*चाँद का नहीं कोई मौसम, पर धरती में ऋतुओं के बदलने का प्रतीक है चाँद*
– *शरद पूर्णिमा मे भारत में पूजनीय, बनती है खीर तो वही यूरोपीय देशों मे शिकार करने का समय नाम दिया हंटर्स मून*
ब्रह्माण्ड मे धरतीवासियों का ध्यान जिसने सबसे ज्यादा अपनी ओर खींचा है तो वह सिर्फ चाँद है बच्चे वयस्क या फिर हो बूढ़े हर आम जनमानस चाँद के दीदार करते आया है । इसकी घटती बढ़ती कलाओं से हमेशा रूबरू होते आया है। कवियों ओर लेखकों ने चन्द्रमा की शीतलता उसकी घटती बढ़ती कलाओं और उसके पूरे रंग रूप के शबाब उसकी रोशनी को अपने उल्लेखों मे हमेशा ही साजो सवार कर पिरोया है। पौराणिक काल से ही मानव का समय चक्र चाँद पर निर्भर रहा है और आज भी पर्व व त्यौहारों मे चाँद की घटती बढ़ती कलाओं का विशेष महत्व रहा है।
। आज का फुल मून *शरद पूर्णिमा का धार्मिक महत्व* के साथ जानते हैं यूरोपीय देशों ने इस अक्टूबर के मून को *हंटर मून* क्यों कहा।
*शरद पूर्णिमा का महत्व धार्मिक व पौराणिक मान्यता*
कृषि प्रधान हमारे देश मे खेती ऋतुओं मे आधारित है कौन से फसल कब और किस मौसम मे होनी है अच्छी पैदावार सहित खेतीबाड़ी का सब कुछ ऋतुओं मे ही निर्भर है। और पुराने जमाने मे ऋतुओं के आने जाने बदलने का समय भी चाँद पर ही निर्भर था। वर्षा ऋतु मे बोई गई फसल का पक कर तैयार हो जाना और ठंड की शुरुआत यानि शरद ऋतु के चाँद के साथ फसल को सूखा कर सुरक्षित रखने का महत्व है। *वहीं धार्मिक मान्यता के अनुसार*
शरद पूर्णिमा अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की तिथि को मनाई जाती है। शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा, अश्विन पूर्णिमा और कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन श्रीकृष्ण ने मधुवन मे गोपियों संग महारास रचाया था। कहते हैं शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा धरती के बहुत करीब होता है. इस दिन मध्यरात्रि में मां लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण कर अपने भक्तों की दुख-तकलीफें दूर करती हैं. धन-दौलत लाभ के लिए ये दिन बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है साथ ही रात में खुले आसमान के नीचे खीर रखने का विधान है.शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से पूरा होकर अमृत की वर्षा करता है। *श्रीमद्भागवत महापुराण* के अनुसार चंद्रमा को औषधि का देवता माना जाता है। चांद की रोशनी स्वास्थ के लिए बहुत लाभकारी मानी गई हैं, इसलिए शरद पूर्णिमा की रात खुले आसमान के नीचे चावल और दूध से बनी खीर रखी जाती हैं जिससे चंद्रमा की किरणें खीर पर पड़ती है और इसका सेवन करने से औषधीय गुण प्राप्त होते हैं। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की खीर सेवन करने से पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती है. शरद पूर्णिणा पर रात में 10-12 बजे के बीच चंद्रमा का प्रभाव अधिक रहता है। कोजागरी पूर्णिमा पर खीर खाना इस बात का प्रतीक है कि अब शीत ऋतु का आगमन हो चुका है. ऐसे में गर्म पदार्थ का सेवन करने से स्वास्थ लाभ मिलेगा. मौसम में ठंडक घुलने के बाद गर्म चीजों का सेवन करने से शरीर में ऊर्जा बनी रहती है।
*यूरोप वासियो ने नाम दिया हंटर्स मून*
पश्चिमी देशों मे इसे मुख्य रूप से हंटर्सन यानि शिकारी चाँद के नाम से जाना जाता है। कई देशों मे इसे ब्लूडमून या सेंगुईन मून के रूप मे भी जाना जाता है। अमेरिकी लोगो का मत है कि इस समय पेड़ो से पत्ते गिरने सूखने का समय यानी पतझड़ शुरू हो जाता है। शाकाहारी जीव जैसे हिरण हरे पत्तों के अभाव मे कमजोर होने लगते हैं। शिकारी जीवो को जंगल के सूखेपन पतझड़ के साथ चाँद की रोशनी मे शिकार करने मे आसानी हो जाती है। वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रोफेसर आरसी कपूर ने बताया कि इंसान ठंड से बचने के लिए बर्फीले देशों मे जंगली जानवरों का शिकार किया जाता था ताकि मांस सूखा कर भण्डारण किया जा सके व जाड़ों के दिनों में भोजन के रूप मे ग्रहण कर सके। भारत सहित उच्च हिमालयी क्षेत्रो मे ये प्रथा आज भी देखी जा सकती है।
*चाँद से कैसी दिखती है पृथ्वी, यहॉ का मौसम*
*क्या है चाँद का शीतल प्रकाश*
यदि चाँद मे पहुँच कर इंसान धरती को देखे तो उसे धरती 3 गुना बड़ी दिखाई देगी। जैसे पृथ्वी से चाँद दिखाई देता है। और वहां से भी पृथ्वी मे विशेष दिनों मे चाँद की तरह कलाएं नजर भी आएंगी।
चाँद की रोशनी को चाँदनी,
ज्योत्सना चंद्रिका सहित कई नामों से जाना जाता है। पर ये रोशनी ये शीतलता चांदनी की अपनी कोई धरोहर नहीं है। चाँद पर पड़ने वाला प्रकाश ही परावर्तित होकर धरती मे पहुँचता है यही इसके शीतलता का राज भी है। चाँद मे ना नीला आकाश है, न ही कोई मौसम परिवर्तन वायु तक का अभाव है चाँद मे। इसलिए ना जाड़ो का मौसम है ना बरसात का न ही गर्मियों का।
लेकिन धरतीवासियों के लिए ऋतुओं के बदलने के साथ ही धार्मिक रूप से पूर्णिमा के चाँद का हमेशा विशेष रहा है।
लेखक :बबलू चंद्रा
फोटो: बबलू चंद्रा
श्रोत: पुस्तक -अन्तरिक्ष की रोचक बातें
https://space23lyear.com/the-moon-has-taught-the-time/
Journalist Space science.
Working with India’s leading news paper.
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