एलन मस्क के स्पेसxसैटेलाइट ने खड़ी की बड़ी मुस्किलें

Share It!

एलन मस्क के स्पेसxसैटेलाइट ने खड़ी की बड़ी मुस्किलें

एलन मस्क सैटेलाइट स्टार्लिंक की असमान पर राज करने की होड़ ने दुनिया के खगोल वैज्ञानिकों के मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। इन सैटेलाइट के कारण अध्ययन में बड़ी बाधा उत्पन्न हो रही है। जिस कारण वैज्ञानिक बेहद चिंतित हैं। हाल के वर्षों में पृथ्वी की कक्षा में उपग्रहों की बढ़ती संख्या से खगोलीय अनुसंधान पर बेहद हानिकारक प्रभाव पड़े है। इनमें सबसे स्पेसएक्स स्टारलिंक उपग्रह सबसे अधिक कुख्यात कहा गया हैं। हाल में हुए अध्ययन से पता चलता है कि स्पेस एक्स उपग्रह कई बार हबल स्पेस टेलीस्कोप की तस्वीरों में फ़ोटोबॉम्बिंग यानी बिगाड रहे हैं, जिससे हबल द्वारा ली गई छवियों पर लंबी व चमकीली रेखाएँ बनी हैं । इन रेखाओं को उपग्रह ट्रेल्स कहा जाता है। जिस कारण ये तस्वीरें वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए अनुपयोगी हो जाती हैं।

2022 में 15 सौ से अधिक उपग्रह भेजे गए

सैंडर क्रुक के नेतृत्व में हुए शोध में कहा कि 2021 के बाद हज़ारों उपग्रह पृथ्वी के बहुत कम ऊंचाई यानी निम्न कक्षा में प्रवेश किया है। अकेले स्टारलिंक ने 2022 में 1,500 से अधिक उपग्रह आसमान में छोड़े हैं और वह कई नए उपग्रह मासिक रूप से लॉन्च होते रहे हैं। क्रुक की टीम का शोध हबल अवलोकनों पर कृत्रिम उपग्रह संदूषण के पहले माप को चिह्नित करता है। टीम ने 2 मार्च, 2023 को पीयर-रिव्यू जर्नल नेचर एस्ट्रोनॉमी में अपना शोध प्रकाशित किया। खगोल विज्ञान समुदाय में इन उपग्रहों के बारे में बहुत सी बातें की जा रही हैं, जो चिंताएं बड़ाने वाली हैं। उपग्रह खगोल विज्ञान को नुकसान पहुंचाते हैं।

5913 उपग्रह पृथ्वी की निचली कक्षा में

उपग्रहों की बढ़ती संख्या के सबसे बुरे परिणाम आने लगे हैं। उपग्रहों के टकराने की आशंका भी अक्सर बनी रहती है। रेजिना विश्वविद्यालय की सामंथा लॉलर भी इस मुद्दे के लिए अजनबी नहीं हैं। वर्तमान में 5,913 उपग्रह पृथ्वी के निचली कक्षा में हैं और यह संख्या लगातार बड़ते जा रहती है। यहां SpaceX सबसे अव्वल बना हुआ है।

लो ऑर्बिट के 60 फीसद स्पेस X स्टारलिंक सैटेलाइट्स

लो-अर्थ ऑर्बिट में पहले से मौजूद हजारों सैटेलाइट्स में से 62% स्टारलिंक सैटेलाइट्स हैं। निश्चित रूप से इसका मतलब है कि अन्य कंपनियाँ और देश भी लो-अर्थ ऑर्बिट में उड़ान भर रहे हैं। यह समस्या दिनो दिन बढ़ती जा रही हैं और खगोल विज्ञान को प्रभावित कर रही है।

80 किमी नीचे पहुंची हबल अंतरिक्ष दूरबीन 

हबल स्पेस टेलीस्कोप ने 1990 में अंतरिक्ष में प्रवेश किया था। वह पृथ्वी की सतह से लगभग 380 मील (610 किमी) ऊपर अपना काम कर रहा है। 33 साल बाद इसकी कक्षा इतनी कम हो गई है कि यह पृथ्वी से 330 मील (530 किमी) के करीब है। यह एक बार पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले उपग्रहों के भार से ऊपर था, अब यह उनके ठीक नीचे परिक्रमा करता है। यानी इसकी ऊंचाई में 80 किमी कम हो गई है। हालाकि पिछले साल स्पेसएक्स ने हबल को एक उच्च कक्षा में बढ़ावा देने की योजना की घोषणा की है। इससे केवल हबल को मदद मिलेगी, लेकिन पृथ्वी में सैकड़ों जमीन-आधारित दूरबीनों को कोई मदद मिलने वाली नही है।

https://space23lyear.com

श्रोत: अर्थस्काई।

फोटो: NASA/हबल एस्टेरॉयड हंटर टीम/लीसेस्टर विश्वविद्यालय


Share It!