50 किमी दायरे में फैला हुआ है यह ज्वालामुखी
चंद्रमा को अपना बनाने की चाह में हमारे वैज्ञानिकों के बीच क्रांति आई हुई है। आए दिन नित नई खोज खबरें इस उपग्रह की अलग पहचान बना चुकी है। अब जो खबर सामने आई है, उससे पता चलता है कि चंद्रमा की भूगर्भीय स्थिति गतिविधि हमारी धरती से अलग नही है। वहा भी कभी ज्वालामुखियों का वर्चस्व हुआ करता था।
खगोलविदों ने चंद्रमा पर सोए हुए अथवा मृत ज्वालामुखी का पता लगाया है। यह प्राचीन ज्वालामुखी है जो चंद्रमा के एक दूर के छोर पर स्थित है। यह एक छिपा हुआ प्राचीन ज्वालामुखी है, जो सतह तक नही पहुँच पाया और अंदर ही अंदर आज भी तप रहा है। जिस कारण चंद्रमा की यह उपरी सतह गरम है। इस जगह का तापमान अधिक रहता है। यह चंद्रमा के कॉम्पटन-बेलकोविच का क्षेत्र है। वैज्ञानिकों ने इसके भीतर रेडियोधर्मी ग्रेनाइट की खोज कर इस ज्वालामुखी का पता लगाया। वैज्ञानिको का कहना है कि ग्रेनाइट की मौजूदगी के कारण वहा ज्वालामुखी होने का पुख्ता प्रमाण मिलता है। प्लैनेटरी साइंस इंस्टीट्यूट (पी एस आई) के वैज्ञानिकों ने यह खोज की है। खोजकर्ता वैज्ञानिकों के अनुसार चंद्रमा के दूर की सतह के नीचे एक बड़ा प्राचीन अज्ञात ताप स्रोत है। यह ग्रेनाइट के एक बड़े द्रव्यमान के रूप में है। जिसमे सक्रिय ज्वालामुखी से बची हुई रेडियोधर्मिता मौजूद है। यह प्राचीन ज्वालामुखी अब तक पाए गए पार्थिव ज्वालामुखियों से सर्वाधिक मिलता जुलता है। चीनी चंद्र कक्षाओं चांगई 1 और चांगई 2 के डेटा के जरिये इसका पता चल पाया। यह एक लंबे समय से मृत ज्वालामुखी है जो 3.5 अरब साल पहले फूटा था। यह लगभग 50 किमी क्षेत्र में फैला हुआ है। चन्द्रमा का यह क्षेत्र बेहद ठंडा है। मगर जिस स्थान पर यह ज्वालामुखी है, वहा का तापमान 10 डिग्री सेल्सियस रहता है। यह लंबे समय से मृत ज्वालामुखी है जो 3.5 अरब साल पहले फूटा था। लगभग 50 किमी क्षेत्र मे यह ज्वालामुखी फैला हुआ है। विज्ञान पत्रिका नेचर में यह खोज प्रकाशित हो चुकी है।
दूसरे ठोस ग्रहों की अंदरूनी संरचना को जानना आसान होगा
फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के भूविज्ञानी स्टीफ़न एम. एलार्डो का इस खोज को लेकर कहना है कि चंद्रमा पर ग्रेनाइट के विशाल द्रव्यमान की यह नई खोज अविश्वसनीय रूप से दिलचस्प है। हमारे पास पूरी पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार के ढेर सारे ग्रेनाइट हैं। इस खोज से सौर मंडल में दूसरे अन्य चट्टानी पिंडों की आंतरिक संरचना के बारे में आसानी से पता लगा सकते हैं।
श्रोत : प्लैनेटरी साइंस इंस्टीट्यूट।
फोटो: बबलू चंद्रा।
Journalist Space science.
Working with India’s leading news paper.
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