देश का पहला मॉडल बनेगा नैनीताल का एस्ट्रो विलेज

Share It!

देश का पहला मॉडल बनेगा नैनीताल का एस्ट्रो विलेज  

नैनीताल से सटा ताकुला में निर्माणाधीन एस्ट्रो विलेज देश का पहला स्टार गेजिंग मॉडल बनने जा रहा है। यह स्टार गेजिंग को लेकर पर्वतीय क्षेत्र के पर्यटन को नई दिशा देने वाला साबित होगा। आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज के सहयोग से जिला प्रशासन द्वारा यह स्टार गेजिंग सेंटर मई में बनकर सैलानियों के लिए खोल दिया जाएगा। एस्ट्रो टूरिज्म की प्रदेश में अपार संभावनाएं हैं। यह पर्यटन न केवल पर्यटन के नए आयाम स्थापित करेगा, बल्कि रोजगार की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। यह एस्ट्रो विलेज विदेशी सैलानियों के आकर्षण का केंद्र बनेगा। जिला प्रशासन की दूर दृष्टि के चलते इस केंद्र का निर्माण कार्य अंतिम चरण पर है। एस्ट्रो विलेज के कक्ष स्टार गेजिंग के लिहाज से बनाए जा रहे हैं। जिनकी छत में शीशे के ग्लास लगे हैं। ताकि ठंड में कमरे से बाहर न निकलकर भीतर से ही आसमान को निहारा जा सके। भवनों के सामने का व्यू हरी भरी पहाड़ी से आच्छादित है, जो अलग आनंद देता है। पहाड़ी के दूसरी ओर पश्चिम से मैदानी भागों का आकर्षक नजारा लिया जा सकता है। असमान का लगभग 70 फीसद हिस्से को यहां से बखूबी देखा जा सकता है। आठ कक्ष्यों के इस केंद्र में एक कैफेटेरिया बनाया जा रहा है। साथ ही एरीज के वैज्ञानिकों के सहयोग से अत्याधुनिक दूरबीन स्थापित की जा रही है। शहर से मात्र पांच किमी की दूरी पर होने के कारण नैनीताल आने वाले अधिक से अधिक सैलानी इस पर्यटन का आनंद उठा सकेंगे। खास बात यह है कि यह क्षेत्र लाइट प्रदूषण से मुक्त है। ग्रहों नक्षत्रों के दीदार के लिए बेहद उपयुक्त स्थान है। बयान दो करोड़ की लागत से बन रहा है एस्ट्रो विलेज नैनीताल। जिलाधिकारी धीराज सिंह गरब्याल ने बताया कि स्टार गेजिंग के लिए यह सेंटर दो करोड़ रुपए की लागत से बनाया जा रहा है। इसके निर्माण में स्टार गेजिंग के साथ कुमाऊनी सांस्कृतिक शैली का ध्यान भी दिया गया है। ताकि यहाँ आने वाले सैलानी यहां की प्राचीन भवन व भेषभूषा की अनूठी शैली से भी अवगत हो सके।

 एस्ट्रो टूरिज्म धरती के पार है ग्रह नक्षत्रों की रोमांचक दुनिया   

सैर सपाटे को धरती में अनगिनत स्थान हैं, लेकिन पृथ्वी से परे एस्ट्रो टूरिज्म यानी ब्रह्माण्ड दर्शन की सैर बेहद रोमांच से भरी निराली दुनिया है। हमारे देश की अनेक हिस्सों में एस्ट्रो टूरिज्म की अपार संभावनाएं हैं, जो हमे ग्रहों नक्षत्रों से रूबरू कराता है और अपनी धरती से बाहर चांद, तारों के साथ आकाश गंगाओं की चकाचौंध अंतरिक्ष की अद्भुत सैर कराता है। एस्ट्रो टूरिज्म के लिए आसमान को चूमते पर्वतों की चोटियां बिखरी पड़ी हैं। इन चोटियों के उत्तराखण्ड अहम स्थान रखता है, जबकि लेह लद्दाख, हिमाचल व कश्मीर की ऊंची चोटियों से भी इसकाआनंद लिया जा सकता है उत्तराखंड में एस्ट्रो टूरिज्म की शुरुआत कुछ वर्ष पहले हुई और सुखद अहसास है कि तारों की सैर पर देश विदेश से पर्यटक यहांं पहुंचने लगे हैं।

  इन क्षेत्रों से ले सकते हैं एस्ट्रो टूरिज्म का आनंद

उत्तराखंड के मैदानी भागों व रोशनी के चकाचौंध शहरों से दूर हर स्थान से स्टार गेजिंग का लुत्फ उठाया जा सकता है। रानीखेत का चौबटिया व मुक्तेश्वर में खुशीराम टॉप है। इन दोनो स्थानों के ठहरने के लिए होटलों की बेहतर सुविधा होने के कारण पर्यटक काफी संख्या में पहुचने लगे हैं। इनके अलावा चौकोड़ी व बिन्सर से ग्रह नक्षत्रों को बेहद करीब से निहारा जा सकता है। यन्हा ठहरने के लिए कुमाऊं मंडल विकास निगम के रिसोर्ट हैं। इनके अलावा मुनस्यारी, धारचूला व चंपावत उत्तराखंड के दूर के वो स्थान हैं, जो अधिक ऊंचाई पर स्थित हैं और एस्ट्रो टूरिज्म के दीदार के लिए बेहद माकूल स्थान हैं। इन जगहों पर ठहरने के लिए होटल व भोजन की सुविधाएं उपलब्ध हैं। इनके अलावा गड़वाल मंडल में बेनी ताल भी एस्ट्रो टूरिज्म का हिस्सा बनने लगा है।

  विज्ञान की श्रेणी में आता है एस्ट्रो टूरिज्म  

 दरसल एस्ट्रो टूरिज्म वैज्ञानिक पर्यटन की श्रेणी में आता है। इसके लिए अंतरिक्ष के बारे में बेसिक ज्ञान हो तो, इसका आनंद दोहरा हो जाता है। तभी इसकी बारीकियों को समझा जा सकता है। यदि बेसिक ज्ञान ना हो तो आपके साथ अंतरिक्ष संबंधित जानकारी रखने वाले वििशेषज्ञ का होना बेहद जरूरी है। तभी हमारे सौर मंडल के खूबसूरत वीनस, सैटर्न , जुपिटर व मार्स जैसे नग्न आंखों से इन ग्रहों की सुंदरता को निहार पाएंगे और ब्रह्मांड के गुड़ रहस्यों को अलग से समझ पाएंगे।

अनेक आकर्षण हैं इस पर्यटन के 

एस्ट्रो टूरिज्म के अनेक आकर्षण हैं। जिनमें प्रमुख है मेटयोर शॉवर यानी अतीशबाजी के समान होने वाली उल्का वृष्टि। ये करीब साल में करीब दरजनभर बार होती है और लगभग हर महीने में एक बार या दो बार देखने को मिल सकती है। इसका आनंद रोशनी से दूर अंधेरे स्थानों से ही बेहतर लिया जा सकता है। जिसमें एक घंटे के दौरान दर्जनों से सैकड़ों जलती उल्काओं की चकाचौंध से रूबरू हुआ जा सकता है। इसके अलावा अकलटेशन यानी अच्छादन, ट्रांजिट, ओपोजिशन, ग्रहों का एक सीध में आना, एक दूसरे के करीब आना, धरती के करीब से गुजरना इत्यादि आकर्षण हैं। सूर्य व चंद्र ग्रहण भी इसी पर्यटन का हिस्सा है। इतना ही नहीं धूमकेतुओं का धरती के पास से गुजरना अद्भुत अनुभव है। जिनकी लंबी पूंछ उसे पूछल तारे की संज्ञा देता है। जिन्हे देख पाना अनूठी अनुभूति कराता है।

बायनाकुलर की मदद से इन्हे करीब देख सकते हैं 

आसमान के प्रति रुचि रखने वालों समेत विज्ञानियों को अंतरिक्ष की इन अद्भुत घटनाओं का बेसब्री से इंतजार रहता है। एस्ट्रो टूरिज्म के लिए अपने पास बायनाकूलर हो तो ग्रहों नक्षत्रों को बखूबी देखा व समझा जा सकता है। यदि बड़ी दूरबीन हो तो सोने में सुहागा। जिसकी मदद से दूर के आसमान की घटनाओं को भी देख सकते हैं।

एशिया की सबसे बड़ी दूरबीन है यहां  

अंतरिक्ष के क्षेत्र में देवभूमि की महत्ता का इसीसे अंदाजा लगाया जा सकता है कि एशिया की सबसे बड़ी दूरबीन नैनीताल जिले के देव स्थल में स्थापित की गई है। इस दूरबीन का हिस्सेदार बेल्जियम है। यह 3.6 मीटर व्यास की ऑप्टिकल दूरबीन है। आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) इसे संचालित करता है। इसके अलावा एरीज के पास चार मीटर की लिक्विड मिरर दूरबीन भी हाल ही में स्थापित की गई है। ये आधुनिक दूरबीन दुनिया की पहली एक्टिव दूरबीन है, जिसने दूर अंतरिक्ष की आकाश गंगाओं व तारों समेत आसमान की घटनाओं को तरल कैमरे में कैद करना शुरू कर दिया है। यह दूरबीन पांच देशों का साझा मिशन है। एक मीटर व्यास की दो दूरबीन एरीज में स्थापित की गई हैं। इन दूरबीनों से अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कई बड़े शोध हो देश की बड़ी उपलब्धियां हैं। देश विदेश के कई विज्ञानी इनके जरिए अंतरिक्ष के रहस्यों को खोज रहे हैं।

क्या कहते हैं डीएम धीराज गर्ब्याल  

पर्वतीय क्षेत्रों में एस्ट्रो टूरिज्म की अपार संभावनाएं हैं। लोगों को इसका ज्ञान नही होने के कारण पर्यटन का यह क्षेत्र सैलानियों से अछूता है। इसके विकास व विस्तार के लिए उत्तराखंड सरकार ने इसे पर्यटन में शामिल कर लिया है। नैनीताल के नजदीक ताकुला में एस्ट्रो विलेज बनाया जा रहा है।

ताकुला में बन रहा देश का पहला एस्ट्रो विलेज  

उत्तराखंड के उस स्थान में एस्ट्रो विलेज की नीव रखी गई है। जिस स्थान से महात्मा गांधी का स्नेह है । नैनीताल से मात्र पांच किमी की दूरी पर ताकुला के गांधी आश्रम के समीप एस्ट्रो विलेज निर्माणाधीन है। जिसमें आठ कॉटेज होंगे, जिनके भीतर से आसमान की घटनाओं को निहारा जा सकेगा। एक ऑप्टिकल दूरबीन स्थापित की जा रही है। एस्ट्रो टूरिज्म से राज्य के पर्यटन को बढ़ावा के साथ रोजगार के अवसर को ध्यान में रखकर जिला प्रशासन ने ढाई करोड़ की लागत से देश का पहला मॉडल खड़ा करने जा रहा है।

https://space23lyear.com

श्रोत: space23lyear.com

फोटो: बबलू चंद्रा


Share It!