खोज परलोक की : क्या इस तकनीक से मिलेगा एलियंस का पता

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 इस तकनीक से चलेगा एलियंस का पता
लोक परलोक शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई। ये दो शब्द कैसे और कहा से आए । किस तरह से अस्तित्व में आए और कब आए। यह दो शब्द  क्या मात्र कल्पना है या एक वह बड़ा सच है, जिसे हम आज तक नहीं जान पाए । क्या इसका अर्थ यानी संबंध किसी स्थान से है, जिसे हम आज तक नहीं देख पाए। मगर बड़ी बात यह है कि हम अक्सर लोक परलोक शब्द का अपने रोजाना के बोलचाल में इस्तमाल करते रहते हैं। मगर इससे बड़ी बात यह है कि हिंदू पुराणों में इन दोनों शब्दों का जिक्र मिलता है। इसका मतलब यह हुआ कि हिंदू पुराण वह सभ्यता है, जो ब्रह्माण्ड की शक्तियों से परिचित थी और लोक परलोक को जानती होगी। अब इसकी वास्तविकता को समझने की कोशिश करें तो यही समझ में आता है कि इन दोनो शब्दों का संबंध किन्हीं दो ग्रहों से रहा होगा। संभवतः इस लोक की बात करें तो वह हमारी पृथ्वी होगी और परलोक कोई दूसरा ग्रह होगा। बहरहाल विज्ञान के लिहाज से इसकी पुष्टि तो नहीं की जा सकती, लेकिन वर्तमान में मानव उस परलोक यानी ग्रह की तलाश में जुटा हुआ है, जिसका सात दशक बीत जाने के बाद भी पता नही चल सका है। मगर वैज्ञानिकों का मानना है कि किसी दूसरे ग्रह पर जीवन का अस्तित्व अवश्य होगा। इतने बड़े ब्रह्माण्ड के हम अकेले नहीं हो सकते। कहीं तो जीवन होगा, मगर किस रूप में होगा,,, इसीका पता लगाना है। जिसके परिणामस्वरूप अब वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि प्रौद्योगिकी प्रदूषण तकनीक के जरिए हम एलियन यानी दूसरे ग्रह के प्राणियों यानी परग्रहियों को खोज सकते हैं। यह अब तक आजमाई गई सभी विधियों से अलग है बल्कि इसे अनूठी तकनीक भी कह सकते हैं।  इस बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तकनीक के जरिए ब्रह्माण्ड में अलौकिक जीवन के संकेत मिल सकते हैं।
 प्रौद्योगिकी प्रदूषण तकनीक
रसायनों, प्रकाश व गर्मी के जरिए उन्नत सभ्यताओं का पता लगा पाना संभव है। उदाहरणस्वरूप जिस तरह पृथ्वी पर रासायनिक प्रदूषक तत्व हैं, जिनमें  नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और क्लोरोफ्लोरोकार्बन हैं, जो  लगभग विशेष रूप से मानव उद्योग के उत्पाद हैं। एक्सोप्लैनेट यानी दूसरे सोलर सिस्टम के वातावरण में इन अणुओं का पता लगाना इस विधि से संभव है। कुछ इसी तरह से अंतरीक्ष में जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप जीव विज्ञान के संकेतों के लिए दूर के ग्रहों की खोज के लिए कर रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि  यदि खगोलविदों को केवल तकनीक द्वारा उत्पादित रसायनों से भरे वातावरण वाला ग्रह मिल जाए, तो उससे जीवन होने के संकेत मिल सकते हैं। ।
मैसी हस्टन और जेसन राइट का शोध 
मैसी हस्टन और जेसन राइट पेन स्टेट के खगोलविद हैं जो अलौकिक बुद्धि या SETI की खोज पर काम करते हैं। इन्होंने अपने शोध में बताया है कि  प्रौद्योगिकी के संकेतों को चिह्नित करने और उनका पता लगाने का प्रयास किया है।  इस तकनीकी ऐसे संकेत मिलते हैं , जो पृथ्वी से परे उत्पन्न होते हैं। वह कहते हैं कि अलौकिक  टीवी प्रसारण के लिए आकाश को स्कैन करना सीधा लग सकता है,  लेकिन ब्रह्माण्ड में दूर की उन्नत सभ्यताओं के संकेतों की खोज कर पाना  बेहद सूक्ष्म और कठिन कार्य है।
1959 से शुरू हुई परग्रहियों की खोज
परलोक यानी दूसरे ग्रह पर जीवन की खोज  आधुनिक वैज्ञानिक के जरिए 1959 में शुरू हुई। शुरुवात मे वैज्ञानिक ग्यूसेप कोकोनी और फिलिप मॉरिसन ने  कहा कि अंतरतारकीय दूरी पर रेडियो टेलीस्कोप पृथ्वी से रेडियो प्रसारण का पता लगा सकते हैं।  फ्रैंक ड्रेक ने उसी वर्ष  पहली बार  SETI के जरिए निकटवर्ती सूर्य जैसे सितारों पर एक बड़े रेडियो टेलीस्कोप से खोजने का प्रयास किया था। वह यह देखने के लिए जाँच कर रहा था कि क्या वह उनसे आने वाले किसी रेडियो सिग्नल का पता लगा सकता है। 1960 में लेजर के आविष्कार के बाद, खगोलविदों ने दूर के ग्रहों से दृश्य प्रकाश का पता लगाया। ये रेडियो या लेजर संकेतों का पता लगाने के पहले मूलभूत प्रयास थे। वे ब्रह्माण्ड के शक्तिशाली संकेतों की तलाश में थे जो दूसरे ग्रह की सभ्यता का पता चल सके।
परग्रहियों की खोज में समर्पित संस्था SETI ने रेडियो व लेजर उपयोग आज भी लोकप्रिय
सेटी की  रेडियो और लेजर संकेतों की खोज आज भी सबसे लोकप्रिय  रणनीतियों में से एक है। हालांकि, यह दृष्टिकोण मानता है कि अलौकिक सभ्यताएं अन्य तकनीकी रूप से उन्नत जीवन के साथ संवाद करना चाहती हैं। मनुष्य बहुत कम ही अंतरिक्ष में लक्षित संकेत भेजते हैं। और कुछ विद्वानों का तर्क है कि बुद्धिमान प्रजातियां जानबूझकर अपने स्थानों को प्रसारित करने से बच सकती हैं और सेटी उन संकेतों की खोज है जो शायद कोई नहीं भेज रहा हो। पृथ्वी के इतर दूसरी सभ्यता को पृथ्वी की तुलना में कहीं अधिक गर्मी, प्रकाश और उपग्रहों का उत्पादन करने की आवश्यकता होगी, जो वर्तमान में मनुष्यों के पास मौजूद प्रौद्योगिकी का उपयोग करके अंतरिक्ष की विशालता में पता लगाने योग्य है। कुल मिलाकर दूर के जीवन का पता लगाने के लिए कई रास्ते हैं। चूंकि कोई नहीं जानता कि कौन सा दृष्टिकोण पहले सफल हो सकता है, इसलिए अभी भी बहुत सारे रोमांचक काम बाकी हैं।
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छवि नासा/जे फ्रीडलैंडर के माध्यम से।
श्रोत: क्रिएटिव कॉमन्स लाइसेंस व इंटरनेट

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