*इंग्लैंड के संगीतज्ञ ने खोजा सातवां ग्रह यूरेनस (अरुण)*

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*- *इंग्लैंड के संगीतज्ञ ने खोजा सातवां ग्रह यूरेनस (अरुण)*
– *नैनीताल एरीज की संपूर्णानंद दूरबीन ने इसके ख़ुबसूरत (छल्लों) वलय खोज रोशन किया नैनीताल व देश का नाम*
– *दूरबीन से खोजा जाने वाला पहला ग्रह था यूरेनस*
– *ग्रहों की पौराणिक गाथा व कैसे हुआ यूरेनस का नामकरण संस्कार*
पौराणिक काल से ही हमारे देश भारत मे नौ ग्रहों को प्रमुख माना गया है आख्यानों मे सूर्य चाँद को भी ग्रह का दर्जा दिया। सूर्य, सोम (चंद्र), बुध, शुक्र भौम (मंगल), गुरु ( बृहस्पति), शनि, राहु व केतु। इन्हीं नवग्रहों को मूर्ति बनी है और उन्हें ही पूजा होती रही है और आज भी होती है। पर वर्तमान दौर के खगोल विज्ञान के अनुसार सूर्य एक तारा है और चाँद उपग्रह राहु व केतु आकाश मे महज काल्पनिक बिंदु हैं। तब वास्तविक ग्रह पांच ही थे बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति व शनि इन्हें पूर्वजो ने हज़ारो साल पहले ही पहचान लिया था। हमारी पृथ्वी भी एक ग्रह है पर इसे नवग्रहों मे स्थान नहीं मिला। हम ये नहीं जानते कि प्राचीन काल से ज्ञात पांच ग्रहों की खोज सबसे पहले किसने की थीं? कब और किस देश मे हुई थी? मगर शनि से अधिक दूर हमारे सौर मंडल मे जो नए ग्रह खोजे गए हैं हम उनका इतिहास जानते हैं और पढ़ते है भी कि कब कौन सा ग्रह खोजा गया था। बाद के ये नए ग्रह 100 से 200 साल पूर्व ही खोजे गए है। और इनकी खोज की कहानी भी बेहद दिलचस्प है।
ग्रहों की इन्ही खोज मे एक है *यूरेनस* अरुण जो हमारे सौर परिवार का सातवां व चौथा सबसे बड़ा ग्रह है। खगोल-विज्ञान मे ग्रहों को जिन भौतिक आधार व नियमो के अंतर्गत खोजा जाता है या खोजे गए है उनमें पहला है * गणितीय नियम व दूसरा साधन है दूरबीन* केपलर ने ग्रहों की गतियों के नियम खोजे, गैलीलियो ने आकाश के अवलोकन के लिए दूरबीन का इस्तेमाल किया व न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत दिए। इसके बाद वर्तमान दौर की हज़ारो प्रकाश वर्ष दूर झाँकने वाली दूरबीनों ने फोटोग्राफी से आकाश के पिंडो को ख़ोजने मे अपना योगदान दिया। आज हमने शक्तिशाली दूरगामी जेम्स वेब जैसी दूरबीनो का निर्माण कर भी लिया है और उसके निष्कर्ष भी सामने आने लगे । केपलर व न्यूटन के सिद्धांत आकाश के पिंडो का सटीक निर्धारण नहीं कर सकते थे ना ही गैलीलियो की पुरानी दूरबीन दूर के पिंडो को ख़ोजने मे सक्षम थी। इसलिए उस दौर के यूरोपीय लोग सोचते थे कि आकाश के बारे मे वे लगभग सबकुछ जान गए हैं।
इसी दौरान इंग्लैंड के पेशे से एक संगीतज्ञ जो महज शौक के लिए रात भर आकाश को अपनी दूरबीन से झाँका करते थे उन्होंने 13 मार्च 1781 को आकाश मे एक नया ग्रह खोज कर तहलका मचा दिया और पुराने खागोलविदो को पूरी तरह चकित कर दिया। ये शौकिया खगोलविद थे विलियम हर्शेल पुश्तैनी वाद्य-संगीतज्ञ। महज शौक के लिए आकाश को अपनी दूरबीन से निहारा करते थे। नित निहारते आकाश का अवलोकन करते-करते उन्होंने एक दिन एक नया पिंड खोजा ओर इस पिंड को आज हम *अरुण ( यूरेनस)* के नाम से जानते है। महज 19 साल की उम्र मे ही इंग्लैड मे बाथ नामक शहर मे इन्होंने पिता से मिली विरासत को पेशे के रूप मे अपनाकर संगीत शिक्षक का काम शुरू कर दिया था। और शौक के लिए दूरबीनों का निर्माण करने के साथ ही खगोल-विज्ञान के अध्ययन भी जारी रखा और आकाश का अवलोकन भी। नई-नई दूरबीन बनाकर कई धूमकेतू खोजे व लगभग 2500 निहारिकाओ की एक सारणी भी तैयार की। उनके पुत्र जॉन हर्शेल भी एक महान खगोलविद हुए। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका मे शोध करते 2000 निहारिकाओ और उतने ही जुड़वां तारों की एक सारिणी प्रकाशित की। विलियम हर्शेल ने 1781 मे मिथुन तारा मंडल मे जिस नए ग्रह की खोज की थी उस दूरबीन के दर्पण का व्यास महज 16 सेमी था। जिसे वे धूमकेतू समझते थे पर जल्द ही ये स्पष्ट हो गया कि वो एक ग्रह है।
*कैसे पड़ा नाम यूरेनस*
सौर मंडल के नए ग्रह को ख़ोजने पर पूरे यूरोप मे हर्शेल का नाम मशहूर हो गया। यहॉ तक इंग्लैंड के राजा ने उन्हें अपना निजी खगोलविद नियुक्त कर दिया। हर्शेल इस नए खोजे ग्रह को राजा का नाम (जॉर्जियम सिड्यूस) देना चाहते थे, मगर अन्य देश व वैज्ञानिक इस नाम पर राजी नहीं हुए। फिर इसे यूरेनस नाम दिया गया। *यूनानी-रोमन पौराणिक आख्यानों मे यूरेनस जूपिटर (बृहस्पति) के पितामह और शनि यानी सैटर्न के पिता है*। इसलिए शनि की कक्षा से परे खोजे गए इस नए ग्रह को यूरेनस नाम दिया गया। हमारे सौर मंडल मे विशाल पिंडो की गिनती मे ये चौथे नंबर का पिंड है। बृहस्पति, शनि व नेप्च्यून (वरुण) इससे बड़े है। विषुववृत मे व्यास 51000 किमी। पृथ्वी के व्यास से चार गुना। भार मे 15 पृथ्वी के बराबर। सूर्य से औसत 287 करोड़ किमी दूर होने के साथ 7 किमी प्रति घण्टे की गति से 84 सालो मे सूर्य का एक चक्कर पूरा करता है ओर आधा हिस्सा 42 साल सूर्य के सामने रहता है और बाकी हिस्से मे अंधेरा।दूरबीन से सिर्फ इसका बाहरी वायुमण्डल ही दिखाई देता है जबकि केंद्रीय भाग ठोस चट्टानों के है। वायुमंडल घना है जो हाइड्रोजन, हीलियम व मीथेन गैसों से बना है। इसलिए ये हल्का हरे व नील रंग मे नजर आता है । सूर्य से अधिक दूर होने के कारण इसका तापमान शून्य से 200 डिग्री सेंटीग्रेट नीचे रहता है।अब तक इसके तीन दर्जन चाँद खोजे गए है जबकि दो चांदो की खोज हर्शेल ने ही कि थी। इसका सबसे बड़ा चाँद टाइटेनिया है।
*वलय ख़ोजने मे नैनीताल का रहा महत्वपूर्ण योगदान*
1781 मे इसकी खोज के कई सालों बाद 1977 मे पहली बार इसके ख़ुबसूरत छल्लों ( वलय) की खोज हुई। जिसमे नैनीताल स्थित आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान ( एरीज) व तमिलनाडु कावलूर की वेधशालाओं ने विशेष योगदान दिया। नैनीताल अविभाजित उत्तरप्रदेश के मनोरपीक मे स्थित 100 सेमी व्यास की संपूर्णानंद दूरबीन से एरीज के वैज्ञानिक डॉ एच मेहरा व डॉ एसके गुप्ता ने इसके छल्लों मे महत्वपूर्ण शोध किये। इस खोज में साथी रहे एरीज के ही पूर्व निदेशक डॉ अनिल कुमार पांडे ने यूरेनस के ख़ुबसूरत वलयों की शोध कर इसके वलयों की खोज कर *खगोल जगत मे देश का नाम रोशन कर नैनीताल को भी खगोल की महत्वपूर्ण खोज मे गौरवान्वित किया*। अब तक इसके 19 वलय खोजे जा चुके हैं ये 10 से 100 किमी तक चौड़े हैं इनके बीच 300 से 2000 किमी तक का अंतर है।

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*बबलू चन्द्रा*
स्रोत- ब्रह्माण्ड परिचय
आर्यभट्ट प्रेक्षण शोध संस्थान नैनीताल


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