फैलती कृत्रिम रोशनी से खगोलविद मुश्किल में

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दुनिया में फैलती कृत्रिम रोशनी सेटेलाइट कम्युनिकेशन में बनेगी बड़ी मुश्किल

दिनों दिन बड़ती कृत्रिम रोशनी ग्लोबल वार्मिंग की तरह विश्वव्यापी समस्या बनते जा रही है। जिसने खगोल वैज्ञानिकों को बड़ी चिंता में डाल दिया है। मानवीय कृत्य ने प्रकृति के दोहन में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। घोर लापरवाही का नतीजा ये है कि आज हम प्रकृति के अमूल्य धरोहर को हम खोते जा रहे हैं। टिमटिमाते रातों का सौंदर्य भी इस समस्या से अछूता नहीं रहा। बड़ती कृत्रिम रोशनी से महानगरों के आसमान में तारों की दुनिया ओझल होने लगी है। हालात इस कदर विकराल हो चुके हैं कि लाइट प्रदूषण का बढ़ता ग्राफ एक बड़ी विश्व्यापी समस्या बन गयी है।

एरीज को नैनीताल से देवस्थल जाना पड़ा दूरबीन लगाने के लिए

लाइट प्रदूषण के बढ़ते मकड़जाल ने स्याह घनी रातों वाले पर्वतीय क्षेत्रों में भी पैर पसारने शुरू कर दिये है। पर्वतीय क्षेत्रों में पिछले 10 सालों के अंतराल में 5 से 10 फीसदी तारों को देखने में कमी आई है। साल-दर-साल बढ़ते लाइट प्रदूषण ने वैज्ञानिको की चिन्ता का बड़ा सबब बन गया है। एक दौर वह भी था, जब आसमान में फैले तारों के बेल्ट, आकाशगंगा को बिना किसी उपकरण के कोरी आंखों से देख सकते थे। मगर अब हालात बदल चुके हैं। नैनीताल सरीखे शहर भी इस प्रदूषण के चपेट में आ गए हैं। यही वजह है कि एरीज को एशिया की सबसे बड़ी दूरबीन को 60 किमी दूर देवस्थल की शरण में जाना पड़ा।

खगोलीय अध्ययन में बड़ी दिक्कत कृत्रिम रोशनी 

घुप अंधेरी स्याह रात खगोलीय अध्य्यन के लिए बेहद जरूरी है। अनियोजित बढ़ते प्रकाश प्रदूषण ने पर्वतीय क्षेत्रों में लगी दूरबीनो को भी प्रभावित करते जा रही हैं। महानगरों में बढ़ती रोशनी से वैज्ञानिकों को सेटेलाइट कॉम्युनिकेशन में तो दिक्कतें होगी ही साथ उन्हें ट्रेस करना भी मुश्किल हो जाएगा। शहरों की रोशनी मे ओझल चाँद तारों का संसार सिमटते जा रहा है। आसमाँ के अध्ययन व नैसर्गिक सुंदरता को भावी पीढ़ी के लिए बचाने के लिए हमें अभी से ठोस जतन करने होंगे।

कृत्रिम रोशनी को असमान में जाने से होगा रोकना

पर्वतीय क्षेत्रों की शांत सुरम्य वादियां वर्तमान में जगमगाती कृत्रिम रोशनी से चिन्ता का बड़ा कारण बनते जा रही है । अनियंत्रित रूप से बढ़ते प्रकाश से शत-प्रतिशत दिखने वाले फोटान ऊर्जा कणों में पांच से दस फीसदी कमी आ गई है। लिहाजा आवश्यकता से अधिक प्रकाश को नियंत्रित करने की सख्त जरूरत है। पर्वतीय क्षेत्रों में मकानों व व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में लाईट जरूरत के अनुसार ही लगानी चाहिए । बल्ब के ऊपर सेड लगाकर रोशनी को आसमान में जाने से हर हाल में रोकना होगा।

50 साल में नैनीताल का असमान भी नही रहा खगोलीय अध्ययन के काबिल

1951 में नैनीताल की आसमां की बात निराली था। गच्छ तारों से भरा आसमान हर किसीको को अपनी ओर आकर्षित करता था। मगर 70 के दशक में विद्युत रोशनी बढ़ने से एरीज को पांच किमी दूर मनोरापीक शिफ्ट करना पढ़ा। पहले यह वेधशाला देवी लॉज में हुआ करती थी। आजादी के बाद यह नगर कृत्रिम रोशनी से जगमगाना शुरू हो गया और यहीं से खगोलविदों की मुश्किलें खड़ी होनी शुरू हो गई। खगोलीय अध्ययन के लिए नगर का आसमान कमजोर हो गया और इसे नगर से बाहर शिफ्ट करना पढ़ गया।

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श्रोत: डा शशिभूषण पांडेय व डा बृजेश कुमार वरिष्ठ खगोल वैज्ञानिक एरीज। 

फोटो : बबलू चंद्रा, नैनीताल


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