रहस्य आकाश में बहती दूध की गंगा का 

Share It!

   रहस्य आकाश में बहती दूध की गंगा का 
भले ही हमारी धरती पृथ्वी है, लेकिन पृथ्वी की भी अपनी धरती है और उस धरती का नाम है मंदाकिनी यानी  आकाशगंगा। हमारे पुराणों में आकाशगंगा का सच कहें या कहानी,,, वह बेहद रोचक और मनमोहक है। जिसका अनूठा ज्ञान रखने वाले बबलु चंद्रा कुछ इस तरह से प्रस्तुत करते हैं।
आकाश में बहती दूध की गंगा-आकाशगंगा
इस गंगा मे बहते अनगिनत तारे हैं ,धूल व गैस के बादल हैं। गोते लगाती मत्स्य परिया उल्काये हैं। पौराणिक तथ्य बताते हैं कि पुराणों मे आकाशगंगा और  पृथ्वी की गंगा नदी को एक दूसरे से जोड़ कर पवित्र माना जाता रहा है।  नाम भी पौराणिक ही है आकाशगंगा या मंदाकिनी। यह जानवर भी हैरानी होती है कि धार्मिक ग्रन्थों मे आकाशगंगा को क्षीर अथार्थ दूध कहा गया है।
दूसरी सभ्यताओं को भी आकाशगंगा दुधिया दिखी थी।
 विदेशी सभ्यता को भी आकाशगंगा दुधिया ही दिखी थी
भारतीय प्रायद्वीप  से बाहर की बात करें तो  दूसरी कई सभ्यताओं को भी आकाशगंगा दूधिया ही दिखी थी। अब गैलेक्सी शब्द गहराई में जाएं तो गैलेक्सी शब्द का मूल यूनानी भाषा के “गाला” शब्द से लिया गया है। और मजे की बात यह है कि  इसका अर्थ भी दूध ही होता है। यह भी कम रोचक नही कि फ़ारसी मे हिन्द ईरानी भाषा से क्षीर के सजाती शिर से आकाशगंगा को राह-ए-शीर कहा गया।  चीन मे चांदी की नदी जबकि अंग्रेजी मे मिल्की-वे मतलब दूध का मार्ग कहा है। प्राचीन भारतीय सभ्यता में आकाश मे दूधिया तारो का प्रवाह को स्वर्ग की गंगा नदी की एक धारा( मंदाकिनी) माना गया है।
मां गंगा, भागीरथी और मंदाकिनी
 जैसे  मंदाकिनी नदी भागीरथी से मिल कर मां गंगा जी का निर्माण करती है ठीक वैसे ही असंख्य तारो का समूह, धूल गैस के बादलो का प्रवाह मिल कर आकाशगंगा का निर्माण करते है। उन अरबो तारो से मिले संगम को आज के दौर की मंदाकिनी या गैलेक्सि कहते हैं। जानकर हैरानी होती है कि इसमें करीब 400 अरब से भी अधिक तारे हैं।
कभी माना जाता था की ब्रह्माण्ड का केंद्र पृथ्वी है
प्राचीन काल के लोगो का मत था कि पृथ्वी  ब्रह्मांड के ठीक बीच में है । सूर्य चाँद तारे इसकी परिक्रमा करते हैं। यूरोपीय सभ्यता में यही माना जाता रहा और यह भ्रम तब तक जीवित रहा, जब तक कि आधुनिक खगोल विज्ञान अस्तित्व में नहीं आया।
खगोल विज्ञान के विकास ने बताया यह सच
 कोपर्निकस  1473-1543  ईसवी सहित कई अन्य वैज्ञानिको ने बताया कि  पृथ्वी नही बल्कि सूर्य हमारे सौर मंडल  मध्य में है।  पर अब हम जानते है कि सूर्य आकाशगंगा के बीच मे नहीं है। जैसे नौ ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते है ठीक वैसे ही आकाश के तारे भी आकाशगंगा केंद्र की परिक्रमा करते है।
पहली बार गैलीलियों ने जाना आसमान का रहस्य
महान  वैज्ञानिक गैलीलियो ने 1609 में पहली बार दूरबीन का आविष्कार किया और  अपनी दूरबीन से पहली बार आकाश को देखा।  अनगिनत तारे, चाँद के पहाड़ और ग्रह उपग्रह  के सच को जाना । आकाशगंगा के अनगिनत तारो को देखकर उन्होंने कहा कि- मैं अब जान गया हूं खगोल को घेरने वाला ये चांदी का पट्टा(  अकाशगंगा) असल मे है क्या। उन्होंने कृतिका पूंज मे 40 तारे देखे जिसमे आज की दूरबीन से 400 से अधिक तारे देखे जा सकते हैं। इधर  आकाशगंगा की सही आकार प्रकार को पहली बार यूरोप के खगोलविद टॉमस राइट और विलियम हर्शेल ने बताया कि  सूर्य सहित आकाशगंगा के सारे तारे पहिये के आकार की एक विशाल योजना बनाते है। उन्होंने इसका काल्पनिक चित्र भी बनाया।
फोटोग्राफी आविष्कार के बाद सामने आया अकाशगंगा का सच
उनीसवीं सदी के अध्ययन स्पेक्ट्रोस्कोप और फोटोग्राफी के आविष्कार के बाद ही  आकाश की गंगा की हमे सही जानकारी मिली। हमारी आकाशगंगा तारों की विशाल योजना है । यह ब्रह्मांड की एक सामान्य मंदाकिनी है। ब्रह्मांड में इस  जैसी करोड़ो-अरबो मंदाकिनियाँ है। सबसे नजदीक की मंदाकिनी देवयानी मंदाकिनी है। यह हमारी पड़ोस की अकाशगंगा है और इसे हम अपनी नग्न आखों से भी देख सकते है।
भारत में आधा दर्जन से अधिक नामों से जाना जाता है आकाशगंगा को
भारत मे आकाशगंगा को मंदाकिनी, स्वर्णगंगा,  सुरनदी, आकाशनदी, देव नदी, नागतिदी, हरिताली नामो से जाना गया। ज्ञान विज्ञान की बातों से कोसो दूर इस नदी के बाबत मैंने विज्ञान की बातों को फिर दरकिनार तो किया है, लेकिन उस सत्य को उजागर करने का प्रयास किया है, जो प्राचीनकाल में अपनी अलग अहमियत रखा करता था।

Share It!