शनि व सूर्य ओपोजिसन् की खगोलीय घटना
रविवार को शनि ग्रह हमारे करीब पहुंचने जा रहा है। एक ओर शनि तो दूसरी ओर सूर्य होगा। इन दोनो ठीक बीच में पृथ्वी होगी। खास बात यह होगी का रिंग वाले शनिदेव पूरी तरह सूर्य की रोशनी में नहाए हुए होंगे और बखूबी देखा जा सकेगा। इससे भी खास बात यह होगी कि शनि के छल्लों को देखने का बेहतर मौका होगा, साथ ही शनि के उपग्रहों को भी बखूबी देखा जा सकेगा। शनि की रिंग्स व उपग्रहों को देखने के लिए दूरबीन की जरूरत पड़ेगी, लेकिन को हम नग्न आंखो से देख सकेंगे।
पृथ्वी व शनि के बीच की दूरियां औसत दूरी 1,433,449,370 कि॰मी॰ है, जबकि सबसे दूर जाने पर 1,513,325,783 कि॰मी॰ होती है और नजदीक आने पर 1,353,572,956 कि॰मी॰ रह जाती है और आज शनि हमसे करीब इतनी ही दूरी पर होगा। शनि का एक वर्ष 29.4571 साल का होता है यानी इतने समय में वह सूर्य का एक चक्कर पूरा करता है। |
बेहद खूबसूरत नजर आयेंगे शनिदेव
वर्ष के किसी भी अन्य समय की तुलना में रविवार को शनि ग्रह अधिक चमकीला होगा और पूरी रात दिखाई देगा। शनि और उसके चंद्रमाओं को देखने और उनकी तस्वीर लेने का यह सबसे अच्छा समय है। एक मध्यम आकार या बड़ा टेलीस्कोप आपको शनि के छल्ले और उसके कुछ सबसे चमकीले चंद्रमाओं को देखने की अनुमति देगा।
शनि बेहतरीन झुकाए लिए होगा
शनि के छल्लों को देख पाने के लिए उसमे कुछ झुकाव होना बेहद जरूरी है और यह स्थिति रविवार को खास तरह से बनी हुई होगी। उत्तरी ध्रुव हमारी ओर झुका हुआ है, जबकि एक सकारात्मक कोण इंगित करता है कि हम दक्षिणी ध्रुव को देखते हैं। शून्य के करीब कोण का मतलब है कि शनि के छल्ले किनारे के करीब दिखाई देते हैं। विद्यार्थियों को समझने के लिए कोणीय स्थिति को उजागर किया है।
साल में सिर्फ एक बार इतने करीब होते हैं शनिदेव
दिलचस्प घटनाएं तब हो सकती हैं जब छल्ले किनारे के बहुत करीब हों और यदि सूर्य एक तरफ के छल्ले को रोशन करता है, तब हम छल्लों को भलीभांति देख पाते हैं। ऐसी हम वलयों के अप्रकाशित पक्ष को देखते हैं।
रोचक है सीलिगर प्रभाव
विद्यार्थियों के लिए सीलीगर के प्रभाव को समझना जरूरी है। विरोध के सटीक क्षण के आसपास कुछ घंटों के लिए, ग्रह की डिस्क की तुलना में शनि के छल्ले की एक उल्लेखनीय चमक को समझना संभव हो सकता है, जिसे सीलिगर प्रभाव के रूप में जाना जाता है।
शनि के छल्ले बर्फ के कणों के एक महीन पानी यानी एक तरह से पतले समुंद्र से बने होते हैं, जो सामान्य रूप से हमारे देखने के कोण से थोड़े अलग कोण पर सूर्य द्वारा प्रकाशित होते हैं, जिससे हमें कुछ प्रबुद्ध कण दिखाई देते हैं और कुछ जो दूसरों की छाया में होते हैं।
शनि के बर्फीले छल्लों को देख पाने की रोचकता
दरसल इस घटना को ओपोजिसन के नाम से जाना जाता है। ओपोजिसन् का मतलब पृथ्वी के ठीक एक ओर सूर्य तो ठीक दूसरी ओर ग्रह होता है और छल्लों में मौजूद बर्फ के कण लगभग उसी दिशा से प्रकाशित होते हैं, जहां से हम उन्हें देखते हैं, जिसका अर्थ है कि छाया वाले हिस्से को हम बहुत कम देख पाते हैं।
मस्त है शनि का दीदार
खास बात यह है कि आज पूरी रात शनि को देख सकते हैं। जब यह आकाश में सूर्य के विपरीत स्थित होता है, तो इसका अर्थ है कि यह सूर्य के अस्त होने के समय के आसपास उगता है, और यह सूर्य के उदय के समय के आसपास अस्त होता है। यह स्थानीय समयानुसार लगभग आधी रात को आकाश में अपने उच्चतम बिंदु पर पहुँच जाता है। जब यह पृथ्वी के निकटतम बिंदु पर होता है, तब भी इसे दूरबीन की सहायता के बिना एक तारे जैसे प्रकाश बिंदु से अधिक के रूप में भेद करना संभव नहीं है।
बेहद मनमोहक हैं शनि के छल्ले
वास्तव में शनि के छल्ले बेहद मनमोहक हैं। दूरबीन से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि इसके छल्ले चमकदार चांदी से बने हुए हैं, जबकि वह बर्फ होती है, जो की रोशनी से बेहद चमकदार नजर आते हैं।
Journalist Space science.
Working with India’s leading news paper.
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