मिल्की – वे के मायावी तारों का रहस्य

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अब रहस्य नहीं रहे मायावी तारे

हमारी आकाशगंगा मिल्की – वे के केंद्र में रूप बदलने वाले मायावी तारों का अनोखा संसार है। इनका अजीबोगजीब व्यवहार रहस्य बना हुआ था। अचानक नजर आना और गायब हो जाने को लेकर इन्हें भूतिया तारे कहा जाने लगा था। अब इनका रहस्य उजागर हो चुका है। यह रहस्य पिछ्ले एक दशक से बना हुआ था।
वैज्ञानिकों को मिल्की वे के केंद्र में तारों का भूतिया जैसा व्यवहार विचलित करता था। यह सोचने के किये मजबूर करता था कि आखीर यह पहेली क्या है। करीब एक दशक से इस रहस्य को समझने के प्रयास किये जा रहे थे। मगर कई साल बीत जाने के बावजूद इस पहेली का हल नही हो सका था। मगर अब इसका पर्दाफाश हो चुका है। खोजकर्ता वैज्ञानिकों के अनुसार ये ब्रह्मांडीय भूत ग्रहीय नीहारिकाऐं गैस के बादलों के रूप में मौजूद होते हैं । जिन्हें मरने वाले तारे अपने जीवन के अंत में बाहर निकाल देते हैं और वह अचानक गायब होने व फिर से नज़र आने लगते हैं। जिस तरह से तितलियां अपने पंख खोल या बंद करती हैं, इनका व्यवहार भी उसी तरह का हो जाता है। वैज्ञानिक कहते हैं कि जब सूर्य जैसे तारे के मूल में परमाणु संलयन के लिए ईंधन खत्म हो जाता है और लगभग 5 अरब वर्षों में यह एक लाल विशालकाय के रूप में विकसित हो जाता है और आंतरिक ग्रहों को निगल जाता है, तो यह एक सफेद बौने तारे के आसपास गैसीय अवशेष छोड़ देता है। हमारे सूर्य के अंत समय की प्रक्रिया भी इसी तरह से होगी। यह शोध एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स के ताजा अंक में प्रकाशित हुआ है।

आकाशगंगा की गतिशीलता के प्रति सोच गहरी करती है यह खोज
मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के खगोल वैज्ञानिक अल्बर्ट ज़िज्लस्ट्रा इस खोज को लेकर कहते हैं कि ग्रहीय निहारिकाएं हमें हमारी आकाशगंगा के मध्य में झांकने के लिए एक खिड़की प्रदान करती हैं और यह अंतर्दृष्टि आकाशगंगा के उभार क्षेत्र की गतिशीलता और विकास के बारे में हमारी समझ को गहरा करती है। वास्तव में अभी बहुत कुछ समझने की जरूरत है। अनंत में फैले अंतरिक्ष की गहराई की कोई थाह नही है। जिसे समझने के लिये काफी लंबा समय लगेगा। हमारी आने वाली पीढ़ियां इस काम को आगे बढ़ाएगी।
श्रोत: अर्थ स्काई
फोटो: हबल व अन्य दूरबीन।


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