142 साल में 5वीं बार सर्वाधिक गर्म रहा पिछला साल

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चिंता: नासा की रिपोर्ट –  2022 सार्वाधिक  5वां सबसे गर्म साल रहा

रिकार्ड तोड़ती गर्मी भविष्य में न जाने क्या गुल खिलाएगी। नासा के वैज्ञानिकों का ताजा निष्कर्ष बताता है कि 1880 के बाद पिछला साल 2022 पांचवां सबसे गर्म साल रहा । इससे बड़ी चिंता की बात यह है कि पिछले 9 साल भी लगातार गर्म रहे हैं। साल दर 9 साल की बढ़ती गर्मी भी एक रिकार्ड है। पृथ्वी का लगातार गर्म होना किसी भी दशा में ठीक नही है। भविष्य के लिए निश्चित ही यह बढ़ी चिंता की बात है। इससे पहले 2015 को टॉप फाइव गर्म साल में शामिल किया गया था। साल 2022 इस मायने में भी बेहद खराब रहा कि यह वर्ष कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन करने में पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ गया। नासा समेत अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों की टीम ने यह निष्कर्ष निकाला है। नासा का कहना है कि गर्मी का बढ़ता दायरा बेहद चिंताजनक है। गर्म होती हमारी जलवायु पहले से ही अपनी छाप छोड़ रही है। जंगल की आग तेज हो रही है। तूफान की संख्या बढ़ रही है। सूखा कहर बरपा रहा है और समुद्र का जल स्तर लगातर बढ़ रहा है।

मानवीय गतिविधियां प्रमुख कारण है पारा चढ़ाने में

वैश्विक ताप बढ़ने के यूं तो अनेक कारण हैं, लेकिन सबसे बड़ा कारण मानवीय गतिविधियाँ हैं, जो वातावरण में भारी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों को बढ़ा रहेभाईं। जब तक हमारी गतिविधियों को पर्यावरण के अनुरूप संतुलित नही किया जाएगा, तब गर्मी बढ़ती ही रहेगी। गर्मी बढ़ने को हर हाल में रोकना होगा। अन्यथा परिणाम भी हमे ही भुगुतने पड़ेंगे। विकास की होड़ ने भुला दिया है कि हम कितनी बड़ी भूल कर रहे हैं। इसके दुष्परिणाम हमे न सही, लेकिन आने वाली पीढ़ियां भुगतेंगी।

कोविड के कारण 2020 में थोड़ा कमी आई थी

कोविड-19 महामारी के कारण 2020 में कुछ समय के लिए अल्पकालिक गिरावट आई थी और जैसे ही कोविड संक्रमण में कमी आई तो हालात ने दोहराना शुरू कर दिया। एयरकंडीशन, वाहन व कारखाने समेत अनियोजित विकास के कारण ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में तेजी से वृद्धि हो रही है। पिछले साल अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में लॉन्च किया गया उपकरण ईएमआईटी के आंकड़ों को भी विश्लेषण में शामिल किया गया। इस उपकरण के जरिए पृथ्वी की सतह पर खनिज धूल के आंकड़े एकत्र किए गए।

बड़ती गर्मी पृथ्वी की प्रवृति बनते जा रही है

न्यूयॉर्क में नासा के गोडार्ड इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस स्टडीज (जीआईएसएस) के वैज्ञानिकों कहना है कि पृथ्वी की दीर्घकालिक वार्मिंग प्रवृत्ति के रूप में जारी है। 2022 में वैश्विक तापमान नासा की बेसलाइन का समय (1951-1980) के औसत से 1.6 डिग्री फ़ारेनहाइट (0.89 डिग्री सेल्सियस) अधिक था। 2022 में पृथ्वी 19वीं सदी के अंत के औसत से लगभग 2 डिग्री फ़ारेनहाइट (लगभग 1.11 डिग्री सेल्सियस) अधिक गर्म थी।

1880 से अभी तक के आंकड़े मौजूद हैं नासा के पास

नासा के वैज्ञानिकों ने 1880 से 2022 तक वैश्विक सतह के तापमान का पूरा डेटासेट लिया गया। इसका विश्लेषण करने के बाद सामने यह नतीजा सामने आया । नासा के पास वैश्विक तापमान के आंकड़े 1880 से उपलब्ध हैं। जिसके साथ हर साल का आंकड़ा लिया जाता है और निष्कर्ष निकाला जाता है। डेटा जीआईएसएस पर उपलब्ध है।

दुनिया का हर हिस्सा वैश्विक ताप से प्रभावित 

दुनिया का हर हिस्सा वैश्विक ताप के प्रभावों को अनुभव कर रहे हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि गर्म वातावरण की जड़ें समुद्र से जुड़े हुए हैं। जलवायु परिवर्तन ने वर्षा और उष्णकटिबंधीय तूफानों को तेज कर दिया है। सूखे की गंभीरता को गहरा कर दिया है। समुद्री तूफानी लहरों को बढ़ा दिया है। पिछले साल मूसलाधार मानसूनी बारिश ने ऐसा तांडव दिखाया कि कई देशों में जबरदस्त तबाही मचाई। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मानसून भी ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से अछूता नहीं रहा।

प्राकृतिक कारणों को भी विश्लेषण किया जाता है शामिल

वैश्विक तापमान विश्लेषण करने के लिए नासा मौसम स्टेशनों, अंटार्कटिक स्थित अनुसंधान स्टेशन, जहाजों और समुद्र के जहाजों पर लगे उपकरणों द्वारा एकत्र करता है। नासा के वैज्ञानिक डेटा में अनिश्चितताओं को ध्यान में रखते हुए इन मापों का विश्लेषण करते हैं। सटीक गणना के बाद हर साल वैश्विक औसत सतह के तापमान के अंतर का पता लगाता है।वैश्विक तापमान को जानने के लिए नासा 1951-1980 की अवधि को आधार रेखा के रूप में उपयोग करता है। जिसमें ला नीना और एल नीनो जैसे जलवायु पैटर्न को भी शामिल किया जाता है। जिससे पृथ्वी के तापमान में प्राकृतिक कारणों को शामिल किया जाता है।

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श्रोत व फोटो: नासा ।


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