धूमकेतुओं की पौराणिक रोमांचक कथाएं

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आकाश का दैत्य तक कहा गया

आकाश में समय-असमय प्रकट होकर मनुष्य मस्तिष्क को झकझोर देने वाले नजारों में धूमकेतुओ का पहला स्थान है। पुराने जमाने में धूमकेतुओ को देख कई कथाएं गढ़ी गई, कहानिया रची गई सदियों से धूमकेतुओ ने धरती में भय का माहौल बनाया और राजाओं को सिंहासन छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। भय से कई लोगो ने प्राण तक त्याग दिए, लंबे समय तक इन्हें महासंकट का सूचक समझा जाता रहा है। वर्तमान में इंसान धूमकेतुओं को देखकर ना तो भयभीत होता है, ना ही इनका दुष्प्रचार होता है बल्कि अब पहले ही इनके प्रकट होने की सूचना से इनके दीदार के लिए लालायित हो जाता है। धूमकेतू शब्द बहुत पुराना है और धूम यानि धुँवा और केतु यानि पताका दो शब्दों से मिलकर बना है।खगोल विज्ञान मे इन्हें कॉमेट नाम दिया गया है जो कॉमेंट्स शब्द से बना है जिसका अर्थ है लंबे बालों वाला।

*अथर्वर्वेद व महाभारत में भी धूमकेतू का जिक्र*

धूमकेतुओ का जिक्र पौराणिक वेदों व गर्न्थो में मिलता है। अथर्वर्वेद में भी धूमकेतू व उल्का शब्द आये हैं। वहीं महाभारत के भीष्मपर्व अध्याय 3 व 13 मे उल्लेख करते हुए कहा गया है- धूमकेतुर्महाघोरः पुष्यम चाक्रम्य तिष्यति यानि (महाभयंकर धूमकेतू कब आसमान मे तिष्य नक्षत्र के पार पहुँचेगा तो तब भीषण युद्ध आरंभ होगा)। देश के महान ज्योतिषी वराहमिहिर ने अपने बृहत्संहिता ग्रथं में विस्तार से जानकारी दी और लिखा दर्शनमस्तयो वा न गणितविधिनास्य शक्यते ज्ञातुम यानि समय-असमय दिखने वाले धूमकेतुओ को गणित की विधि से नहीं जाना जा सकता। आज हम धूमकेतुओं के आसमान में आने जाने का समय जानते हैं। किस दिशा से आएगा कहॉ को जाएगा, यात्रा मार्ग की जानकारी का पूर्वानुमान खगोलविद पूर्व में ही करने में समर्थ हैं।

*चीन मे ज्योतिषी भी रखते थे धूमकेतुओं के आंकड़े*

चीन मे पुराने जमाने से ही धूमकेतुओ का लेखा-जोखा रखने की परंपरा रही है। 613 ईसवी में देखे गए धूमकेतू के विवरण सहित चीनी ज्योतिषियो ने हर 76 साल बाद नजर आने वाले प्रसिद्ध धूमकेतू हेली धूमकेतू का भी लेखा-जोखा रखा था। 164 ई. व 87 ई.पूर्व नजर आए इसके प्रमाण बेबीलोन के किलाक्षरों में भी मिले हैं। धूमकेतुओं के भय के कारण इनकी जानकारी प्राचीन ग्रन्थों में भी मिल जाती है। 1528 में यूरोप के आकाश मे दिखाई दिए धूमकेतू में आम्रोई पेरी ने एक पूरी किताब लिखी और शीर्षक दिया * आकाश के दैत्य* ओर लिखा है यह धूमकेतू इतना भयंकर था कि डर के कारण कई लोगो ने प्राण त्याग दिए थे और कई लोग बीमार हो गए थे। वहीं यूरोप के ही महान खगोलविद ट्यूको ब्राहे ने ही 1577 में एक चमकीले धूमकेतू का अध्य्यन कर सिद्ध किया कि ये धूमकेतू धरती के वायुमंडल से बहुत दूर होते हैं।

*हेली का प्रसिद्ध धूमकेतु*

आइजेक न्यूटन के मित्र एडमंड हेली ने प्राचीन ग्रथों मे आये धूमकेतुओ का अध्य्यन किया और एक निश्चित समय सीमा पर ही इनके वापस दिखाई देने के निष्कर्ष पर पहुँचे 1682 मे उन्होंने खुद एक धूमकेतू देखा और अनुमान लगाया जिस तरह सौर मंडल के ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते है वैसे ही धूमकेतुओ की भी एक समय अवधि मे सूर्य का चक्कर लगा लेना चाहिए। हेली ने 1531, 1607, 1682 मे देखे गए धूमकेतुओ का अध्य्यन कर कहा कि ये एक ही धूमकुते हैं और 75-76 साल बाद पुनः सूर्य की परिक्रमा करने लौटेगा। यदि ऐसा है तो 1758 मे ये वापस नजर आएगा। हेली की ये भविष्यवाणी सही साबित हुई और 1758 मे धूमकेतू नजर आया। इस धूमकेतू के लौटने से पूर्व ही हेली की मृत्यु हो गई थी। आज हम इस धूमकेतू को *हेली का धूमकेतू* नाम से जानते हैं। हर 76 साल ये आकाश मे नजर आता है।

*खगोल की रोचक दुनिया से बढ़ी है वैज्ञानिकों की रुचि*

अंतरिक्ष के क्षेत्र मे इंसान के बढ़ते कदम व खगोल की रोचक दुनिया मे विगत वर्षों मे वैज्ञानिकों की दिलचस्पी धूमकेतुओ के अध्य्यन की ओर गहरा गई है। समझा जाता है कि पृथ्वी मे पानी भी इन्हीं धूमकेतुओं के जरिये आया था। ये भी माना जाता है कि जीवन के उद्भव के लिए कार्बनिक अरुण भी किसी धूमकेतू से ही पहुँचे हो। यहॉ तक ये भी माना जाता है की किसी धूमकेतू या शुद्ग्रह के कारण ही पृथ्वी के मौसम मे भारी तब्दीली आई विशालकाय डाइनासोरो का अंत हुआ।

*इन दिनों धूमकेतु जेटीएफ पर दुनिया की नज़र*

धूमकेतु का नाम जेटीएफ सी / 2022 ई 3 यह धरती की ओर लौट रहा है। यह घूमकेतु इन दिनों रातों को आसमान में आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। दो फरवरी को वह पृथ्वी के सार्वाधिक करीब पहुंचने वाला है। फरवरी के पृथम सप्ताह में इसे नग्न आंखों से देखा जा सकेगा। इसके नजदीक पहुंचने का वैज्ञानिकों समेत खगोल प्रेमियों को बेसब्री से इंतजार है। यह धूमकेतु 10 फरवरी मंगल के बेहद करीब पहुंचेगा।

लेखक: बबलू चंद्रा।

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श्रोत: गुणाकार मूले।

फोटो: अर्थ स्काई कम्यूनिटी।


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