टूटकर बिखर जाएगा ये नन्हा चाँद।

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*टूटकर बिखर जाएगा हमारे सौर मंडल का नन्हा चाँद (उपग्रह) फोबोस*

*19वी सदी मे ही हो गया था आभास, ये बना ही टूटने के लिए अब बन जाएगा मंगल का वलय*

लालग्रह मंगल का एक चांद (उपग्रह) जिसकी कहानी दिलचस्प व रोचक तो है ही साथ ही खगोलविदों के लिए एक पहेली भी है जिसे लेकर एक भय था कि ये भविष्य मे टूट कर मंगल की सतह मे जा गिरेगा। इसी भय से इस उपग्रह का नामकरण हुआ और नाम पड़ा फोबोस। यूनानी-रोमन शब्दावली मे फोबोस का अर्थ है भय।
लालग्रह मंगल के दो उपग्रह हैं, उनमें से एक उपग्रह फोबोस के लिए मत था कि ये बना ही टूटकर बिखरने के लिए है और उसके बाद मंगल का वलय बनकर ये मंगल से लिपट जाएगा। इसके बाद पूनः उपग्रह बनकर मंगल की परिक्रमा करने लगेगा। ये कोई पहेली नही, बल्कि ग्रहों की दुनिया का एक बड़ा सच है। उन्नीसवीं सदी के खगोलविदों ने ही अनुमान लगा लिया था कि ये उपग्रह धीरे-धीरे अपने ग्रह के नजदीक पहुँचता जा रहा है एक दिन मंगल मे समा जाएगा।
ब्रह्मांड और यहॉ होने वाली नित नई घटनाएं भले ही हमें अचरज असहज महसूस कराती हो, लेकिन इसकी संरचना का बनने व बिगड़ने का क्रम प्रकृति का एक हिस्सा है। आकाशगंगाओं का टकराकर बिखरना और फिर नई आकाशगंगा के उदय के साथ नई दुनिया का जन्म, ब्रह्मांड की बड़ी प्रक्रिया है। इसी क्रम मे तारों का टूटना और बनना भी स्वाभाविक प्रक्रिया है। अब हमारे अपने सौरमंडल के एक चांद फोबोस के भविष्य को लेकर जानकारी आ रही है कि यह कमजोर उपग्रह एक दिन चकनाचूर हो जाएगा और वलय बनकर मंगल के चारों ओर लिपट जाएगा। इसके बाद एक अन्तराल बाद पूनः उपग्रह बन जाएगा। 147 साल पहले 1877 में मंगल ग्रह के चंद्रमा फोबोस को खोजा गया था। इस चंद्रमा पर बड़ा क्रेटर है। क्रेटर का व्यास 5.6 मील है, जो फोबोस की सतह के एक बड़े हिस्से को कवर करता है। इस गड्ढे का नाम स्टिकनी है, जो 1.2 मील गहरा है। नए अध्ययनों से पता चला है कि यह लाखों साल बाद टूट जाएगा और मंगल के चारों ओर एक वलय बना देगा। इसके बाद एक ग्रहीय वलय बनने और फिर एकत्रित होकर चंद्रमा (उपग्रह) बन जाएगा। माना जाता है कि इस उपग्रह पर पहले भी यह परिवर्तन हो चुका है। मंगल के दो उपग्रह है। दूसरे उपग्रह नाम देइमोस है। फोबोस का औसत व्यास केवल 14 मील है।

*40 वर्षों से शोध का विषय बना हुआ है फोबोस*

हमारा पड़ोसी मंगल का उपग्रह फोबोस 40 सालों से खगोलविदों के शोध का विषय बना हुआ है। इसकी वजह इसके बीच बना गड्ढा है। साथ ही हमारे करीब होने की वजह से इस पर शोध आसान नजर आता है। इसके अलावा मंगल पर मानव बस्ती बनाए जाने के उद्देश्य से फोबोस की उपयोगिता के बारे अधिक जानने की जिज्ञासा वैज्ञानिकों में रहती है। जिसके चलते इस पर विभिन्न दृष्टिकोण से अध्ययन निरंतर जारी हैं।

*दिलचस्प है मंगल के उपग्रह की दुनिया*

हमेशा ही कौतूहल व विवाद का विषय रहे है मंगल के दोनों उपग्रह। आकाश मे नहीं वरन अनुमान मे खोजे गए थे ये उपग्रह खगोलविद जोनाथन स्विफ्ट ने अनुमान लगाया था कि जबकि यही अनुमान केपलर का भी था, सूर्य के नजदीक बुध व शुक्र ग्रहों के एक भी उपग्रह नहीं है जबकि पृथ्वी का एक चाँद है और उसी वर्ष बृहस्पति के चार उपग्रहों को दूरबीन द्वारा खोजा जा चुका था। इसलिए केपलर ने अनुमान लगाया कि इस दोनों के ग्रहों के बीच मंगल के दो उपग्रह होने चाहिए। 1610 के अनुमान के बाद इन्हें कि बाद इन्हें 1877 ई मे आकाश मे देखने मे सफलता मिली। फोबोस केवल 6007 किमी की ऊंचाई से मंगल की परिक्रमा करता है और 7 घंटे 40 मिनट मे मंगल का एक चक्कर लगा लेता है। इसकी लंबाई 27 किमी और चौड़ाई 20 किमी है।

*क्षुद्रग्रहो के द्रव से मेल खाता है फोबोस*

फोबोस की अनेक बाते वैज्ञानिकों को आश्र्चकित करती हैं और आज भी अबूझ पहेली बनी हुई है। मंगल और बृहस्पति के बीच हजारों क्षुद्रग्रह हैं। वैज्ञानिकों का मत है कि फोबोस व देइमोस अरबो वर्ष पहले मंगल के गुरुत्वाकर्षण से करीब पहुँचे क्षुद्रग्रह ही हैं। फोबोस जिस विशेष द्रव से बना है वह ब्रह्स्पति के समीप के क्षुद्रग्रहो के द्रव से समान मेल खाता है। ये क्षुद्रग्रह मंगल के करीब कैसे आये ये आज भी सवाल है। इसकी सतह पर बने विशाल क्रेटर भी वैज्ञानिकों के लिए पहेली बने हुए हैं। मंगल की गुरुत्वाकर्षण शक्ति इसे लगातार अपनी ओर खींच रही है। अब माना जा रहा है कि ये बिखरकर मंगल का वलय बन जायेगा। फिर कालचक्र को दोहराते हुए मंगल का उपग्रह बनेगा और फिर वलय या टूटकर ओझल हो जाएगा। हाल फ़िलहाल मंगल ग्रह पर अंतरिक्ष एजेंसियों के चलाये जा रहे मिशन, मानव बस्ती का खाका और नित नई जानकारियां से मंगल के इस नन्हे चाँद की भी जानकारियां सामने आएंगी और इसके रहस्यों की पहेली सुलझेगी।

लेखक: बबलू चंद्रा।

फ़ोटो: नासा।

श्रोत: नासा।


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