चांद ने सिखाया समय का हिसाब

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जिस चांद को पाने को कई देशों के बीच शीत युद्ध छिड़ा हुआ है, उस चांद का एक पहलु ये भी है। जिसे युवा लेखक बबलू चंद्रा इस तरह से प्रस्तुत किया है।
चांद  ने बताया इंसान को समय का हिसाब
  हमारे सौर परिवार मे जितने भी पिंड, ग्रह व तारे हैं उनमें सूर्य के बाद “चन्द्रमा” ने ही हम पृथ्वी वासियों को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। दिन में सूर्य व रात मे चाँद तारों ने ही हमें समय का ज्ञान कराया है, जिसमे चाँद के नित रोज बदलते रंग-रूप ने ही काल गणना में अपना विशेष योगदान दिया है।
     
 चांद के घटती बढ़ती कलाओं ने  बनाया वक्त
चांद  हमारे सौर परिवार के मुखिया सूर्य के प्रकाश से ही चमकता है और रात के अंधेरे में हमें  सुकून भरी शांत सहमी सी रोशनी देता है। प्राचीन काल मे इसकी घटती-बढ़ती कलाओं के आधार पर ही इंसान ने समय का हिसाब रखना शुरू कर दिया था । जिसके परिणामस्वरूप सबसे पहले  चंद्र पंचांग ही अस्तित्व आया था। आज भी हमारे आधुनिक कलेंडर में वही 29 से 30 व 31 दिन का मास यानि महीना  व  12 चंद्रमासो का एक साल 354 पर चाँद को साथ लेकर पृथ्वी की सूर्य की परिक्रमा मे 365  दिन इसलिए 365 दिनों का एक साल।
         
 समझा जाता था कि चंद्रमा का खुद का प्रकाश है
  पुराने जमाने के लोगों का मत था कि सूर्य की तरह चांद के पास भी स्वयं का प्रकाश है साथ ही ये भी ख्याल रहा है कि चाँद सूर्य से अधिक दूर है। पर आज हम जानते हैं कि चाँद हमारा उपग्रह व सबसे नजदीक का पड़ोसी है जिसकी धरती से औसत दूरी तीन लाख चौरासी हज़ार चार सौ (3,84,400) किमी है। दीर्घ वृताकार कक्षा में पृथ्वी की परिक्रमा के कारण इसकी पृथ्वी से दूरी भी घटती-बढ़ती रहती है। महत्तम 4 लाख (4,06,66,670) किमी से न्यूनतम तीन लाख (3,56,400) किमी तक हो जाती है। चाँद पर वायुमंडल नहीं है हमारी धरती में है इसलिए पृथ्वी की आकर्षण-शक्ति ने ही चाँद को थामे रखा है।
चंद्रमासो का एक साल 354 दिनों का होता है।
          मास या महीने जब चन्द्रमा किसी तारे के सापेक्ष 27 दिन सात घण्टे और 43 मिनटों ( करीब 27.3 दिन) में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी करता है तो इस समय अवधि को “नक्षत्र-मास” कहते हैं। पर चाँद की इस  परिक्रमा के दौरान पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा में अपनी कक्षा मे 30 डिग्री आगे बढ़ जाता है। इसलिए चन्द्रमा को एक अमावस्या से दूसरी अमावस्या तक पहुँचने में या पूर्णिमा से दूसरी पूर्णिमा तक पहुँचने मे 29 दिन 12 घण्टे व 44 मिनट (29.5) दिन लग जाते हैं। इसलिए ‘मास यानी महीनों को दो मासों पूर्णिमांत चन्द्रमास व नाक्षत्र मास मे बांटा गया है’ । पूर्णिमांत चन्र्दमास, नाक्षत्र मास से करीब ढाई दिन (2.2) दिन बड़े होते हैं। 12 महीनों मे बारह चंद्रमास ही होते है, इन चंद्रमासो का एक साल 354 दिनों का होता है। 
कालगणना का महत्व
परंतु चाँद को साथ लेकर सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने मे पृथ्वी को 365 और लगभग एक चौथाई दिन लगते हैं। पर जानते हैं कि हमारा एक साल 365 दिनों का होता है जो पृथ्वी की सूर्य की परिक्रमा मे लगने वाला समय है। जबकि 12 महीनों से बनकर एक साल बनता है जिसमे चाँद की कालगणना का भी अपना एक विशेष योगदान है।
       
 चाँद में ठिकाना बनाने में जुटा अमेरिका
 वर्तमान समय मे अन्तरिक्ष के क्षेत्र मे धरती की बड़ी-बड़ी दूरबीनों ने चंद्रमा की सतह के लाखों तस्वीर लेने के साथ ही यहॉ स्वचालित गाड़िया, यंत्र-उपकरणों से सुसज्जित पिटारे यहाँ उतारे जा चुके है।  मानव ने भी चाँद मे कदम रख लिए है, चाँद मे आशियाना बनाने के लिए बहुत सारे अमीरों  लोगो ने जमीन भी बुक करा ली है । यानी खरीद ली है और  अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने  चाँद में ठिकाना बनाने का सबसे महत्वपूर्ण योजना ‘ मून मिशन आर्टेमिस्” की भी तैयारी कर ली है। जिसे 23 या 27 सितंबर 2022 को लांच किया जाएगा।। 
 चायना 2024 में चांद पर चढ़ने को तैयार 
 उधर चायना 2024 में चांद पर चढ़ने की तैयारी कर रहा है। रहा है। अब लड़ाई चांद पर कब्जा जमाने की शुरू हो गई है। कहा जा रहा है कि इस जंग में यूएसए चांद पर अपना सैन्य ठिकाना बनाना चाहता है वही ख्वाइश चाइना भी रखता है। इतना ही नहीं इन दोनों देश  अपने अपने यान जहां स्थापित करना चाहते हैं, चांद पर वह जगह भी एक हैं। इसलिए भी दोनों देशों के बीच विवाद छिड़ा हुआ है। इससे भी बड़ी लड़ाई वर्चस्व की है, जो दोनों ही कायम रखना चाहते हैं। इस संदर्भ में फिर कभी जिक्र करेंगे। क्योंकि यह जंग जमीन की है , पर धरती की नहीं, चंद्रमा की जमीन के लिए है। 
स्पेस जंग के लिए शुरू हो गया शीत युद्ध
इसे स्पेस जंग कह सकते हैं। यानी की इस लड़ाई की  शुरुआत पृथ्वी से शुरू हो चुकी है और सौर मंडल के किस ग्रह पर जाकर थमेगी, कह नहीं सकते। बहरहाल यह एक रोमांचक जंग होगी। जिसकी आम इंसान कल्पना भी नही कर सकता। 
श्रोत : एरीज नैनीताल इंडिया के वैज्ञानिक डा शशिभूषण पांडेय व गुणाकार मूले।
फोटो : बबलू चंद्रा

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