जेमिनीड:दिलचस्प आसमानी आतिशबाजी

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जेमिनीड उल्कापात नवंबर व दिसंबर की रातों को रोशन करेगा

हम हमेशा विभिन्न खगोलीय घटनाओं के बारे में उत्सुक रहते हैं। खगोलीय घटनाओं के प्रति जिज्ञासा सदियों से नहीं बल्कि युगों युगों से रही है।  उन्हे देखना चाहते हैं, महसूस कर  और आनंद उठाना चाहते हैं। अब नवंबर खत्म होने वाला है दिसंबर का आगमन अगले दस दिन बाद होने जा रहा है, तो आकाश भी अलग में रंगने जा रहा है। आसमानी आतिशबाजी यानी उल्कावृष्ठि की रोमांचक खगोलीय घटना आज रात से शुरू होने जा रही है। रातों के रोमांच से भरी यह घटना 24 दिसंबर तक जारी रहने वाली है। इसका पीक किस दिन होगा। इसकी जानकारी फिर देंगे। बहरहाल थोड़ा सुंदर अतीत को याद करलें, जो एक साल पहले बीता था।

पिछले साल इन्ही दिनों नवंबर व दिसंबर के आकाश में एक नहीं, बल्कि दो ऐसी प्रमुख घटनाओं से जगमगाया था। पहली घटना में एक लंबी दूरी का आगंतुक है – धूमकेतु C/2021 A1 (लियोनार्ड) –  वर्ष का सबसे चमकीला धूमकेतु था। इस धूमकेतु के  सूर्य की परिक्रमा की इसकी अवधि लगभग 80,000 वर्ष है, जिसका अर्थ है कि यह आंतरिक सौर मंडल और हमारे पास लगभग 80,000 वर्षों के बाद आएगा। 3 जनवरी 2021 को खोजे गए इस धूमकेतु का नाम इसके खोजकर्ता, द माउंट लेमोन ऑब्जर्वेटरी, यूएसए के जी. जे. लियोनार्ड के नाम पर रखा गया है। धूमकेतु 12 दिसंबर को पृथ्वी के सबसे करीब से गुजरा और 3 जनवरी 2022 को सूर्य के सबसे करीब से गुजर गया। हालाकि यह नवम्बर से दिखना शुरू हो गया था और वैज्ञानिकों समेत एस्ट्रो फोटोग्राफरो ने इसकी तलाश शुरू कर दी थी। यह दूरबीन और छोटी टेलिस्कोपों का उपयोग करके तड़के आकाश में दिखाई दे रहा था और बाद में  शाम के समय नजर आने लगा था। खास बात यह थी कि  आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज), नैनीताल के पूर्व पोस्ट डॉक्टरेट फेलो और हिरोशिमा विश्वविद्यालय, जापान के सहायक प्रोफेसर, डॉ अविनाश सिंह ने धूमकेतु के हरे रंग के केन्द्रक और लम्बी पूंछ का एरीज के मनोरा पीक परिसर से इसका अध्ययन किया था। साथ ही एस्ट्रो फोटोग्राफर राजीव दुबे, बबलू चंद्रा और हिमांशु जोशी समेत दुनिया के अनेक एस्ट्रो फोटोग्राफरो ने इसकी पल पल की सुंदर तस्वीरें कैमरे में कैद की थी। बहरहाल यह कॉमेट आकर्षण के केंद्र में रहा। मगर इस बार कोई धूमकेतु तो हमारे करीब नहीं आ रहा है और जो आ रहा है, वह रातों के असमान की बेहद आर्कषक चकाचौंध कर देने वाली आकाशीय घटना है।

इस खगोलीय घटना का नाम  जेमिनीड उल्कापात है। लगभग दो सप्ताह तक चलने वाला यह उल्कापात आज रात यानी 19 नवंबर से शुरू हो जाएगी और 24 दिसंबर तक जारी रहने वाली है। इस खगोलीय घटना को आम बोलचाल  में शूटिंग स्टार या टूटता तारा कहा जाता है, लेकिन यह वास्तव में यह नाम सही नहीं है क्योंकि इसका तारों से कोई लेना-देना नहीं है।

जब धूमकेतु और क्षुद्रग्रह आंतरिक सौर मंडल से गुजरते हैं तो वे बादलों के रूप में बहुत सारी धूल छोड़ जाते हैं। जब पृथ्वी की कक्षा ऐसे किसी बादल के पास से गुजरती है, तो उस धूल के कई कण हमारे वायुमंडल में प्रवेश कर जाते हैं और 80-120 किमी की ऊंचाई पर घर्षण के कारण जल जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप प्रकाश की एक लकीर दिखाई देती है जो आमतौर पर कुछ क्षणमात्र के लिए ही होती है। इसे उल्का कहा जाता है। अंधेरे और साफ़ आकाश वाली किसी आम रात में, आकाश के विभिन्न हिस्सों में प्रति घंटे में दर्जन से अधिक उल्काएं दिखाई देती हैं। एक उल्कापात में यह संख्या अधिक होती है और अधिकांश उल्काएं आकाश के एक ही क्षेत्र से आते हुए प्रतीत होती हैं। इस क्षेत्र को रेडिएंट कहा जाता है। उल्कापात का नाम आमतौर पर उस तारामंडल या नक्षत्र के नाम पर रखा जाता है जिसमें रेडिएंट स्थित होता है। जेमिनीड उल्कापात का नाम मिथुन (जेमिनी) राशि तारामंडल के नाम पर रखा गया है। खास बात यह है कि यह उल्कापात का जब पीक आयेगा तो  प्रति घंटे 80-100 उल्का दिखाई देगी। यह भारत से दिखाई देने वाले उल्कापातों में सबसे अच्छा उल्कापात है। उल्काओं को नग्न आंखों से देखा जा सकता है और इसके लिए किसी विशेष उपकरण की आवश्यकता नहीं होती है। इसके लिए तड़के सुबह 2 बजे के बाद अँधेरे में कुछ समय के लिए खुले आसमान को धैर्य के साथ लेटकर देखने की जरूरत है।

फोटो: बबलू चंद्रा( नैनीताल के समीप ज्योलीकोट से ली गई टूटते तारे यानी उल्कापात की आर्कषक तस्वीर )

श्रोत : डॉ वीरेंद्र यादव, वैज्ञानिक, एरीज


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