जलवायु परिवर्तन से अब सूनामी का खतरा

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जलवायु परिवर्तन से अब सूनामी का खतरा

अंटार्कटिक पर हुए हालिया शोध ने जलवायु परिवर्तन से सूनामी आने की चेतावनी वैज्ञानिकों ने दी है। यह खतरा कुछ ज्यादा ही खतरनाक हो सकता है, जो माल के साथ जानलेवा हो सकता है।

चौंकाने वाला है यह बदलाव

जलवायु परिवर्तन में तेजी से आ रहे बदलाव चौंकाने वाले हैं। अब नया अध्ययन की माने तो यह भयंकर सूनामी ला सकता है। ताजा शोध में चेतावनी दी गई है कि जलवायु परिवर्तन के कारण अंटार्कटिका से विशाल घातक सूनामी आ सकती है। इसकी वजह अंटार्कटिक सागर का पानी तेजी से गर्म होना व भूस्खलन होना है।

समंदर का पानी गर्म होना बढ़ी वजह

दरअसल अंटार्कटिक सागर के नीचे तलछट का पानी गर्म हो रहा है। साथ ही समुद्र के भीतर भूस्खलन भी हो रहा है, जो सूनामी का बढ़ा कारण बन सकता है। तलछट का गर्म होना किसी भी दशा में ठीक नहीं है। यूके. में प्लायमाउथ विश्वविद्यालय के हाइड्रोग्राफी और समुद्र अन्वेषण के विशेषज्ञ जेनी गैलेस ने शोध कर यह जानकारी दी है। साथ ही कहा है किभूस्खलन सूनामी के लिए बढ़ा भू-खतरा है। जिससे भारी जनहानि भी हो सकती है।

नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका के ताजा अंक के प्रकाशित हुआ शोध

इस शोध के निष्कर्ष इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि वैश्विक जलवायु परिवर्तन कैसे इन क्षेत्रों की स्थिरता और भविष्य की सूनामी की संभावना को प्रभावित कर सकता है। लिहाजा हमे अपनी समझ को तत्काल विकसित करने की सख्त आवश्यकता है। नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका के ताजा अंक में यह शोध प्रकाशित हुआ है। समुद्र के इस क्षेत्र के भूगर्भीय स्थिति पर वैज्ञानिक 2016 से नजर रखे हुए हैं।

अलग समय पर बनी भू गर्भीय अवस्था

वैज्ञानिकों ने तलछट कोर का विश्लेषण करने के बाद पता चला कि कमजोर तलछट की परतें दो अवधियों के दौरान बनीं हुई हैं। जिनमें एक लगभग 3 मिलियन वर्ष पहले मध्य-प्लियोसीन गर्म अवधि में जबकि दूसरी लगभग 15 मिलियन वर्ष पहले मिओसीन जलवायु इष्टतम के दौरान बनी है। इन युगों के दौरान अंटार्कटिका के आसपास का पानी आज की तुलना में 3 डिग्री सेल्सियसअधिक गर्म था। जिससे शैवाल के खिलने व उनके खत्म होने के बाद समुद्र के नीचे के तल को एक समृद्ध और फिसलन तलछट से भर दिया है और अब इसमें भूस्खलन होने लगे हैं।

कारण

शोध में शामिल विक्टोरिया यूनिवर्सिटी ऑफ वेलिंगटन में अंटार्कटिक रिसर्च सेंटर के निदेशक और इंटरनेशनल ओशन के सह-मुख्य वैज्ञानिक रॉबर्ट मैके ने अपने बयान में कहा है कि बाद के ठंडे मौसम और हिम युग के दौरान ये फिसलन वाली परतें ग्लेशियर और हिमखंडों द्वारा पहुंचाई गई, जो मोटे बजरी की मोटी परतों से ढकी हुई थीं।

वैज्ञानिक भी चिंतित

आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज के वरिष्ठ पर्यावरण वैज्ञानिक डा नरेंद्र सिंह कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन के भविष्य में आने वाले दुष्परिणामों को लेकर वैज्ञानिक बेहद चिंतित हैं। जलवायु परिवर्तन को लेकर हो रहे शोध चेताने वाले हैं और अब ताजा शोध वास्तव में चौंकाने वाला है।

श्रोत&फोटो:  अर्थ स्काई।


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