*एरीज की संपूर्णानंद टेलीस्कोप ने भारत को दिलाई दुनिया में पहचान – स्वर्णजयंती*

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*नैनीताल संपूर्णानंद दूरबीन की 50 वी वर्षगाँठ मंगलवार को*
*400 शोधपत्रों के साथ पांच अंतरराष्ट्रीय शोधो का कीर्तिमान अपने नाम कर चुकी 104 सेमी टेलीस्कोप*
*भारत मे सबसे पहली जीआरबी ( गामा रे विस्फोट) की खोज कर रचा कीर्तिमान*
*शनि ,युरेनस व नए तारो मे अब तक हो चुके है कई शोध*
*1974में दो साल मे बनकर तैयार हुई टेलीस्कोप का 50वॉ स्थापना दिवस 17 को *
आदिकाल से ही इंसान आकाश को निहार कर ये सोचता आया है कि आकाश मे ये टिमटिमाते दीपों की तरह जगमगाते ये दीप क्या हैं? क्यों चमकते है किस ईंधन से जलते हैं? सूरज इतना तेज क्यों चमकता है? आकाश कितना बड़ा है कहॉ तक फैला है? अंतरिक्ष मे हमारी जैसी कितनी पृथ्वी होंगी? क्या उनमें भी मानव बस्ती होगी? ये तमाम सवाल आदिकाल से ही धरतीवासी के मन मस्तिष्क मे विचरण करते रहे हैं। खगोलविदों ने आमजनमानस के इन्हीं सवालों के जवाब ढूढ़ने व रहस्यों का पता लगाने के लिए वहॉ तक झाँकने की उनकी तस्वीरों के विश्लेषण कर तथ्यों का आंकलन कर अन्तरिक्ष के राज से पर्दा उठाने के लिए जिस शशक्त माध्यम का निमार्ण किया है वो ये दूरबीन ही हैं।
ब्रह्मांड मे यदि किसी नए तारे, नए ग्रह, पिंडो, क्षुद्रग्रहों, निहारिकाओं, मंदाकिनियों सहित अनंत ब्रह्माण्ड मे कोई शोध व नई खोज करनी हो तो वर्तमान मे हमारे पास अब तक सिर्फ दो साधन हैं उनमें पहला है ब्रह्मांड मे करोड़ो किमी तक झाँकने वाली दूरबीन दूसरा भौतिकी के गणितीय नियम। 1609 मे गैलीलियो के दूरबीन के आविष्कार के बाद आधुनिक टेक्नॉलॉजी के क्षेत्र मे मानव के बढ़ते कदमों ने आज जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप जैसी शक्तिशाली दूरबीन का निर्माण कर लिया है। जिससे आज ब्रह्माण्ड के अंच्छुएं पहलुओं से रूबरू होने के साथ ही रोचक रहस्यों को जानने मे भी आसानी हो गई है। वहीं दूरबीनो के नित नए आविष्कार वैज्ञानिकों के विशेष शोधों मे अहम हिस्सा भी बन गई हैं।
इसी कड़ी मे 17 अक्टूबर को नैनीताल मनोरा पीक स्थित आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) मे स्थित 104 सेमी व्यास की सम्पूर्णनाद दूरबीन भी अपने 50वे वर्ष पर स्वर्ण जयंती मना रहा है। सन 1969 मे दूरबीन के प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद सन 1972 मे दूरबीन का निर्माण शुरू हुआ और जिसे स्थापित होने मे दो वर्ष का समय लगा और  अक्टूबर 1974 को दूरबीन पूर्णतः तैयार हो गई। अविभाजित उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व तत्कालीन शिक्षा के नाम पर इस दूरबीन सम्पूर्णानंद टेलीस्कोप नाम दिया गया। तब से अब तक इस दूरबीन से सैकड़ो शोध पत्रों के साथ अंतरराष्ट्रीय शोध मे अपनी अहम भूमिका निभाई है । जिसके चलते भारत को दुनिया में अलग पहचान दिलाई है।

प्रो संपूर्णानंद
प्रो बेनू बापू
प्रो ए एन सिंह। यह तीन नाम हैं, जिनकी दूर दृष्टि, अथक प्रयास व सहयोग से यह दूरबीन मील का पत्थर साबित हुई।

संपूर्णानंद से भारत में पहली बार हुई जीआरबी गामा रे ब्रस्ट यानी बड़े तारे के विस्फोट की खोज

ये गौरव की बात है कि इस दूरबीन के जरिए वह कीर्तिमान स्थापित हो सका, जिसे बताने में गर्व महसूस होता है। गामा रे ब्रस्ट ये ब्रह्माण्ड के बड़े तारों में होने वाला विस्फोट है। जिसकी भारत से पहली बार खोज हो सकी। इस खोज ने दुनिया को एहसास करा दिया था कि भारत ने खगोल विज्ञान की दुनिया में कदम रख दिया है और निकट भविष्य में वह तेज गति से आगे बड़ेगा और दुनिया में आसमान के किसी टिमटिमाते हुए तारे की तरह जगमगाएगा। इस को दो दशक से अधिक समय हो चुका है और इस छोटे से अंतराल में भारत खगोल विज्ञान के क्षेत्र में विश्व के चन्द विकसित देशों की पंक्ति में आ खड़ा हुआ है। वर्तमान में भारत चौथे स्थान पर खड़ा नजर आता है।

संपूर्णानंद की अनंत आसमान में खोज का सफर

एरीज की संपूर्णानंद ने अनंत में फैले खोज का सफर 1980 से शुरू किया। सबसे पहले हमारे सौर मंडल के ग्रह यूरेनस के छल्लों का पता लगाया। इसके बाद इस दूरबीन की निगाह शानदार शनि के छल्ले पर पहुंची और शनि के छल्लों के कई रहस्य उजागर किए। नेपच्यून को देखा और इस दूर के ग्रह को समझा। इसके साथ ही धूमकेतुओं को अपनी दृष्टि देखा और लंबी पूंछ वाले कॉमेट्स को अपने सीडीडी कमरे में कैद किया। इसके बाद अपने सौरमंडल से बाहर की दुनिया में झांकना शुरू किया और कई नए तारों की खोज की। जिसमें वह तारे भी खोजे , जो को पूर्णरूप से विकसित नहीं हो सके और बौने बनकर रह गए।

बौने तारों की दुनिया को सीमित समझा जाता था

बौने तारों को लेकर समझा जाता था की उनकी संख्या सीमित ही हो सकती है। मगर एरीज के वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया कि बौने तारों की संख्या सीमित नहीं हैं। हालाकि इस खोज के लिए एरीज के वैज्ञानिकों को दूसरे देशों में स्थित बड़ी दूरबीनों का सहारा भी लेना पड़ा था। इस खोज का श्रेय एरीज के पूर्व निदेशक डा अनिल कुमार पांडे को जाता है। ये बेहद दुख की बात है कि डा अनिल कुमार पांडे अब हमारे बीच नहीं रहे। कोविड महामारी उन्हे हमसे छीन ले गई।

संपूर्णानंद की महत्वपूर्ण खोजें

मात्र 104 सेमी दूरबीन आकार में भले ही मामूली नजर आए, लेकिन इसके कारनामें बहुत बड़े हैं, जो दूर के तारों की चाल ढाल को देखने की क्षमता रखती है। जिसमें बायनरी तारों की खोज के महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है तो अनेक प्रकार के तारों की जानकारी जुटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके अलावा भी इस दूरबीन ने अनेक खोजें की हैं। जिनके बारे में फिर कभी spaceandtime.in में जिक्र किया जाएगा।

पूर्वी जर्मनी से मगाये गए थे इस दूरबीन के उपकरण

104 सेमी की इस दूरबीन के उपकरणों को पूर्वी जर्मनी से लाना पड़ा था। तब के हिसाब से यह दूरबीन अत्याधुनिक थी। मगर समय के साथ तकनीक भी विकसित होते चली गई और इसका विस्तार भी होता चला गया। जिसके चलते 1980 के दशक में सीसीडी डिजिटल कैमरे का आविष्कार हो चुका था और तत्काल इस अत्याधुनिक charge coupled divice सीसीडी कैमरे को इस दूरबीन से जोड़ दिया गया।

डा शशिभूषण पांडेय कहते हैं कि इस कैमरे की सुविधा उपलब्ध हो जाने के बाद इस दूरबीन ने दूरगामी परिणाम देने शुरू कर दिए। जिसके चलते एरीज की इस दूरबीन से दूर के तारों समेत मंदाकिनी, निहारिकाएं व तारों के समूहों को देख पाने की क्षमता बड़ गई और खोज का सफर तेजी से आगे बड़ने लगा और आज हम इसकी स्वर्ण जयंती का गवाह बनने जा रहे हैं। 17 अक्टूबर 2022 को स्वर्णजयंती समारोह के उद्घाटन में वह सभी वैज्ञानिक शामिल होने जा रहे हैं, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्षरूप से इस दूरबीन से जुड़े रहे हैं।

प्रो दीपांकर बनर्जी, जो वर्तमान में एरीज के निदेशक हैं और कहते हैं कि बेहतर रखरखाव के चलते इस दूरबीन की स्वर्णजयंती का जश्न मनाने जा रहे हैं। अब हमारी कोशिश रहेगी कि इसकी बेहतर मेंटिनेंस कर इसका कार्यकाल 50 साल तक आगे बढ़ाया जाय और अगले 50 साल बाद, हमारे ही तरह दूसरे लोग संपूर्णानंद दूरबीन का शताब्दी वर्ष का जश्न मनाएं।

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श्रोत व फोटो: डा शशिभूषण पांडेय, आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान, नैनीताल, भारत


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