सौर मंडल का सबसे बुद्धिमान ग्रह- बुद्ध

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*सौर मंडल का सबसे बुद्धिमान ग्रह- बुद्ध*
आसमान मे रात को टिमटिमाते हजारो तारे और उनके बीच कुछ अलग चमकते बिंदु जो ना के बराबर टिमटिमाते नजर आते। क्या हैं वो अन्य तारो से बड़े तारे? या उनसे नजदीक? आसमान मे ये अन्य तारो की तरह क्यों नहीं झिलमिलाते? चूंकि वो तारे नहीं हमारे सौर मंडल के ग्रह है जो दूर होने की वजह से नग्न आंखों को दिखते तो तारो के समान ही हैं पर तारे नही ग्रह हैं। बिना किसी उपकरण के तारों और ग्रहों को पहचानने का एक तरीका ये भी है कि तारे टिमटिमाते हुए दिखते है जबकि ग्रह ना के बराबर टिमटिमाते हैं। पुराने जमाने से ही आकाश की गतिविधियों से इंसान का खास रिश्ता रहा है, चाहे वो समय के सटीकता का अनुमान लगाना हो, चाँद तारो को देख मौसम व तीज त्यौहार का पता लगाना हो या अन्य आकाशीय घटनाओं के रोमांच को देख रातो के पहर को बिताना हो।
इसी कारण पुरातन काल मे ही इंसान ने बिना किसी उपकरण के आकाश के पांच पिंडो/ग्रहों को पहचान लिया था। साथ ही इन्हीं पिंडो को *ताराग्रह* कहा गया। ये थे शुक्र, मंगल, ब्रहस्पति, शनि व बुद्ध। और आकाश मे इनके भ्रमण काल के रूप ही इन्हें इनके नाम दिए गए। उनमें जिस  ग्रह को सबसे बुद्धिमान ग्रह कहा गया वो है बुद्ध। जो सूर्य के सबसे करीब है।

*बुद्ध को कहा गया बुद्धिमान ग्रह*
बुद्ध सूर्य के करीब होने के कारण  सुर्यास्त व सूर्योदय के समय ही आसमान मे नजर आता है। और बेहद करीब होने के कारण इसे पहचान पाना और देख पाना बेहद मुश्किल भी है। सुबह व शाम के वक्त पुराने जमाने मे इसे सुबह व सांझ का तारा कहा गया। क्योंकि यह सूर्योदय और सूर्यास्त के समय ही दिखाई देता है। हालाकि वर्तमान में शुक्र यानी वीनस को इवनिंग व मॉर्निंग स्टार कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार बुध चन्द्रमा का पुत्र है। जिसने बृहस्पति की पत्नी तारा के गर्भ से जन्म लिया। और बुद्ध का अर्थ है बुद्धिमान,  जो बहुत तेजी से सूर्य की परिक्रमा पूरी कर लेता है। वहीं रोमनों ने इसे मरक्यूरी (यूनानी-हेरमेस) नाम दिया। देवकथाओ के अनुसार मरक्यूरी तेजी से दौड़कर एक देव का संदेश देकर दूसरे तक पहुँच जाता है। जब देखा गया कि ये बहुत तेजी से गति करता है तो इसे मरक्यूरी नाम दिया गया। रोमन लोग मरक्यूरी को व्यापार का देवता मानते हैं। और कहा गया यदि बुद्ध ग्रह की विशेष आकाश स्थिति मे यदि कोई जन्म लेगा तो सफल सौदागर व विद्वान होगा।

*बुद्ध मे नहीं है वायुमंडल*
सौर मंडल का सबसे छोटे ग्रह बुध का व्यास 4850 किमी है और सूर्य से इसकी न्यूनतम दूरी 4.6 करोड़ किमी व अधिकतम  7 करोड़ है। बुद्ध मे वायुमंडल नहीं है। दिन के समय इसके विषुव्वर्तीय क्षेत्र मे तापमान 400 डिग्री सेंटीग्रेट से भी ऊपर रहता है जबकि रात को -170 से भी नीचे आ जाता है। 88 दिनों मे अपनी धुरी मे घूमते हुए इतने ही दिनों मे सूर्य का एक चक्कर लगाता है। जबकि नए शोधों से पता चला है कि ये की अपनी धुरी मे एक चक्कर पूरा करने मे इसे 59 दिन लगते हैं। जबकि इसका एक गोलार्द्ध यानी एक हिस्सा हमेशा सूर्य की ओर ही रहता है।

*चाँद की तरह है क्रेटर व बदलता है कलाएं*
सूर्य के करीब होने के कारण ये एक अतितप्त है, नजरों से अधिकतर ओझल रहता ही है साथ ही इसके अनुसंधान मे कई कठिनाइयां भी हैं। सूर्य की ओर भेजे गए मैरिनर-10 अंतरिक्ष यान ने 1974 मे जाते और लौटते हुए बुध के कई तस्वीरें ली थी जिससे पता चला कि बुद्ध की सतह मे भी चन्द्रमा के जैसे खड्ड ( क्रेटर) हैं। साथ ही 2 से 4 किमी के ऊंचे व सैकड़ो किमी लंबे पहाड़ भी हैं। चाँद की तरह ही ये भी हमें घटती बढ़ती कलाओं के रूप मे दिखाई देता है, लेकिन इन कलाओं को दूरबीन की सहायता से ही देखा जा सकता है। बुद्ध का एक गोलार्द्ध सूर्य की ओर तो दूसरा हमेशा अंधेरे मे रहता है ठीक हमारे चाँद के समान। बुद्ध का अपना कोई चाँद नहीं है। बुद्ध की भौतिक परिस्थितियों से पता चलता है कि यहॉ किसी जीव जगत की कोई संभावना नहीं है। आदमी भी अगर इसकी सतह मे उतरना चाहे तो बहुत ही कठिनाइयों के बाद ही बुद्ध मे पहुँच सकता है।

*इन दिनों चमक बिखेर रहा सूर्यास्त के बाद*

बुध एक ऐसा ग्रह है, जो सूर्य के बेहद करीब होने के बावजूद इसे देख पाना आसान नही है, जबकि वह सूर्य के प्रकाश में नहाए रहता है। यही वजह है कि सूर्य की तेज चमक की चकाचौंध में वह नजर नहीं आता। मगर साल में कुछ ही दिन होते हैं, जब यह सूर्य से थोड़ा दूरी बना लेता है, तब इसे देख पाना संभव हो पाता है और आजकल यह सूर्य से दूरी बनाए हुए है। जिस कारण इन दिनों इसे देखा जा सकता है। लिहाजा सूर्यास्त के बाद पश्चिम के आकाश क्षितिज से थोड़ा सा ऊपर देखिए, वह अनोखी चमक के साथ खूबसूरत नजर आयेगा। बबलू चन्द्रा।

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स्टोरी : बबलू चंद्रा।

फोटो: बबलू चंद्रा द्वारा सूर्यास्त के दौरान नैनीताल से ली गई बुध ग्रह की मनमोहक तस्वीर। 

श्रोत ब्रह्माण्ड दर्शन।


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