धड़कता है लाल ग्रह मंगल का दिल, अभी भी जीवित हैं इस ग्रह पर ज्वालामुखी

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*एवरेस्ट चोटी से भी तीन गुना ऊंचा है मंगल का सबसे बड़ा ज्वालामुखी शिखर*
मंगल मे अपना नया ठिकाना ढूंढने के लिए मानव ने अब तक कई अंतरिक्षयानो को मंगल की खाक छानने भेजा है और जानकारियां जुटाई हैं। अब तक  मिली जानकारियों से हम जानते हैं कि मंगल एक चट्टानी ग्रह है, और पृथ्वी से औसत व्यास मे कम। मंगल की सतह के मिले आकड़ो मे पता चला है कि इसके दक्षिणी गोलार्द्ध मे विशाल खड्ड/ क्रेटर हैं। हेलास नामक एक खड्ड 2000 किमी चौड़ा ओर चार किमी गहरा है। मंगल मे बड़े-बड़े ज्वालामुखी शिखर भी हैं, सबसे बड़ा ज्वालामुखी शिखर ओलंपस मोंस 600 किलोमीटर चौड़ा और 24 किलोमीटर ऊँचा है, यानि हमारे एवरेस्ट चोटी से भी करीब तीन गुना ऊंचा। साथ ही मंगल मे हज़ारो किमी लंबी और चौड़ी गहरी घाटियां भी हैं। मेरिनर वैली लगभग 4000 किलोमीटर लंबी, 200 किलोमीटर चौड़ी और 6 किमी लंबी है।
*ऋतु परिवर्तन के साथ उठते है धूल भरे तूफान*
 पृथ्वी की तरह लाल ग्रह मंगल भी अपने अक्ष मे झुका हुआ है इसी कारण मंगल मे भी ऋतु परिवर्तन का सिलसिला चलता है। मंगल मे लगभग 95 प्रतिशत कार्बन डाई ऑक्साइड व 3 प्रतिशत नाइट्रोजन का विरल वायुमंडल है। मंगल की सतह पर उसके वायुमंडल का दाब पृथ्वी की तुलना मे महज एक प्रतिशत है। मंगल का औसत तापमान शून्य से नीचे 55 डिग्री सेंटीग्रेट  है, धुर्वीय क्षेत्र तुषार परतों से ढके है। ऋतु परिवर्तन के कारण मंगल मे तापीय स्थितीयो मे परिवर्तन होते रहते हैं, जिससे वायुमंडल के दाब मे भी बदलाव होता है फलस्वरूप मंगल की सतह पर धूल भरी तेज हवाओं के साथ धूल के तूफान भी उठते रहते हैं।
नया शोध मंगल ग्रह के गर्भ का
मंगल ग्रह के भूगर्भीय स्थिति को मृत माना जाता है, लेकिन ऐसा नही है । ताजा शोध से पता चलता है कि इस ग्रह पर का दिल अभी भी धड़क रहा है भूकंप के रूप में , ज्वालामुखी के साथ, जो अभी भी सक्रिय हैं। शोधकर्ताओं को मंगल ग्रह पर ज्वालामुखी होने के कई साक्ष्य मिले हैं। जिससे पता चलता है कि मंगल की भूगर्भीय स्थिति मृत नहीं हैं। इसके भीतर ज्वालामुखी तो हैं ही साथ ही इस ग्रह पर भूकंप भी आते हैं। बहरहाल मंगल पर जीवन बसाने को लेकर वैज्ञानिक लगातार शोधरत हैं। जिसके तहत जमीन से लेकर असमान तक मंगल की खाक छानने में जुटे हैं तो भूगर्भीय जायजा लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। इस महाकार्य में दुनियाभर के वैज्ञानिक जुटे हुए हैं।
एरिजोना विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की खोज
 5 दिसंबर, 2022 को एरिजोना विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने कहा कि उन्हें अब और भी सुराग मिले हैं कि लाल ग्रह अभी भी ज्वालामुखी रूप से सक्रिय है। उन्हे इसका पता मंगल के एलीसियम प्लैनिटिया क्षेत्र की कक्षीय तस्वीरों के विश्लेषण से चला। जिसमें मंगल के गर्मी में गर्म पिघली हुई चट्टान (मैग्मा) का एक विशाल मेंटल प्लूम नीचे गहरे मेंटल से ऊपर की ओर धकेल रहा है। पृथ्वी पर पाए जाने वाले इस तरह के मेंटल प्लम भूकंप, फॉल्टिंग और ज्वालामुखी विस्फोट का कारण बन सकते हैं। नासा के इनसाइट लैंडर ने 2018 से इस क्षेत्र का पता लगाया था। जिस कारण मंगल ग्रह पर मेंटल प्लूम की वजह से बहुत सी भूकंपीय गतिविधियां होती हैं और हजारों भूकंप आते हैं।
नेचर एस्ट्रोनॉमी में पीयर-रिव्यूड एविडेंस में  प्रकाशित हुआ शोध 
यह शोध 5 दिसंबर 2022 को नेचर एस्ट्रोनॉमी में नए पीयर-रिव्यूड एविडेंस में प्रकाशित हुआ है। शोध में बताया गया है कि मंगल की सतह के नीचे गर्म चट्टान की विशाल बूंद जैसे सागर हैं। पूर्व में अधिकांश ग्रह वैज्ञानिक सोचते थे कि मंगल भूवैज्ञानिक रूप से मृत था और वर्तमान भूकंप और उपसतह मैग्मा के साक्ष्य ने उस दृष्टिकोण को बनाए रखा है। अब, एक विशाल और सक्रिय मेंटल प्लम के साक्ष्य पुरानी धारणाओं को और चुनौती देते हैं। ताजा खोज बताती है कि मंगल के भूकंप और उपसतह ज्वालामुखी गतिविधि का कारण बनती है। इधर पृथ्वी पर भी वैज्ञानिक अभी भी मेंटल प्लम्स को एक परिकल्पना के रूप में मानते हैं।
 3 – 4 अरब साल पहले सार्वाधिक सक्रिय था मंगल
शोध में शामिल वैज्ञानिक जेफरी एंड्रयूज-हैना कहती हैं कि  हमारे पास पृथ्वी और शुक्र पर मेंटल प्लम के सक्रिय होने के पुख्ता सबूत हैं, लेकिन मंगल जैसी छोटी और कथित ठंडी दुनिया में इसकी उम्मीद नहीं है। मंगल 3 से 4 अरब साल पहले सबसे अधिक सक्रिय था, साथ ही आज भी  यह  प्रचलित दृष्टिकोण है कि यह ग्रह  मृत है। इस ग्रह के अतीत के शुरुआत में भारी मात्रा में ज्वालामुखी गतिविधि ने सौर मंडल में सबसे ऊंचे ज्वालामुखियों का निर्माण किया और अधिकांश उत्तरी गोलार्ध को ज्वालामुखीय निक्षेपों से ढक दिया। हाल के इतिहास में जो छोटी-छोटी गतिविधियां घटित हुई हैं, उनका श्रेय आमतौर पर एक ठंडे ग्रह पर निष्क्रिय प्रक्रियाओं को दिया जाता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि हालांकि एलीसियम प्लैनिटिया एक सपाट मैदान है, नीचे से कुछ ने इसकी सतह को एक मील (1.6 किमी) से अधिक ऊपर उठा दिया था। इस क्षेत्र के गुरुत्व में भिन्नता के विश्लेषण से यह भी पता चला है कि यह उत्थान सतह के नीचे गहराई में है। यह  मेंटल प्लम के अनुरूप है। यहां तक ​​कि क्षेत्र में प्रभाव वाले क्रेटर के फर्श भी प्लूम की दिशा में झुके हुए हैं। इससे पता चलता है कि गड्ढों के बनने के बाद सतह को ऊपर की ओर धकेला और खींचा गया था।
क्या मंगल पर है सूक्ष्म जीवन
यह संभव है कि प्लूम से निकलने वाली गर्मी जमीन के नीचे बर्फ को भी पिघला सकती है। यदि ऐसा है, तो यह सूक्ष्म जीवों के लिए रहने योग्य वातावरण बना सकता है। इधर पृथ्वी पर सूक्ष्मजीव इस तरह के वातावरण में फलते-फूलते हैं, और यह मंगल ग्रह पर भी सच हो सकता है। यह जानते हुए कि मंगल की सतह के नीचे एक सक्रिय विशालकाय मेंटल प्लम है, समय के साथ ग्रह कैसे विकसित हुआ है, इस बारे में महत्वपूर्ण प्रश्न पैदा होता है।  मंगल ग्रह पर राख और लावा के विशाल विस्फोट नहीं देख सकते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मंगल मर चुका है। वास्तव में ऐसा लगता है कि गहराई में मंगल ग्रह का भूवैज्ञानिक हृदय अभी भी धड़क रहा है। इस धड़कन को ध्यान से सुनना होगा।
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स्रोत: मंगल ग्रह पर एलीसियम प्लैनिटिया के नीचे एक सक्रिय मेंटल प्लम के लिए भूभौतिकीय साक्ष्य।
फोटो: ईएसए/डीएलआर/एफयू बर्लिन (सीसी बाय-एसए 3.0 आईजीओ)।
आलेख सहयोग : बबलू चंद्रा।
एरिजोना विश्वविद्यालय के माध्यम से

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