षत्रों की कल्पनाओं के उल्लेख को विशेष महत्व दिया गया है। *महत्व है भी* पर वर्तमान दौर मे इन्हीं कोरी कल्पनाओ को तोड़-मरोड़ कर दुष्परिणामो को ही अधिक महत्व दिया गया है स्वच्छ वास्तविकता व महत्व अभी भी धुंधले प्रकाश तक ही पहुँच पाया है जबकि 2022 मे विज्ञान आज दूसरी दुनिया ग्रह मे जीवन तलाशने की ओर नित नए कदम बढ़ा रहा है। ब्रह्मांड की अधिकतर कल्पनाएं व जानकरी अभी भी अंधेरी गुफाओं मे ही गुमराह रह कर रोशनी की राह तकता आया है, और हम वहॉ झाँकने से कतराते आये हैं। ग्रहों सूर्य चाँद तारो सहित अंतरिक्ष की पुरानी कहावतों को अन्य ही अर्थो मे बदल दिया गया है। सौर परिवार के हमारे सबसे महत्वपूर्ण सदस्य चाँद व सूर्य ( प्राचीनकाल मे इन्हें भी ग्रह माना गया है) तब उस जमाने मे इन्हें कोरी आंखों से ही देखा गया, रात को खुले आसमान मे सो कर चाँद को निहारा गया और किस्से गढ़ दिए गए, अधिकतर इन्ही के बारे मे सोचा गया और कोरी कल्पनाओ के किस्से कहानियों मे मढ़ दिया गया। वैदिक काल मे सोचा गया था कि कोई स्वर्भानु (राहु) नाम का राक्षस जब सूर्य को ग्रास लेता है, तब सूर्य-ग्रहण होता है। मगर खगोल विज्ञान साक्ष्यों के साथ सच्चाई बयान करता है।  *महान खगोलविद आर्यभट्ट ने अपने आर्यभट्टीय ग्रन्थ 499 ई मे साफ-साफ लिखा है कि- छादयति शशी सूर्य शशिनं महति च भूच्छाया* यानि (सूर्यग्रहण मे) चन्द्रमा सूर्य को ढक लेता है और (चंद्र-ग्रहण मे) पृथ्वी की बड़ी छाया चन्द्रमा को ढक लेती है। किसी राहु या केतु द्वारा सूर्य या चन्द्र को निगल जाने( ग्रसने) की बातें गलत हैं। फिर भी सूर्य-ग्रहण व चंद्रग्रहण के समय हमारे देश मे बहुत से लोग अन्धविश्ववासियो की बताई कोरी बातों पर  विश्वाश कर अंतरिक्ष के अनछुए पहलुओं से दूर  होते रहे है। जबकि *आर्यभट्ट* पहले ऐसे भारतीय गणितज्ञ व खगोलविद थे जिन्होंने सूर्यग्रहण व चन्द्रग्रहण की सही जानकारी के साथ स्पष्ट कहा था कि था पृथ्वी अपनी धुरी मे पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है इसलिए तारे पश्चिम को जाते नजर आते हैं और उनकी इस सही व सच बात को उनके बाद भी  भारतीय ज्योतिषीयो ने स्वीकार नहीं किया। क्योंकि प्राचीन काल मे माना जाता था पृथ्वी अचल है और ब्रह्मांड के केंद्र मे स्थित है। जबकि आज हम खगोलविदों के अथक मेहनत के शोधों की बदौलत अंतरिक्ष की अधिकतर जानकारी व हकीकत से रुबरु हो चुके हैं ।*वैज्ञानिको को ग्रहण का रहता है बेसब्री से इंतजार अध्य्यन से जुटाते है जानकारी*

सूर्य जिसे हम नग्न आखों से कभी नहीं देख सकते और देखना भी नहीं चाहिए आंखों की सुरक्षा के लिए विशेषकर बच्चों को। पर सूर्य के प्रकाशमंडल का ऊपरी वर्णमंडल व परिमंडल इन्हें हम सिर्फ खग्रास सूर्यग्रहण के समय ही देख सकते हैं। आरम्भ मे सूर्य के वातावरण की अधिकतर जानकारी खगोलविदों को सूर्यग्रहण के दौरान ही मिली है। वैज्ञानिक इस ग्रहण के लिए बेसब्री से इंतजार करते है और ग्रहण देखने के लिए दूर दूर सात समुंदर पार तक कि यात्राएं करते हैं। जहॉ ये ग्रहण पूर्ण दिखता है।अधिकतर जानकारी खगोलविदों को पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान ही मिली है। वैज्ञानिक इस ग्रहण के लिए बेसब्री से इंतजार करते है और ग्रहण देखने के लिए दूर दूर सात समुंदर पार तक कि यात्राएं करते हैं। जैसे 1995 का सूर्य ग्रहण सिर्फ अफ्रीका के सहारा मरुस्थल से ही दिखना था तो कई देशों के वैज्ञानिकों ने वहॉ पहुँच कर ग्रहण के दौरान सूर्य के कोरोना का अध्ययन किया। खग्रास सूर्य ग्रहण के समय चाँद सूर्य के प्रकाशमंडल को पूरा ढक देता है।  हमे चाँद की काली परिधि के ऊपर सिर्फ सूर्य की सतह का लाल रंग का एक वलय दिखाई देता है। इसे ही वर्णमंडल कहते हैं । जो सूर्य के आभामंडल  में 10 हजार किमी की ऊंचाई तक होता है। अतितप्त गैसों की ज्वाला लपटे यहॉ फौवारे की तरह उठती रहती हैं। इन्हें ही सौर ज्यालाएँ कहते हैं। सौर ज्यालाएँ लाखो करोड़ो किमी ऊपर उठ कर वापस सूर्य की सतह मे गिरती है। परिमंडल ही वास्तव मे सूर्य का वायुमंडल है। ग्रहण के समय चाँद जब सूर्य को ढक लेता है तो तभी हम इसके चमकीले परिमंडल को देख सकते हैं।जबकि कोरी कल्पनाओ मे आज भी ग्रहण देखने को मना किया जाता है। और इसके दुष्प्रभावों का ही बखान किया जाता है। मगर खगोलविद् कहते हैं कि सूर्य को सिर्फ नग्न आंखो से देखने मे बचना चाहिए , आंखों को नुकसान न हो इसलिए विशेष चश्मो व काली डार्क एक्स रे फिल्म व कैमरे की पुरानी रील से देख सकते हैं।

*भारत में शाम 4.29 बजे से दिखना शुरू होगा सूर्यग्रहण* 25 अक्टूबर को यूरोप, उत्तरी अफ्रीका, पश्चिमी एशिया में नजर आयेगा आंशिक सूर्यग्रहण* 

25 अक्टूबर को लगने जा रहा साल का अंतिम सूर्यग्रहण भारत से 26 फीसद ग्रहण लगा सूर्य नजर आयेगा। यह आंशिक सूर्यग्रहण है, जो दुनिया के सीमित हिस्सों में नजर आयेगा। सूर्य का अधिकांश 50 फीसद भाग ग्रहण की चपेट में आयेगा।

आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज के वरिष्ठ सौर विज्ञानी व  निदेशक डा वहाबउद्दीन ने बताया के अनुसार  सूर्यग्रहण उत्तर भारत  में शाम 4.29 बजे शुरू हो जाएगा, जबकि पूर्वी भारत में ग्रहण 4.52 बजे से देखा जा सकेगा। भारत में सांय 6.03 बजे सूर्य ग्रहण की छाया से मुक्त हो जाएगा। दक्षिण भारत में सांय 5.14 बजे ग्रहण शुरू होगा, जबकि पश्चिम भारत में शाम 4.38 बजे शुरू होगा। दक्षिणी भारत में शाम 5.14 बजे से ग्रहण शुरू होगा। दुनिया के अन्य कुछ ही हिस्सों में आंशिक सूर्यग्रहण रहेगा, जो भारतीय समय के अनुसार दोपहर 2.28 बजे से ग्रहण चंद्रमा की छाया में आना शुरू होगा और शाम 6.32 तक देखा जा सकेगा। साल का अंतिम  सूर्यग्रहण यूरोपीय देश, उत्तरी अफ्रीका, मिडलीस्ट व एशिया के पश्चिमी हिस्सों में ग्रहण देखा जा सकेगा। सूर्यग्रहण को नग्न आंखो से देखना खतरनाक हो सकता है। लिहाजा सूर्यग्रहण  विशेष चश्मे से देखा जाते है। उन्ही से ग्रहण को देखें।

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बबलू चंद्रा

श्रोत: ब्राह्मण परिचय व सौर वैज्ञानिक डा वहाबउद्दीन (एरीज) india

फोटो : बबलू चंद्रा ( फाइल फोटो)


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