ब्रह्मांड में जीवन की खोज व विकास का सफर और ड्रेक नियम 

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       ब्रह्मांड में जीवन की खोज, विकास का सफर और ड्रेक नियम
एलियंस खोज विशेष चैप्टर – 2 (युवा लेखक बबलू चंद्रा )
परग्रही यानी एलियंस की पहेली अभी भी बुझ नहीं पाई है। एलियंस होने की बात तो कई लोग करते हैं, लेकिन सबूत नही देते। दूसरे ग्रहों के प्राणियों की खोज में लंबा अरसा बीत चुका है और बड़े बड़े खगोलविदों ने अपनी राय भी व्यक्त की है और समीकरण के साथ वैज्ञानिक तथ्य भी प्रस्तुत किए हैं। जिन पर प्रकाश डाल रहे हैं युवा लेखक बबलू चंद्रा।
ब्रह्मांड में केवल पृथ्वी में ही जीवन का विकास हुआ हो ये सम्भव नहीं। 
इस विशाल ब्रह्मांड मे केवल पृथ्वी में ही जीवन का विकास हुआ हो ये सम्भव नहीं है। करोड़ो मंदाकिनियों के अनगिनत ग्रहों पर जीवन का विकास हुआ होगा। यहाँ सिर्फ उन ग्रहों के बाबत जिक्र किया जा रहा है,  जो पृथ्वी के समान हो सकते हैं। ऐसे कितने  ग्रह हो सकते हैं?, इनमें से कितनों मे जीवन और बुद्धिमान सभ्यता विकसित हुई होंगी?, उन सभ्यताओं में हमारी तरह दूरसंचार दूरदर्शी जैसे साधन कितनों ने विकसित कर ली होगी। हम पृथ्वीवासी 20वी सदी में यह संसाधन विकसित कर पाए हैं।
ड्रेक समीकरण- (N= R★ ×Fp ×ne×  f1×f¡×f¢×L)
 इन सवालों के जवाब  तलाशने के लिए अमेरिकी वैज्ञानिक फ़्रैंक ड्रेक ने 1960 ई में एक समीकरण दिया, जो विभिन्न घटकों के आधार पर आकाशगंगा मे बुद्धिमान सभ्यताओं की संख्या निर्धारित करता है। ड्रेक समीकरण- (N= R★ ×Fp ×ne×  f1×f¡×f¢×L) इस समीकरण के सात घटकों के आधार पर आकाशगंगा-मंदाकिनी के संचार-संबंध स्थापित करने मे अन्य ग्रहों के विकसित बुद्धिजीवी सभ्यताओं की संख्या (N) का अनुमान लगाने का प्रयास किया गया है। जहाँ R तारो की संख्या( 200 अरब)।
Fp  तारो की भिन्नताएं जहॉ ग्रह मल्लिकाये हो सकती है, ne पृथ्वी जैसे उन ग्रहों की भिन्न संख्या जहाँ अनुकूल परिस्थितिया, F1ग्रहों की भिन्न संख्या जहाँ जीवन का उद्भव व विकास,
Fi ग्रहों की भिन्न संख्या जहॉ बुद्धिजीवियों का विकास हुआ हो, या अज्ञात संख्या है।
Fc ये घटक बुद्धिजीवियो की वो संख्या जो टेक्नॉलजी के मामलों मे कम से कम हमारे बराबर उन्नत और अंत मे L (ड्रेक समीकरण)- जो महवपूर्ण घटक टेक्नोलॉजी, उन्नत सभ्यता के औसत जीवनकाल को दर्शाता है और वो अपने अस्तित्व को बनाये रखने मे कितनी समर्थ है। ड्रेक समीकरण के इन घटकों से परजीवियों की  बहुत कम जानकारी मिल पाई है।
खगोलविद  कार्ल सागा का अनुमान
खगोलविद  कार्ल सागा का अनुमान है कि हमारी आकाशगंगा के बाहर बुद्धिजीवी सभ्यता की संख्या दस हजार होनी चाहिए। इससे ये भी निष्कर्ष निकलता है कि ऐसी सभ्यताएं 100 से हज़ार वर्ष दूरी के घेरे मे अवश्य खोजी जा सकती हैं। ड्रेक समीकरण के आधार पर निष्कर्ष निकाला गया गई कि आकाशगंगा के बाहर दस लाख उन्नत सभ्यताए होनी चाहिए।
एलियंस को लेकर आशावादियों की परिकल्पना
परग्रहियों पर उम्मीद रखने वाले आशावादियो की एक परिकल्पना ये भी है कि आकाशगंगा मे व्याप्त सभ्यताएं हम पर हमेशा नजर रख रहे हैं।  मगर वे हस्तेक्षप नही करते है। । कुछ विज्ञानिको का ये भी मत है कि जीवन का आरंभ धरती मे नहीं हुआ बल्कि किसी दूर के पिंड से आरंभिक कण, जीवाणु पृथ्वी पर पहुँचे हैं। ये या तो उल्कापिंडों के साथ आये है या ब्रह्मांडीय धूलिकण के साथ पहुंचे। प्रसिद्ध खगोलविद फ्रेड हायल का ये भी मत रहा है कि हमारे सौर मंडल के सदस्य धूमकेतुओ के माध्यम से आज भी विभिन्न किस्म के विषाणु धरती तक पहुँचते हैं।
100 प्रकाशवर्ष दूर कम से कम एक  सभ्यता होनी चाहिए
 अभी तक हमे भले ही कोई ठोस सबूत नहीं मिल पाए हैं पर विशाल ब्रह्माण्ड मे पृथ्वी जैसा भौतिक चमत्कार अनेक पिंडो मे घटित होना सहज सम्भव है। ठोस सबूत तक उनकी खोज जरूर होनी चाहिए। ड्रेक नियम को आकाशगंगा मे लागू करें तो इस हिसाब से 100 प्रकाशवर्ष दूर कम से कम एक जीवजगत की सभ्यता होनी चाहिए। इतनी दूर कैसे सम्पर्क होगा,  फिलहाल इसके लिए हमारे पास ये साधन उपलब्ध होने चाहिए- मानवयुक्त अंतरिक्षयान , मानवरहित अंतरिक्षयान भेजना या रेडियो तरंगों या लेजर ध्वनितरंगों  अन्य शक्तिशाली तरंगों से संदेश भेजना। वर्त्तमान मे जेम्स जैसी शक्तिशाली दूरबीनों की तस्वीरों का अध्ययन करना।
चंद्रमा पर एलियंस का ठिकाना होने के कयास
हमारा अपने चांद पर एलियंस होने के कयास खूब लगते रहे हैं। इन कयासों के पीछे आधार यह बताया जाता था कि चंद्रमा की धरती खोखली है और चंद्रमा में अनेक गुफाएं हैं। जिनमे एलियंस रहते हैं। समय समय पर वह बाहर निकलते हैं और उड़न तस्तरियों में सवार होकर सौर मंडल की सैर पर निकल पड़ते हैं। कभी कभी पृथ्वी की ओर भी निकल पड़ते हैं, जो हमें नजर आ जाते हैं। यह भी कहा जाता है कि हम पर नजर पड़ते ही वह गायब हो जाते हैं। उनके हमारे धरती के नजदीक आने का सिलसिला सदियों से चले आ रहा है। मगर उनकी टेक्नोलोजी इतनी उन्नत है कि हम उन तक पहुंच ही नहीं पाते। बहरहाल इनके अस्तित्व के होने का कोई भी ठोस सबूत नहीं जुटा पाए हैं ।
श्रोत : परग्रहियों पर आधारित वेब साइट।
https://youtu.be/oac5ZsoHj7Q
फोटो व आलेख : बबलू चंद्रा । 

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