*एलियंस की कल्पनाएं- सम्भावनाएं औऱ तलाश*

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*एलियंस की कल्पनाएं- सम्भावनाएं औऱ तलाश*
– *अनंत ब्रह्माण्डीय महासागर मे जीव जगत की बूंद तलाश*
– *दूसरे किसी पिंडो मे जीवन का आधार अन्य घटक भी हो सकते हैं*
– *खगोल मे -जीवविज्ञान का नया विज्ञान का सामने आया अस्तित्व*
– *जीवन की उत्पत्ति संयोग नहीं बल्कि द्रव का विकासक्रम*
अनन्त असीम ब्रह्माण्ड मे करोड़ो मंदाकिनियो का अस्तित्व उनमें तिनका मात्र हमारी आकाशगंगा ओर एक आकाशगंगा मे अरबो तारे, करोड़ो पिंड हमारी आकाशगंगा के महासागर मे हमारा सौर परिवार (सूर्य चाँद अन्य ग्रह धूमकेतू) सिर्फ पानी का एक तालाब और उसमें बूंद समान ग्रह सिर्फ पृथ्वी मे ही जीवन। अंतरिक्ष के अन्य पिंडो मे जब कल्पनाओ भवसागर ब्रह्माण्ड की गहराईयों मे गोते लगाता है तो सवालों के हजारों पहाड़ सामने होते हैं और कल्पनाओ की ना कोई सीमा होती है ना ही सरहद वे इन सवालों के पहाड़ों को लांघ कर सम्भावनो के पार झांकने की भरसक कोशिश करता रहता है और हर उस प्रश्न का पीछा करते रहता है जहॉ अनंत विराट ब्रमांड मे जीवन व जीव जगत की बात आती है। ओर इन सवालों का जवाब ख़ोजने व हमे बताने के लिए खगोलिवद निरंतर ही प्रयास करते आये है ओर आज भी अग्रसर हैं। सन 1960 अमेरिका के वैज्ञानिक फ़्रैंक ड्रेक ने आकाशगंगा के अन्य पिंड मे बुद्धिमान सभ्यता( एलियंस व जीव जगत की खोज के लिए एक समीकरण दिया जिसे हम *ड्रेक समीकरण* के नाम से जानते हैं।
(ड्रेक समीकरण स्पेस एंड टाइम मे पहले विस्तारपूर्वक बताया जा चुका है) । ड्रेक समीकरणों के घटकों की जानकारी हमे कम ही मिल पाई है पर निष्कर्ष मे ये बात भी सामने आई है कि बुद्धिमान सभ्यताएं व जीव जगत हजारो प्रकाशवर्ष के घेरे मे अवश्य हो सकते हैं और खोजे भी जा सकते हैं।।
आशा की किरणों व उम्मीदों को साथ लिए कई वैज्ञानिकों का मत है कि आकाशगंगा मे यदि उन्नत सभ्यता जीव जगत है तो वो हमसे अधिक विकसित भी हो सकती है जो हम पर सतत नजर रखे हुए है औऱ हमारी किसी भी गतिविधियों मे हस्तक्षेप नहीं करती। इस विचार को *चिड़ियाघर परिकल्पना* का नाम दिया गया है। वैज्ञानिकों का एक मत ये भी है कि जीवन का उद्भव हमारी पृथ्वी मे न होकर आकाशगंगा के अन्य किसी आबाद पिंड मे हुआ वहॉ से जीवन रूपी बीज पृथ्वी मे धूमकेतू या किसी यह माध्यम से पहुँचा, ये मत नोबेल पुरुस्कार विजेता फ्रांसिस क्रीक के हैं उनका मानना था कि करीब चार अरब साल पहले धरती पर जीवन के घटक अन्य उन्नत सभ्यता ने बोए हैं।
अन्य पिंड मे जीव जगत के के भले ही ठोस सबूत हमे अब तक नहीं मिल पाए फिर भी वैज्ञानिक इस विषय मे निरन्तर शोधरत हैं।

*अन्य पिंडो मे जीवन का आधार अन्य घटक भी हो सकते हैं*
ये जरूरी नहीं कि हमारी धरती की तरह ही अंतरिक्ष के अन्य पिंडो मे भी पृथ्वी के समान ही जैव जगत का विकसित हुआ हो। हमारा जीव जगत का आधार कार्बनिक रसायन है। मगर ऐसे कई पिंड हो सकते हैं जिनमे जीवन का आधार ऐमोनिया है सिलिकॉन हो। उदाहरण के लिए किसी अन्य पिंड मे पानी का स्थान ऐमोनिया ले लेता है वहॉ जीवन ऐमोनिया के जीवाणुओ पर आधारित होगा। हम पानी पीते हैं और ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं हो सकता है दूसरे पिंड के जीव ऐमोनिया पीते होंगे और नाइट्रोजन ग्रहण करते होंगे। मगर ये सिर्फ कल्पनाएं ही है जब तक कि कोई पुख्ता सबूत नहीं मिल पाते।

*खगोल -जीवविज्ञान का नया विज्ञान का सामने आया अस्तित्व*
विशाल ब्रह्माण्ड मे जिसमे करोड़ो अरबो मंदाकिनियाँ ओर प्रत्येक मे अरबो तारे हैं यह तो मुमकिन है कि इसके एक सामान्य तारे (सूर्य) के एक सामान्य ग्रह हमारी पृथ्वी पर ही जीव जगत का उद्भव ओर विकास हुआ है। पर ये भी एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि जैसे द्रव सूर्य, सौर मंडल के ग्रहों पिंडो उपग्रहों व हमारी धरती पर मौजूद है , वैसा ही अंतरिक्ष के अन्य पिंडो पर भी पाया जाता है। और दूसरी महत्वपूर्ण बात ये है कि भौतिकी के नियम पृथ्वी के द्रव पर लागू होते हैं वही नियम अन्य पिंडो के द्रव मे भी वही नियम लागू होते हैं। अनुसन्धान युग के तेजी से बढ़ते दौर के कारण वैज्ञानिकों की दिलचस्पी अन्य पिंड मे जीवन की खोज पर भी लगातार बढ़ रही है और खगोल क्षेत्र मे खगोल-जीवविज्ञान नामक नितांत नया रूप अस्तित्व मे आ गया है।
*जीवन की उत्पत्ति संयोग नहीं बल्कि द्रव का विकासक्रम*
विशाल ब्रह्माण्ड मे जीवन के अस्तित्व के लिए बेशुमार कल्पनाओ के साथ-साथ संभावनाएं भी मौजूद हैं। और इसके लिए ये जानना भी जरूरी है कि धरती पर जीव जगत का उदभव कैसे हुआ? सबसे पहले जीव का उद्भव यदि अजैविक घटकों से हुआ तो उसने अपनी संरचना विकास के लिए जैविक घटक कहाँ से प्राप्त किए। इस सवाल को सुलझाने के लिए रूसी वैज्ञानिक एलेक्सांद्र इवानोविच ओपारियन ने जीवन की उत्पत्ति के बारे मे एक व्यापक सिद्धान्त प्रस्तुत किया और कहा कि *जीवन की उत्पत्ति महज एक संयोग नहीं है बल्कि इस धरती पर द्रव्य के विकासक्रम का एक दौर है*। जीवन की उत्पत्ति से पहले धरती मे जैव पदार्थो का संश्लेषण हुआ है। शुरआत मे जैव पदार्थों के संश्लेषण की प्रक्रिया खूब तीव्र रही, मगर बाद मे स्वयं विकसित जीवधारी बहुत तेजी से धरती पर जैव पदार्थों का सृजन करने मे जुट गए। उन्होंने इस सिद्धांत के सभी चरणों को स्पष्ट किया जिसमें से गुजरकर अंततः जीवधारियों का उद्भव हुआ। मोटे तौर पर जैव विकास के ये चरण-
-1 एमिनो एसिडों जैसे छोटे अणुओं का संश्लेषण, 2- इन छोटे अणुओं से प्रोटीनों ओर न्यूक्लिक एसिडों जैसे बड़े जैवाणुओं का संयोजन, 3- इन बड़े जीवाणुओं से अधिक-से-अधिक जटिल जीवाणुओं का संगठन और अंततः -4- जीवन का उद्भव।
*सिद्धान्त का प्रयोगशाला मे हुआ सफल परीक्षण*
शुरआत मे इस सिद्धान्त को अन्य वैज्ञानिकों ने परिष्कृत किया। पर अमेरिकी वैज्ञनिक स्टेनली मिलल्लेर ने इस सिद्धांत मे पहला महत्वपूर्ण प्रयोग किया। उन्होंने मीथेन ( कार्बन का स्रोत), ऐमोनिया ( नाइट्रोजन का स्रोत), हाइड्रोजन ओर पानी के मिश्रण मे विघुत धाराएं छोड़ी। ओर इससे अनेक प्रकार के एमिनो एसिड प्राप्त किये। जसके बाद अन्य वैज्ञानिकों ने ऊर्जा के स्रोत के लिए पराबैगनी किरणों, ऊष्मा लैम्पो, आदि का उपयोग कर इसी तरह के परिणाम प्राप्त किये। अन्ततः अमेरिका के ही वैज्ञानिक सिडनी फॉक्स ने परख नली मे तैयार किये गए एमिनो एसिड से लघु प्रोटीन के घटक प्राप्त किए।
हमारी पृथ्वी का निर्माण लगभग 4.6 अरब साल पहले हुआ और जीवन का प्रादुर्भाव करीब 3.5 अरब साल पहले यानि धरती की परिस्थितियों मे जीवन का उद्भव होने मे लगभग 1.1 अरब साल लगे। अधिकांश खगोलविदों का मत है कि आरंभ मे पृथ्वी के वायुमंडल मे भी ऑक्सीजन नहीं थी, ऑक्सीजन का निर्माण बाद मे प्रकाश- संश्लेषण की प्रक्रिया के जरिये हुआ। आरंभ मे वायुमंडल मे मीथेन, ऐमोनिया, हाइड्रोजन, ओर जलवाष्प की ही प्रधानता थी। हाल के वर्षों मे हमे ये सबूत भी मिले हैं कि जैव घटकों का रासायनिक संयोजन बाह्य अंगरिक्ष मे भी हो सकता है। धरती पर गिरने वाले उल्का पिंडों, उल्काओं मे से करीब दो प्रतिशत मे कार्बन-युक्त जैव यौगिक पाए जा चुके हैं, जबकि कुछ मे एमिनो एसिड भी खोजे गए है। 1969 मे ऑस्ट्रेलिया मे गिरे उल्का-प्रस्तर के अन्वेषण मे उसमे विभिन्न प्रकार के 17 एमिनो एसिडों की खोज हुई।
वर्तमान दौर मे अंतरिक्ष की ओर बढ़ते कदम, जेम्स वेब जैसे करोड़ो प्रकाश वर्ष झाँकने वाली दूरबीन, मानव युक्त अंतरिक्षयानों के निरन्तर प्रेक्षण व रेडियो, लेजर तरंगे व अन्य माध्यमो के संदेश व सूचनाओं के क्षेत्र मे खगोवविदों के अथक मेहनत के शोध भविष्य मे अन्य किसी ग्रह उपग्रह मे परजीवियों, जीव जगत की सम्भावना व आशाओ के साथ पुख्ता सबूत की ढूंढ खोज मे निरन्तर प्रगति पथ पर बढ़ते हुए खगोलविद कभी ना कभी ब्रह्माण्ड के विशाल महासागर मे जीव-जगत की बूंद ढूंढ ही लेंगे।

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*बबलू चन्द्रा*

फ़ोटो- नासा
स्रोत- ब्रह्मांड परिचय


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