मंगल ग्रह पर मिली अंटार्कटिका की तरह नालियां
नासा के मार्स रिकोनाइसेंस ऑर्बिटर ने मंगल ग्रह पर महत्त्वपूर्ण खोज की है। मंगल ग्रह पर पृथ्वी के बर्फीले प्रदेश अंटार्कटिका की तरह नालियों का पता लगाया है। यह नालियां मंगल पर बर्फ पिघलने के कारण बनी है। नासा के मार्स रिकोनाइसेंस ऑर्बिटर ने यह खोज की है। ब्राउन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इस रहस्य का खुलासा किया है।
इसमें दोराय नहीं कि पृथ्वी और लाल ग्रह मंगल के बीच अनेक समानताएं हैं। अभी तक हुई खोजों में मंगल के वारतावरण, धरातल व भूगर्भीय संरचना की अनेक जानकारी जुटाने में वैज्ञानिक कामयाब हुए हैं और हर रहस्योघाटन में पृथ्वी की रचना से मेल खाता है। यही वजह है कि मंगल पर जीवन बसाने को लेकर खगोलविदों के इरादे मजबूत होते चले गए हैं। अब अंटार्कटिका की तरह नालियों मिलना बढ़ी बात है। दरअसल पृथ्वी पर अंटार्कटिका बर्फीला क्षेत्र है और इस बर्फीले क्षेत्र में बर्फ पिघलने से नालियां बनते रहती हैं। इस खोज से इस बात की पुष्टि भी होती है कि मंगल पर कभी भारी मात्रा में बर्फ रही होगी और बर्फ पिघलने से नालियां का निर्माण भी हो गया। नासा के मार्स रिकोनाइसेंस ऑर्बिटर में लगे हाईराइज़ कैमरे के जरिए मंगल पर बनी नालियों तस्वीरें ली गई हैं। मंगल पर यह क्षेत्र टेरा सिरेनम में बने एक विशाल गड्ढे का है। जिसमें नालियां नजर आती हैं। जर्नल साइंस के ताजा अंक में यह खोज प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ताओं का कहना है कि बर्फ पिघलने की घटनाएं लगभग 6 लाख वर्ष पहले हुई होंगी। तब मंगल का तापमान लगभग 32 डिग्री फारेनहाइट रहा होगा।
3 अरब साल पहले पानी गायब होने से रेगिस्तान बन गया मंगल
ब्राउन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक जिम हेड का कहना है कि कई सारे शोधों के जरिए हम जानते हैं कि मंगल ग्रह के इतिहास की शुरुआत में घाटी नेटवर्क और झीलों के साथ सतह पर बहता हुआ पानी था। लगभग तीन अरब साल पहले सारा तरल पानी गायब हो गया और मंगल ग्रह अति-शुष्क अथवा ध्रुवीय रेगिस्तान बन गया। हाल में शोध बताते हैं कि मंगल की धुरी 35 डिग्री तक झुक जाती है। जिससे साफ हो जाता है कि झुकाव के साथ तापमान बढ़ने से बर्फ पिघलना आसान हो जाता है।
श्रोत व फोटो: अर्थ स्काई।
Journalist Space science.
Working with India’s leading news paper.
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