मंगल ग्रह में भी होती है बर्फबारी
पृथ्वी की तरह ही मंगल ग्रह का अपना मौसम है।जब मंगल ग्रह पर सर्दियां आती हैं, तो सतह वास्तव में एक अलग परिदृश्य में बदल जाती है। गिरते तापमान के साथ हिमपात होता है और बर्फ गिरती है और ठंड बेतहाशा बढ़ जाती है। मौसम की यह स्थिति मंगल के ध्रुवों पर हैं, जहां तापमान माइनस 190 डिग्री फारेनहाइट यानी माइनस 123 डिग्री सेल्सियस जितना कम हो जाता है। बहरहाल नासा ने मंगल ग्रह की धरती पर विंटर वंडरलैंड को खोज निकाला है।
हाल ही में पता चली ये महत्वपूर्ण जानकारी
अब हम मंगल पर अपना ठिकाना बनाने का सपना सजोए बैठे हैं तो जाहिर है मंगल के मौसम की जानकारी का होना बेहद जरूरी है। इस दिशा में नासा ने मंगल पर अब तक भेजे कई रोवर कुछ नया पता लगाते रहे हैं। और मंगल के ध्रुवों पर बर्फ का पता चलना बढ़ी खोज है। बहरहाल नई जानकारी के अनुसार मंगल में फिट के अनुसार बर्फ नहीं गिरती है। अधिकांश बर्फ अत्यधिक समतल क्षेत्रों पर गिरती है। और लाल ग्रह की अण्डाकार कक्षा का मतलब है कि सर्दियों के आने में कई और महीने लगते हैं। याद रहे कि मंगल का एक वर्ष लगभग दो पृथ्वी वर्ष के बराबर है।
पाला भी खूब गिरता है मंगल पर
मंगल ग्रह पर भी बर्फ तो गिरती ही है और पाला भी बनता है। नासा के अंतरिक्ष यान ने लाल ग्रह पर और परिक्रमा करते हुए पृथ्वी पर सर्दी का अनुभव करने के तरीके से समानताएं और अंतर बताया है। पृथ्वी पर जिस तरह से पाला गिरता है। उसी तरह से मंगल की धरती भी पाले से अछूती नहीं है। नासा के जेपीएल वैज्ञानिकों ने सिल्वेन पिकक्स वीडियो के जरिए इस तथ्य को समझाया हैं।
दो प्रकार की बर्फ गिरती है मंगल में
मंगल की बर्फ दो किस्म की बर्फबारी होती है। पानी की बर्फ और कार्बन डाइऑक्साइड या सूखी बर्फ। क्योंकि मंगल ग्रह की हवा इतनी पतली है। साथ ही तापमान इतना ठंडा है कि पानी-बर्फ बर्फ जमीन को छूने से पहले ही उर्ध्व पातित हो जाता है, या गैस बन जाता है। ड्राई-आइस वास्तव में ज़मीन तक पहुँच पाती है।
इस तरह से पता चल पाया बर्फ गिरने का
मंगल पर हिमपात चरम ठंड के दिनों में गिरती है। ध्रुवों पर बादलों की आड़ में और रात में गिरती है। अंतरिक्ष यान की परिक्रमा करने वाले कैमरे उन बादलों के माध्यम से नहीं देख सकते हैं, और अत्यधिक ठंड में सतह के मिशन जीवित नहीं रह सकते हैं। परिणामस्वरूप, गिरती हुई बर्फ की कोई भी तस्वीर कभी नहीं ली गई है। लेकिन वैज्ञानिकों को पता है कि ऐसा होता है।नासा का मार्स रिकॉइनेंस ऑर्बिटर अपने मार्स क्लाइमेट साउंडर इंस्ट्रूमेंट का उपयोग करके क्लाउड कवर के माध्यम से देख सकता है। इस क्षमता के कारण वैज्ञानिकों को जमीन पर गिरने वाली कार्बन डाइऑक्साइड बर्फ का पता लग जाता है। 2008 में, नासा ने फीनिक्स लैंडर को मंगल के उत्तरी ध्रुव पर लगभग 1,600 किलोमीटर के भीतर भेजा। जहां इसने सतह पर गिरने वाले पानी-बर्फ की बर्फ का पता लगाने के लिए एक लेजर उपकरण का उपयोग किया था ।
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श्रेय व फोटो NASA/JPL-कालटेक/एरिज़ोना विश्वविद्यालय।
Journalist Space science.
Working with India’s leading news paper.
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